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Monday, February 29, 2016

भक्त और भगवान

रख आऊँगीं तेरी मूरत श्याम
मंदिर में जाके
सुना है तेरे चाहने वाले वहाँ
रोज आते-जाते रहते हैं
जब तुझे मेरी परवाह नहीं श्याम
तो मुझे भी क्या जरूरत है
मेरी आँखें भी अब पथरा गईं हैं
तेरी राहें निहार के
मैं सोचती थी
जब भी हारने लगूँगीं
मेरी बाँहें थाम लोगे
क्योकि तेरे होते हारना नहीं आता श्याम
किसी के सामने जाके
ना भी थाम पाये तो कम से कम
रास्ता ही दिखा दोगे
क्योकि तेरे होते खुद से
चलना नहीं आता श्याम
इस संसार में आके
रास्ता ना भी दिखा पाये
तो कम से कम एक इशारा
ही कर दोगे
क्योकि एक तेरे ही नज़रों की भाषा
पढ़ पाती हैं श्याम मेरी ये आँखे
इशारा न भी कर पाये तो कम से कम
इतना ही बता दोगे
कसूर क्या था मेरा
गुनाह कब हुई मुझसे
कि इतना गिर गई श्याम
तेरी नज़रों में आके
बहुत सँजाया-सँवारा श्याम तुझे
रंगीं-रंगीं वस्त्र पहना के
मेरी फटी हुई चुनरी
कैसे मंजूर है तुझे
मैं रोज तुझे गंगाजल में
अपने अश्रु मिला कर नहलाती हूँ
मेरी आँखो में अब भी वो नमी है श्याम
क्या दिखता नहीं तुझे
मैं रोज माखन- मिश्री
तुम्हें भोग लगाती हूँ
मेरे खाने के लाले पड़े हैं
हालात नाजुक है मेरे
मैं रोज फूलो की सेज पे बिठाती हूँ तुझे
मेरे जीवन मे हैं बस काँटे
चुनना जरूर है तुझे
मैं रोज तेरे सामने
घी का दीपक जलाती हूँ
मेरे जीवन का अंधेरा
कैसे मंजूर है तुझे
हाथ काँपने लगे हैं श्याम
तेरी मूरत उठा के
कैसे रख आऊँ मैं तुझे
मंदिर में जाके
मेरी चाहत की परिक्षा है
तो तू आज़मा ले
मैं भी हँसती ही रहूँगीं श्याम
तुझे दिल मे बिठा के !!






Saturday, February 27, 2016

वतन तुझपे दिल कुर्बान

अपनी मातृभूमि के लिए हम
अपने दिल में वो जज़्बा रखते हैं
अपने बुलंद इरादों से हम
आँसमा को भी झुका सकते हैं
एक गोली तो दुश्मन की
कम कर देंगें ही अये दोस्तों
हम महिलायें हैं तो क्या हुआ
वतन पे मर- मिटने का हौंसला
हम भी रखते हैं
सनम से ज्यादा अपने वतन पे मरते हैं
नमक खाया है जिस देश का
उससे नमकहरामी नहीं कर सकते हैं
एक बार आजमा के देख लेना अहले वतन
हँसते- हँसते ये प्राण भी
निछावर कर सकते हैं
उन गद्दारों की हम क्या बात करे जो
जिस देश का खाते हैं
उसी को बुरा बतलाते हैं
शायद जन्म देने वाली माता के लिए भी
उनके दिल मे कोई जज़्बात ना हो
तभी तो मातृभूमि में रहकर
दुसरे मुल्कों का गुनगान गाते हैं
अये माते जन्मभूमि
ये आँखें खोलना भी सीखा है
मैने तेरी गोद में
साँसे लेना,हँसना,मुस्कराना
जीवन के हर उतार- चढ़ाव में
तुम  मेरे साथ थी
कैसे उतार सकती हूँ ये कर्ज तुम्हारा मैं
पूरा जीवन समर्पित तुमपे
आँखो में आँसू आ आते हैं
जब किसी शहीद की अर्थी देखती हूँ
जाने वे किसके लाल होंगें
मन में यही सोचती हूँ
एकबार उनके क़दमों में
सिर झुकाने की तमन्ना होती है
कैसी दिखती होगी उसकी माँ
नज़रों में भारत माता की
तस्वीर उभरती है !!













Friday, February 26, 2016

बन कर वो आये मेह्रबाँ

बन कर वो आये मेह्रबाँ
कुछ काम कर गये
करना था अपना नाम कुछ
हमें बदनाम कर गये !!
मालिक तेरे जहान् में
कोई भी ख़ुदा नहीं
गलती थी मेरी सोच में
जो उनको खु़दा कहें !!
पत्थर के शहर में भला
दिल कैसे हो मोम का
आँसुओ से पिघलता है
दिल ख़ुदा का भी कहाँ
इंसानियत का नाम
वो बेनाम कर गये !!
लेकर के वो गये थे हमें
फूलों के गाँव में
कहते थे हम बिठाँऐंगे
तुम्हें पलकों की छाँव में
सारे किस्से ख़्वाब में
तमाम कर गये !!
दिल को तलब है अभी भी
उस खुदगर्ज की
आँखो मे नमी है अभी तक
उनकी दी हुई
जख़्मो का सारा दर्द वो
मेरे नाम कर गये !!
मेरे ख़ुदा एकबार भी
उन्हें सज़ा मिले
चाहत थी मेरी आँखों में मगर
बद्दुआ न दे सके
मुझको मेरी चाहत का
कुछ तो सिला मिले !!


