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Monday, January 4, 2016

ज़िंन्दगी तुझसे 'हम' चाहिए

एक निगाहें करम चाहिये
ज़िंदगी तुझसे 'हम' चाहिये

खो गये हैं जाने कहाँ
अक्स देखते नहीं आईना

भागते फिर रहे है किधर
कुछ ना सोचे न समझे बिना

खुद पे थोड़ा रहम चाहिये
ज़िंदगी तुझसे 'हम' चाहिये

लाख दौलत कमाये मगर
शकुन के एक पल की तड़प

बैठे हैं घिर के लोंगों में
खुद से मिल ने की नहीं फ़ुर्सत

चश्म मे एक चमन चाहिये
ज़िंदगी तुझसे 'हम' चाहिये

ख्वाहिशें भी है पाली अगर
वो भी इंसानियत से अलग

मर्जियों में भी शामिल है क्या
दिल जाने नहीं बेखबर

थोड़ा कुछ तो शरम चाहिये
ज़िंदगी तुझसे 'हम' चाहिये

मंजिल की है चाहत मगर
प्यास किस चीज की ना खबर

क्या सही है क्या है गलत
बिन समझे जारी है सफ़र

एक नया फिर जनम चाहिये
ज़िंदगी तुझसे 'हम' चाहिये

                                          
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