Monday, February 22, 2016

आई उलहना सुनाने

आई उलहना सुनाने यशोदा माँ को
ब्रज की ग्वालिनियाँ
सुन री यशोदा तेरा ये लल्ला
खाता है माटी
देखो न ज़रा मुँह खुलवा के
कहती  है ग्वालिनियाँ
क्यों रे कन्हैंया तुने खाई क्या माटी
कैसी कमी की थी माखन में लाला तोहे
क्यों माटी खायी ना
मारो न मईया मुझे
ये सारी ग्वालिनयाँ जलती हैं मुझसे ना
क्यों इतना जलती हैं
मैं सब ये जानूँ
चाहती है तू मुझे पीटे और ये मज़ा ले लें
ऐसी हैं ग्वालिनियाँ
गइया की कसम मईया
मैं ना खाया माटी
मुझे बरजोरी खिलाई ये ग्वालिनियाँ
मेरा हाल तो देखो ना
आई उलहना सुनाने यशोदा माँ को
ब्रज की ग्वालिनियाँ
सुन री यशोदा तेरा ये कान्हा
यमुना तट पे बंसिया बजा के छेड़े
और चीर चुराये ना
माखन की सौगंध मईया
मैं नहीं छेड़ा
खुद ही ये ग्वालिनियाँ जबरन
पकड़ाई बंसी,कहतीं बजाओ ना
मैं जब बजाया तो सुधबुध खो बैठी
खिसकी चुनरियाँ तो मेरी क्या गलती इसमे
तुम ही बताओ ना
आई उलहना सुनाने यशोदा माँ को
ब्रज की ग्वालिनियाँ
सुन री यशोदा,तेरा ये लल्ला
माखन चुराता है घर-घर जा जाकर
तू क्यों इसको समझाये ना
गोकुल की सौगंध मईया
मैं ना चुराया
मेरे घर में क्या कमी है जो मैया मेरी
मैं माखन चुराऊँगा
मटकी का मटकी माखन भरा पड़ा है देखो
क्यों मैं चुराऊँगा
ये सारी ग्वालिनियाँ जबरन पकड़ के मुझे
मुँह में माखन लगाई ओ मईया मेरी
मैं झुठ बोलूँ ना
मोहनी सूरत पे टपका जो आँसू तो
फटा कलेजा यशोदा का
वो चिढ़ कर बोली
क्यों जलती है मेरे कान्हा से ग्वालिनियाँ
जरा मुझको बताओ ना
सच ही तो कहता है मेरा सलोना
वो क्यों  माखन चुराऐगा
मटकी का मटकी माखन भरा पड़ा है
वो क्यों बाहर जाऐगा
सारी की सारी झूठ- मूठ का उलहना देकर
चाहती है मैं उसे पीटू और
 वो मजा ले लें
मै एैसी नहीं हूँ माँ
हँसते है कान्हा मैया के भोलेपन पे
देखो यहीं  है *माँ*!!




Saturday, February 20, 2016

मुझे हरबार बचाया

बज़्मे मय उसने बुलाया
तो कुछ याद आया
थोड़ी जब उसने पिलाया
तो उसकी सुन पाया
अर्सए दराज़ तक
जिन्हें रूह में दफनाया था हमने
हालेदिल उसने बताया
हमें समझ आया
हम समझते रहे बेवफ़ा जिन्हें
सरे बाज़ार रूसवाईयाँ दी जिन्हें
बात जब खुलकर आया
बहुत तड़पाया
उसने क्या- क्या न किया हमारे खातिर
हमारे वजूद को जिन्दा रखने के खातिर
हारकर मुझको जिताया
बहुत शर्म आया
अब क्या-क्या हिसाब दूँ
उनकी मेहरबानियों का
ख़ुद की नज़रों में
आज इतना गिर गया
जब नापाक कहकर उसे
सबने बुलाया
मैं कैसे सह पाया
मेरी ज़िंदगी बनाकर
ख़ुद निकल पड़े
एक एैसी राह पे
जिसकी न कोई मंज़िल
न कोई रास्ते
साथ दूँ भी तो कैसे
मेरी नफरत ने
दुजा आश्याँ बसाया
बहुत पछताया
मेरी ज़िंदगी आज
किसी और की अमानत है
उनको भी हमसे ही मोहब्बत है
कैसी दो राहों पे आया
ख़ुद पे ही कहर ढ़ाया
गुनाहगार हम थे
सज़ा भी हमें ही मिलती
मगर उनकी दुआँओ में
वो कशिश थी
मुझे हर बार बचाया
खु़दा नज़र आया !!


बज़्मे मये- शराब की महफिल,
अर्सये दराज़ -काफी लंबे समय तक

Friday, February 19, 2016

दर्या में डुबने से बेहतर है

लड़का --- तेरी चाहत में डूबने का ग़म
              दर्या में डूबने से बेहतर है
लड़की --- तेरी चाहत का दिवानापन
              मुझे और समझने की ज़रूरत है
लड़का ---सुबह नाम तेरा लेकर ही जगता हूँ मैं
             सारा दिन बस तुम्हें याद करता हूँ मैं
             रात को तुम्हें ख़्वाबों में लाके सनम
            ओढ़ के चादर सो जाता हूँ मैं
            बताओ ऽऽऽ
            मुझे और कितना समझने की ज़रूरत है
लड़की --- इन्हीं बातों के मन का मरम
             थोड़ा और परखने की ज़रूरत है
लड़का ---किसी फूल पे ना मँडराता हूँ मैं
            सामने दिख भी जायें नज़रें झुकाता हूँ मैं
             लोग हँसते हैं मेरी इस दिवानगी पे
             तुम्हें और कैसी चाहत की ज़रूरत है
लड़की ---तुम्हारी बातों की झलक में है बालपन
             तुममे थोड़ी संजीदगी की ज़रूरत है     लड़का --- ऐसा कुछ भी नहीं जानता हूँ मैं
           दिल में रहते हो तुम बस यहीं मानता हूँ मैं
            मेरी चाहत को यूँ नज़रअंदाज न करो
           तुम्हें वफ़ा या बेवफ़ा की ज़रूरत है
लड़की ---मन की उलझन बन गई है मेरी सौतन
             अभी वक़्त पे छोड़ना मुनासिब है
लड़का ---लोग पूजते हैं मूरत जाकर मंदिरों में
             मैं पूजता हूँ दिल में बिठाकर तुम्हें
            रब दिखता है यारा तुझमे ही कहीं
           आँखों से बस तुम्हें पढ़ने की ज़रूरत है
           तेरी चुप्पी कहती है
           तू है रज़ामंद
           अब मुझे कुछ भी नहीं
           सुनने- समझने की ज़रूरत है !!



कोई तो ऐसी बात हो

कोई तो ऐसी बात हो
सनम हमारें साथ हों
मुस्करा लें पल दो पल भी
ऐसी एक मुलाक़ात हो
ज़िंदगी में भी खुमार हो
ज़ाहिर हमारा प्यार हो
गुलज़ार हो गुल पल दो पल भी
आँखो से ऐसी बात हो
मिलता नहीं मुकम्मल जहाँ
इस बात का ख़्याल हो
ज़िंदगी के हर मुक़ाम पे
कोशिश मगर हज़ार हो
दिलबर से कोई बात हो
ऐसी हसीन रात हो
बाँहों में गुज़रे पल दो पल भी
वो पल हमारे पास हो
इन्कार हो इक़रार हो
चाहें भले तकरार हो
साया हमारा चले उधर
जहाँ सनम का प्यार हो
मरने का न मलाल हो
चाहत मेरी मिसाल हो
दीदार हो बस उनका पल दो पल भी
बेचैन रूह को क़रार हो !!

Tuesday, February 16, 2016

उनकी चाहत के मैं काबिल नहीं था

उनकी चाहत के मैं काबिल नहीं था
कैसे कह दूँ कि वफ़ा ही नहीं था
माँगी थी एक अदना- सी चीज़ उसने
छोड़ दो मुझे
गर मोहब्बत है ज़रा- सा
कैसे तोड़ देता उसका मासूम-सा दिल
कह दिया जाओ ख़ुश रह लो ज़रा- सा
क्या करता
था क्या मेरे पास उसे देने के लिए
मोहब्बत ने जहाँ छोड़ा ज़रा-सा
मुफ़्लिसी ने वही तोड़ा ज़रा-सा
यकीं था बहुत मुझको अपनी वफ़ा पे
कहीं राहों में दिख जाऐगी तो
मुस्करा के देखेगी ज़रा- सा
टूटकर बिखर गया उस दिन मेरा दिल
गैर की बाँहो में जब वो
शरमा कर सिमट गई ज़रा- सा
सामने मैं खड़ा था
अज़नबी-सी वो गुज़र गई
जैसे देखा न हो मुझको
ख़्वाबों में भी ज़रा- सा
किस कसूर की सज़ा थी मेरी ये
मोहब्बत की या मासूमियत की
बता जायें  ज़रा- सा
रात काटी मैंने बेचैनियों में
सोचा कह दूँ अलविदा सबको ज़रा-सा
मगर फिर दिल से ये आवाज आई
जिसने जानी न किमत वफ़ा की
उस बेमुरव्वत के नाम कर दूँ
ये जीवन भी क्यों ज़रा- सा
इस ज़िंदगी पे हक़ मेरा कहाँ तक
जिसने पैदा किया,पाला उन्हें मैं
बदले में ज़ख्म क्यों दे दूँ ज़रा-सा
जाकर बहुत रोया मैं माँ के सीने से लगकर
उसने सिर पे जब हाथ रक्खा
सारे ग़म मेरे काफूर हो गये हवा-सा !!

काफूर होना- गायब होना, मुफ़्लिसी- गरीबी
अदना- बहुत छोटा

Monday, February 15, 2016

मैं हूँ सुन्दर या तुम हो राधा प्यारी

पूछ दिया एक दिन कान्हा ने यूँही
चिढ़ गईं राधा रानी हमारी
मैं हूँ सुन्दर या तुम हो राधा प्यारी
दर्पण हाथ लिये यदुनंदन
सच-सच बताओ
वृषभान की दुलारी (राधा के पिता वृषभान)
मैं हूँ सुन्दर या तुम हो राधा प्यारी
मैं क्या बोलूँ,तुम खुद ही देखो
मैं गोरी,तुम साँवले बिहारी
मैं हूँ सुन्दर या तुम हो राधा प्यारी
मेरा बदन जैसे चँदा की चाँदनी
तुम्हारा बदन जैसे रात काली- काली
मैं हूँ सुन्दर या तुम हो राधा प्यारी
तुम कहलाते माखनचोर हो
मै चितचोर तुम्हारी मुरारी
मैं हूँ सुन्दर या तुम हो राधा प्यारी
तुम्हारी मुस्कान पे मरती गोपियाँ
मेरी मुस्कान पे आप मरते गिरधारी
मैं हूँ सुन्दर या तुम हो राधा प्यारी
हम पहनते हैं चुनरी- गहनें
तुम ओढ़ते हो काली कंबल बिहारी
मैं हूँ सुन्दर या तुम हो राधा प्यारी
कान अपनी पकड़ मनाते कान्हैंया
मान जाओ माता कीर्ति की दुलारी
मैं हूँ सुन्दर या तुम हो राधा प्यारी
जीत देख इतराईं राधा रानी
वार किया अंत मे अति भारी
मैं हूँ सुन्दर या तुम हो राधा प्यारी
तुम्हारे सिर पर मोर-मुकुट है
मेरे सिर पर साक्षात् आप बनवारी
मैं हूँ सुन्दर या तुम हो राधा प्यारी
बाँध रखा जिन्होंने सबको मोहपाश में
आज खु़द उस फंदे में बँधे खड़े गिरधारी
मैं हूँ सुन्दर या तुम हो राधा प्यारी
कैसी- कैसी लीला प्रभू रचते
दोनो तरफ प्रेम की गति गाढ़ी
मैं हूँ सुन्दर या तुम हो राधा प्यारी
हार गये हर तर्क में कान्हा
मंद मंद मुस्काये  मुरारी
कौन जीता है अपनी प्रिय से
क्यों जलती है मेरी राधा प्यारी
तुम हो सुन्दर सिर्फ तुम ही राधा प्यारी !!



Sunday, February 14, 2016

शब्द नि:शब्द थे उसके

शब्द नि:शब्द थे उसके
जु़बां खुली भी थी और नहीं भी
बच्चों की ललचाई नज़रें
रोटीयों पर थी
एक माँ की कातर दृष्टि बच्चों पर
शब्द नि:शब्द थे उसके

बड़ी मुश्किल से दो-चार रोटियों भर
आटा गूँधा था उसने
सोची चलो न से हाँ ही सही
कुछ तो निवाले पेट में रहेंगें इनके
शब्द नि:शब्द थे उसके

वह रोटियाँ सेंकती गई
बच्चों की ललचाई नज़रें
उस पर ही टिकी रहीं
शायद उन्हें डर था
माँ कहीं ज्यादा निवाले
किसी एक को न खिला दे
शब्द निःशब्द थे उसके

माँ की आँखों मे चमक थी
भूखे बच्चों को कुछ खिला पाने की
बच्चों की आँखों में भूख थी
जल्द उन रोटियों को पा जाने की
शब्द नि:शब्द थे उसके

वह रोटियाँ परोसने लगी कि
भीड़ की एक टुकड़ी
आँधी की तरह आई
एक आदमी किसी की
जेब काट भाग रहा था
उसके पीछे थी लोंगों की भीड़
शब्द नि:शब्द थे उसके

इससे पहले  वो
बच्चों और रोटियों को ले
पीछे हट पाती
भीड़ ने उन्हें रौंदना शुरू कर दिया
जख़्मी हुई माँ और भूखे बच्चों को
अपनी फ़िक्र नहीं थी
क्योंकि भूख की पीड़ा
उससे कहीं असहनिय थी
शब्द नि:शब्द थे उसके

वह उठे और रोटियाँ ढूँढ़ने लगे
तबतक रोटियाँ
कुछ मिट्टी ,कुछ पाँव तले
कुछ कुत्तों के निवाले बन चुके थे
माँ का कलेजा फटने लगा था
शब्द आँसू साथ बह चले थे
सूखी छाती से लगे बच्चों को
न दूध मयस्सर हो सका था न रोटी
शब्द निःशब्द थे उसके
जु़बा खुली भी थी और नहीं भी !!!

                                     







Saturday, February 13, 2016

ऐसे दिलफेंक आशिकों से खु़दा बचाये

ऐसे कैसे दे दूँ दिल अपना
जब तुमपे एतबार नहीं
जरा ठहर जाओ शायद दिल को
तुमपे यक़ीं आ जाये
फिर बढ़ाना प्यार की बातें आगे
अभी लाज़िमी है हम
एक- दुजे को तो समझ पायें
प्यार में बेवफा सनम को सहना पड़े
इससे बेहतर है खु़द को थोड़ा वक़्त दे
या फिर सँभल जायें
अगर तुम दिन को रात कह दो
तो क्या मैं मान लूँगी
इतना यक़ीं करने के लिए मुमकीन है
खु़द से ज्यादा यक़ीं तुम पे हो जायें
तुमने कह तो दिया
तेरे लिए चाँद-तारे तोड़ लाऊँगा
बात ऐसी करो जिसपे यक़ीं किया जाय
प्यार फूलों की सिर्फ सेज नहीं
काँटें भी शामिल हैं
यक़ी तब हो जब
हर लम्हा कोई साथ निभाये
बुजु़र्ग कहते हैं सच्ची बात
जवानी अंधी होती है
जोश में होश गर खो बैठे तो
वो सँभालते जाये
जो दिल लगाकर कह दें
क्या करें मज़बुरी है,मुझे भूल जाओ
तौबा ऐसे दिलफेंक आशिकों से
खु़दा ही बचाये !!

Friday, February 12, 2016

मुस्कराना सीख लिया है -----

कोई कह दे ख़िजाओ से
बहार आये या ना आये
हमने मुस्कराना सीख लिया है !!

अहम की परत -------

ऐसा नहीं है कि दोनों तरफ प्यार नहीं है
कुछ समझ की कमी है
कुछ अहम की परत जमी है !!

लोग क्या- क्या कर गुजरते हैं ------

ज़िंदगी बहुत छोटी है
लोग कह तो दिया करते हैं मगर
इसी छोटी-सी ज़िंदगी में लोग
क्या-क्या कर गुजरते हैं
फरेब,बेईमानी,दुश्मनी,नादांनी
अपनो का आसूँ पोछने वाले ही अक्सर
आँखो में आसूँ दिया करते है !!

इक तेरे दीदार की आश -----

यादों की गलियों से रोज गुज़रते हैं
इक तेरे दीदार की आश में
शायद तुम पहचान लो हमें
दिल तमन्ना यही करता है !!!

किसी के इंतज़ार में ----

जवानी के दिन जल्दी गुजर जाते हैं
बुढ़ापे की रातें कटती नहीं
जैसे कोई पेड़ बरगद का खड़ा हो
किसी के इंतज़ार में !!

इंसान की फ़ित्रत ----

वक़्त बता देता है
इंसान की फ़ित्रत
सारे नक़ाब चेहरे से उतर जाते हैं
जिन्हें हम शुमार करते थे
बहुत अपनों में
वही चेहरे कातिल से नज़र आते हैं !!

तकलीफ होती होगी ------

ज़िंदगी में वो
जिनपे आप सबसे अधिक भरोसा करते हैं
 वो दगा दें जायें
इतनी तकलीफ शायद मौत को
क़रीब देखकर भी नहीं होती होगी !!

हस्तियाँ मिट जातीं हैं ----

'स्वाभिमान'शब्द छोटा है दोस्तों
मगर जो इसे जीते हैं
वो जानते हैं
हस्तियाँ मिट जाती है
इसे बचाते-बचाते !!

इतना तो सनम मुझे आता नहीं

शब्दों को सँजाकर पेश करू
इतना तो सनम मुझे आता नहीं
जु़बा से बोल देता हूँ दिल की बातें
आसान है ये समझना भी समझाना भी
कुछ बातों को पर्दा दिजिए
बढ़ जाती है उसकी ख़ुबसूरती
पन्नों पर लिखी कुछ बातों की
अलग ही अहमियत होती है कभी-कभी
अब कौन करे मेहनत इतनी
पहले सोचे फिर पन्नों पे लिखे
आओ बैठो तुम पहलू में
कह देता हूँ सारी बातें यहीं
बड़ी बेशर्म आपकी ये चाहत है
क्या जानते नहीं बातें ये भी
लोग आसमां से तारे तोड़कर
लाने की बातें करते है
आप इतनी-सी बात न मान पाये मेरी
मैंने क्या सौ बार मोहब्बत की है
जो माहिर हूँ हर मुआमले में
बस ढ़ाई अक्षर की बात तो है
मैं थक गया,सुन लो न हसीं
ओह,हार गई मैं भी समझा कर
कह डालो  मन की बातें यहीं
मगर याद रखना
बहुत शिद्दत से निभानी पड़ती है
प्यार ,रिश्ते या फिर दोस्ती !!




Wednesday, February 10, 2016

आपस में प्रेम करो देशप्रेमियों

मत लड़ों आपस में देशप्रेमियों
देश को तुम्हारी ज़रूरत है
तिरंगा हमारा यह नहीं पूछता
उसे ऊँचाई पे लहराने वाला
किस धर्म का है और कौन है
हर मुल्क में,हर धर्म में
हर तरह के इसां होते हैं
कोई भी ये कह नहीं सकता
किसके मन के अंदर क्या है
धरती हमारी माता है जब
रिश्ते मे हम भाई-भाई हैं
मिलकर रहना सीख ले वरना
हमारे देश की बड़ी तबाही है
ये सत्य और सटीक बात है जो
हमारे बुढ़े-बुजु़र्ग कह गये
दो लोगों के घमासान का फायदा
अक्सर किसी तीसरे ने ही उठाई है
भारत ही ऐसा देश है जहाँ पे
हर मज़हब के लोग
इज़्जत की रोटी खाते हैं
जाकर रहकर देख ले कोई अन्य किसी मुल्कों में
क्या इतनी ही इज़्जत पाते हैं
जब हमसब का एक ही मक़्सद
तिरंगे को ऊँचा रखना है
बाकी बातें आपस की आपस में
सुलझा ले तो अच्छा है
आजादी की जंग मे शामिल
भगत सिंह,असफाक उल्ला,चंद्रशेखर,राजगुरू
सबकी कुर्बानियाँ क्या यूँ ही मिट जाऐंगीं
जलियाँ वाले बाग की खूनी होली
किताबों मे दफन होकर रह जाऐगीं
एक बात तो सोच के देखो
उस वक़्त हमारे बीच भाईचारा ना होता
तो क्या हमारा भारत कभी आजाद होता
आज के ऐशोआराम की ज़िंदगी
क्या हमसब के पास होता
सरहद पे मरमिटने वालों का
सिर्फ एक ही धर्म के होता है
ना हिन्दू,मुस्लिम ना सिक्ख,ईसाई
नाम उनका भारत माता के लाल
लहु उनका मातृभूमि को समर्पित
और धर्म उनका तिरंगा की
हिफ़ाजत करना होता है !!!




रो-रो कहतीं है ब्रज की सखियाँ

रो-रो कहतीं हैं ब्रज की सखियाँ (friends)
हाय श्याम-सुन्दर से लड़ गईं अखियाँ(eyes)
जाते समय ये कहा था मोहन ने
परसों मिलेंगें हम मधुवन में
पल-पल ना भूलू सुरतियाँ (face)
हाय श्याम सुन्दर से लड़ गई अखियाँ
रोतीं हैं अखियाँ मन घबरायें
पनघट पे कान्हा क्यों नहीं आयें
रो-रो मैं काटी सारी रतियाँ (night )
हाय श्याम-सुन्दर से लड़ गई अखियाँ
जब से गये मेरी खबर भी ना लियें
मैं लिख-लिख के भेज रही पत्रियाँ (letter)
हाय श्याम-सुन्दर से लड़ गई अखियाँ
बरस रही बरखा(rain)काले बादल छाये
पनघट पे कान्हा अबतक ना आये
कब से मैं भेज रही खबरियाँ (message)
हाय श्याम-सुन्दर से लड़ गई अखियाँ
रो-रो कहतीं हैं ब्रज की सखियाँ
हाय श्याम-सुन्दर से लड़ गई अँखियाँ !!

Tuesday, February 9, 2016

कैसे जिन्दा हूँ तन्हा ----

वो शब्द कहाँ से लाऊँ
जो दिल का हाल
पन्नों पर बयां करे
कैसे जिन्दा हूँ तन्हा
ये भी सोचने की बात है !!

जीवनसाथी हैं आप -----

जाड़े के मौसम में
सूरज की गर्मी हैं आप
गर्मी में शीतल चाँद की
रौशनी हैं आप
बारिश के बरसने पे
घने दरख्तों की छाया हैं आप
पतझड़ में भी
रंगीं बहारों का मौसम हैं आप
साथी मेरे हर ग़म-हर खु़शी
के साथी हैं आप
क्योंकि जीवनसाथी हैं आप
मेरे जीवनसाथी !!

बुरा करने की चाहत नहीं ----

बुरा करने की चाहत नहीं
अच्छा कुछ हो ये मुमकिन नहीं
खुदा ज़िंदगी बस इतनी देना
गिरू ना खु़द की नज़रों से कभी !!

किससे दिल की बातें कहें -----

किससे दिल की बातें कहें
कोई सुने या फिर ना सुने
खु़द से खु़द की बातें कहकर
ग़म छुपा लिया करते हैं
कुछ बातें पन्नों पर लिखकर
मुस्करा लिया करते हैं !!

आशियाँ बिखर जाएगा

वक़्त बदला-बदला-सा है
लोग बदले-बदले-से हैं
तुम बदले-बदले-से हो
हम भी बदले-बदले-से हैं
मगर कभी-कभी लगता है
गुज़रा वक़्त ही सही था
जब तुम साइकिल की घंटियाँ बजाते
घर आते थे
धीरे से दरवाजा खटखटाते थे
सँज-सँवर के मैं वही खड़ी
बेसब्री से तुम्हारा इंतजार कर रही होती थी
दरवाजा खुलते ही हमदोनों
एक-दुसरे को देख मुस्कुराते थे
कितने हौंलें से थपथपा कर मेरे गालों को
कहते थे
मैडम जी ज़रा गर्मागर्म चाय तो बनाईयें
मेरे पल्लू में पोंछ कर अपने हाथों को
किसी बहाने से मुझसे लिपट जाते थे
मैं भी चालाकी दिखाकर
तुमसे कहती थीं
देखो बच्चें आ गयें
तुम घबरा कर पीछे सरक जाते थे
हँसते-हँसते हम वक़्त को भी भूल जाते थे
मेरे हाथों से बने गर्मागर्म खाने को
कितना स्वाद ले लेकर तुम खाते थे
मुझको साईकिल पे बिठा कर के
हँसी वादियों की
फिर सैर करवाने ले कर जाते थे
दस-दस पानी-पुड़ी मैं अकेली खा जाती थी
और तुम दूर से बस मुझे देखकर
मुस्कराते थे
बर्फ के गोले के लिए
हममें झगड़ा हो जाता था
तुम कहते थे नहीं खाना है मगर
मेरी जिद्द के सामने
तुम हार जाते थे
उन लम्हों में हमारे पास
बहुत-सी चीजों की कमीयाँ थीं
मगर प्यार इतना था कि
उस बुरे वक़्त को भी हम
खुशी-खुशी साथ काट जाते थे
तुम समझ न पाये
मेरे मन में छिपी बातों को
जिसे वर्षो से मैं तुम से कहना चाहती थी
जीने के लिए दौलत बहुत कुछ है मगर
जीवन के लिए दौलत ही सब कुछ नहीं
तुम मुझे इतना सा भी न समझ पाये
मैने माँगी थी तुमसे दौलत बच्चों के लिए
इतना,जितने में साथ-साथ हमारा
प्यार से गुज़ारा हो जाये
मुझे नहीं मालूम था कि
ये भी एक नशा है
जिसमें हो सकता है मेरा आशियाँ
बिखर जायें !!!


Sunday, February 7, 2016

आप विकल हैं भोले

आप विकल हैं भोले भंग खाने के लिए
मैं विह्वल हूँ गणपति गोद सुलाने के लिए
विलख-विलख कर गणपति रोता
माता मुझे सुला दे तू
प्रेम भरे और मधुर स्वरों में
लोरी मुझे सुना दे तू
गाऊँगी लोरी मैं उसे सुलाने के लिए
मैं विह्वल हूँ गणपति गोद सुलाने के लिए
मैं नहीं पिसूँ भंग आज
अब खोज लिजिए कोई उपाय
कमी नहीं है सुख-साधन का
जहाँ पड़ा है मेरा राज
आऐंगें बाबूजी मुझे लिवाने के लिए
मैं विह्वल हूँ गणपति गोद सुलाने के लिए
मैं नहीं पिसूँ भंग आज
अब खोज लिजिये कोई उपाय
इतना सुनकर भोले बाबा छोड़ सभी को
हो गये परायें
गौरी माँ जातीं हैं उन्हें मनाने के लिए
मैं विह्वल हूँ गणपति गोद सुलाने के लिए
आप विकल है भोले भंग खाने के लिए
मैं विह्वल हूँ गणपति गोद सुलाने के लिए !!
                         ॐ
       *जै राधेकृष्णा*जै सीताराम*
           
           


Saturday, February 6, 2016

परायेपन के एहसास तले

जिन गलियों में बचपन बितायीं
जिन गलियों में खेली-कूदी
जिन गलियों में सखी-सहेली
जिन गलियों में आम-निमकौड़ी
सब थे मेरे संगी-साथी
ज़िंदगी बस थी हरी-भरी-सी
          माता ने तहज़ीब सिखायी
          पिता ने ताक़ीद जतायी
          भाई-बहनों का था असीम प्यार
           वो दिन थे कितने लाज़वाब
बागों में झूले लगते थे
पेड़ों पर कोयल कूँकते थे
बड़े हक़ से भाई-बहनों से झगड़ती थी
सब मेरा है,मत छुना कहती थी
अब कैसे कह पाऊँगी मैं
            याद आया मुझको वो दिन
            कहती थी जब सखियाँ हिलमिल
           आएगा एक राजकुमार
           और उनके कुछ अपने
           संग ले जाऐंगें दूर सभी
           छिनकर तुम्हें  वो हमसे
सुनकर हँसी उड़ा देती थी
दिल को मैं बहला लेती थी
पर मन ही मन में डरती थी
जिन अपनों को छोड़ जाऊँगी
जिनसे रिश्ता जोड़ने जाऊँगी
जाने कैसे लोग वो होंगें
क्या हमसे वो प्यार करेंगें
              मैं तो अपने बाग का पौंधा
              पिता ने रोंपा,माता ने सिंचा
              वहाँ से लाई गई यहाँ पर
              मगर जड़ तो रह गया वहाँ पर
              क्या फिर से लग पाऊँगी मैं
बहुत ही प्यार,स्नेह की ज़रूरत होगी
बहुत ही अपनेपन की ज़रूरत होगी
बहुत ही सब्र से सिंचने की ज़रूरत होगी
क्या इतना सब कर पाएंगें वे
              मन में अनेकों आशा-निराशा को लिये
              पहुँची थी मैं वहाँ
              पहले से ही रिश्तेदारों का
              हुजूम बरपा था वहाँ
              उन सभी अपनों में वहाँ
              मैं ही बस परायीं थीं
              उस भीड़ में मेरी ज़रूरत
              किसी को भी नहीं थी
मैंने उनकी तरफ पहला क़दम बढ़ाया
उन्होंने दुत्कार दिया
दुसरी बार बढ़ाया
उन्होंने फिर दुत्कार दिया
तीसरा क़दम बढ़ाने की
मेरी हिम्मत न हो सकी
अंदर ही अंदर सूखने लगी
परायेपन के एहसास तले !!
                       

  

Friday, February 5, 2016

मर जाते यूहीं ------

उनकी मोहब्बत में हम
मर जाते यूहीं
फिर उन्हें खंजर की ज़रूरत
भला क्यों पड़ी !!

उनकी ख़्वाहिशों के चादर में -----

उनकी ख़्वाहिशों के चादर में
सिमटी है ज़िंदगी
समझना मुश्किल है
आखिर वो चाहते क्या हैं !!

बेटियाँ नहीं होती -----

क्यों लूटते हैं वो
अर्मानों की डोलियाँ
ख़ुदा क्या उनके घर
बेटियाँ नहीं होती !!

Thursday, February 4, 2016

मैं तो एक आईना हूँ

मैं तो एक आईना हूँ
तुम्हें इस बात से जलन क्यों है
हक़िक़त बयां करता हूँ
कोई इससे फ़िक्रमंद क्यों है
इसां कोई भी हो,मर्द या फिर औरत
सूरतें कैसी भी हो,गोरी या फिर काली
मुझे क्या
मैं बस मन में छिपी गंदगी को
उनकी आँखों में दिखा देता हूँ
लोग कहते हैं कि मैं खु़द ही साफ नहीं
इन बातों से मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता
ज़िदगी थोड़ी है ,क्यों नहीं समझते यारों
हमारे सामने से हट जाने से
क्या मुद्दा बदल जाएगा
तुम्हारी ये सोच है तो ये सोच अपने पास रखो
तुम्हारी इस सोच से
तुम्हें देखने वालो का
नज़रियाँ नहीं बदल जाएगा
जो अमर हो गये
इस दुनिया के वो महान् इंसां
वो भी तो हम जैसे हाड़-मांस के बने
इंसां ही थे
जिनकी अच्छाईयाँ हम
अबतक न भूला पाये है
कितनी कुर्बानियाँ दी थी,हम क्या- क्या याद करें
उनसब ने अपने अंदर के आईने को पहचाना था
नासमझ है जो मुझे अबतक नहीं जानते हैं
नकार दो मेरे वजूद को
तो भी एक बात तो है
कोई तो शक्ति है,एक रोज जहाँ जाना है
मुझे दुत्कार दो या फिर मुझसे प्यार करो
मुझे क्या
मैं तो एक आईना हूँ
टूटकर कभी भी बिखर जाऊंगा
फिर भी मेरे हर एक टुकड़ो पर
तुम साफ नज़र आओगे
मत चमकाओ सिर्फ सूरतें
अपनी सीरतों पे भी नज़र डालो
फिर पूछो अपने अंदर झाँककर
तुम्हारे अंदर का आईना साफ हुआ है या नहीं !!!


Wednesday, February 3, 2016

वो बैठे है गैरो की बाँहों में

अभी हमसे मिलने की फ़ुर्सत नहीं है
अभी हमें देखने की चाहत नहीं है
वो बैठे हैं गैरो की बाँहों में अये दिल
अभी उनको तेरी ज़रूरत नहीं है
        अभी रूप का एक सागर वो खु़द हैं
        है एक चाँद वो चाँदनी है हज़ारों
        ठहर जा अये दिल ढ़लने दे उम्र उनकी
        अभी उनका दिल उनके वश में नहीं है
अभी उनको मालूम नहीं प्यार क्या है
जो दे दूर तक साथ, वो साथी वफा है
भटकने दें उनको हसीं वादियों में
अभी उनको चाहत से मतलब नहीं है
         किया प्यार तूने ही एक बेवफा से
         भरोसा है क्यों उसकी झूठी वफ़ा पे
         भूला दें अये दिल वक़्त के साथ उनको
         कि कोई भी उनका भरोसा नहीं है
हुआ प्यार जितना निभाया भी उतना
समझता नहीं है मगर दिल दिवाना
ये नादां है कितना मरता उनपे
इसे और किसी की ज़रूरत नहीं है !!

Tuesday, February 2, 2016

कोई ख़्वाहिश बचे न सपना

आ जाओ क़रीब इतना
कोई फ़ासला न रहे दरमियां
मेरी साँसों को महका दो
मुझे बाँहों में जगह दो
कोई ख़्वाहिश बचेे न सपना
क्या सोच रहे हो इतना
किस बात की है ये उदासी
मैं साथ हूँ तेरे तब क्यूँ
तेरी आँखें है प्यासी
मिल जाओ हमसे इतना
बन जायें दो जिस्म एक जाँ
मेरी साँसों को महका दो
मुझे बाँहों में जगह दो
कोई ख़्वाहिश बचे न सपना
साजन मेरा जीवन तुम हो
तुमसे है ये जीवन मेरा
उसकी मर्जी वो जाने
वश नहीं है तेरा-मेरा
ना सोचो तुम ये इतना
प्यार मरता नहीं है हमनवाँ
मेरी साँसों को महका दो
मुझे बाँहों में जगह दो
कोई ख़्वाहिश बचे न सपना
माना मेरे दिन अब कम हैं
फिर भी किस बात का ग़म है
तेरी साँसों में जिन्दा हूँ
क्या यह एहसास कम है
ना जाओ दूर इतना
फिर हम चल देंगें दुसरे जहां
मेरी साँसों को महका दो
मुझे बाँहों में जगह दो
कोई ख़्वाहिश बचे न सपना
आ जाओ क़रीब इतना
कोई फ़ासला न रहे दरमियां !!

Monday, February 1, 2016

कितनी तन्हा थी वो

इस भरी दुनिया में कोई साथी नहीं था उसका
कितनी तन्हा थी वो
उम्र का तक़ाज़ा था या फिर वक़्त की मार
कि इतनी तन्हा थी वो
क्या कसूर था उसका
कहने को बच्चों की माँ थी
फिर भी तन्हा थी वो
हरवक़्त थामकर जिनकी उँगलियाँ
चलना सिखाया था जिन्हें
उनके पास ही वक़्त नहीं था उसके लिए
कितनी तन्हा थी वो
बैठकर तन्हाईयों में निहारा करती थी वो
घर कमरे दरवाजे खिड़कियाँ सड़के और गलियाँ
उसकी आवाज़े दीवारों से टकराकर
वापस उसके पास लौट आती थी
कितनी तन्हा थी वो
बचपन में बिटियाँ पूछती थी उससे
चाँद को देखकर --- ये क्या है माँ ऽऽऽ
वो मुस्कुराती हुई सौ बार बताती थी उसे
चाँद है ---- बेटे ऽऽऽ
आज वो एक सवाल पर झिड़क देती है उसे
कितना बोलती हो माँ,थोड़ा कम बोला करो
कितनी तन्हा थी वो
जिस बेटे के साईकिल के पीछे
भागते-भागते नहीं थकती थी
वो कहता है,छड़ी लेकर चला करो माँ
मेरा सहारा लेकर चलती हो तो लोग हँसते है
कितनी तन्हा थी वो
धन दौलत समाज में इज्ज़त
सबकुछ था उसके पास
बस अपने ही नहीं  थे पास
दो शब्द बातें करने को तरस जाती थी वो
कितनी तन्हा थी वो
कितनी बार उसने सोचा था
खु़द को खत्म कर देने की बात
मगर ईश्वर के दिये अनमोल जीवन का
तमाशा नहीं बनाना चाहती थी वो
इसलिए जी रही थी वो
कितनी तन्हा थी वो
शायद खुदाई को भी उसपे तरस आ गई थी
वो जा रही थी चार कंधो पर
आँखों में एक सुनी प्यास और
दिल में अपनों के साथ का अधुरा अर्मान लिए
क्यों इतनी तन्हा थी वो !!




रे मन तू कितना चंचल है

रे मन तू कितना चंचल है
कभी उड़ जाता नील गगन में
कभी भर लेता आलिंगन में
कभी बन जाता बालकृष्ण छवि
इठलाता गोकुल की गलियन में
किसी सरहद को तू न जानता
किसी मज़हब को नहीं मानता
क्या अमीर और क्या गरीब
बँध जाते तेरे सम्मोहन में
रे मन तू कितना चंचल है
बच्चे बुढ़े या जवान हो
चाहें कोई भी इंसान हो
सबके ऊपर धौंस जमाता
बचपना तेरा कभी न जाता
कभी अपना बन राह दिखाता
कभी परायों-सा नज़र भी नहीं आता
तुझे समझना तुझे परखना
किसी के वश से बाहर है
रहता सबके अंदर है
फिर भी तू सिकंदर है
रे मन तू कितना चंचल है !!