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Thursday, May 26, 2016

खरहा और कछुआ

एक था खरहा,एक था कछुआ
दोनो नंदनवन में रहते थे
दोनों में ठनी रहती तनातनी
ये वन के जानवर कहते थे

खरहा था ही बहुत शेखीबाज
कछुआ था सीधा-साधा

एक दिन शर्त लगी दोनों में
जो पहुँचेगा नदी पे पहले
वो पहनेगा ताज जीत का

जंगल में हुई प्रतियोगिता आरंभ
हाथी ने सीटी बजाई

खरहा दौड़ा सरपट आगे
कछुआ धीमी चाल चला
मगर थी उसने मन मे ठानी
सबक सिखाना है खरहे को
मेरे लिए ये काम बड़ा

कछुआ पीछे खरहा आगे
दौड़-दौड़ मुस्काता था
कछुए ने हिम्मत ना हारी
सीधा चलता जाता था

लगी राह में नींद सताने
शेखीबाज उस खरहे को
सोचा अभी तो दूर है कछुआ
कर लूँ मैं आराम ज़रा- सा

मंज़िल बहुत कऱिब है मेरे
कछुआ अभी भी दूर है मुझसे
जब तक वो पहुचेगा मुझतक
मैं पा जाऊँगा मंज़िल को

मन में ऐसा सोचकर वो
झपकी थोड़ी लेने लगा
कब गहरी उसे नींद आ गई
उसको भी ये पता न चला

जब वो जागा नींद से अपने
झुठी शान ना काम आई
जीता कछुआ अपनी सच्ची लगन से
मेहनत उसकी रंग लाई

हम बच्चे भी बने मेहनती
चाहें धीमी चाल चले
मगर आलसी बनकर ना
शेखीबाज कछुए की तरह
हायतोबा करें
                                
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Sunday, May 22, 2016

जब भाव नहीं हो

कभी गिरते को हमने सँभाला नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगें
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगे

कोई कहता वो है मंदिर में
मस्जिद गिरजा गुरूद्वारे में
पर रहता वो सबके अंदर है

वो नयन कहाँ से लाऐंगें !!

किसी अंधे की लाठी बना नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगें
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगें !!

उसके आगे सोना रख दो
उसके आगे हीरा रख दो
है भाव में उसके भोलापन

वह भाव कहाँ से लाऐंगें !!

किसी रोते के हमने हँसाया नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगें
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगें !!

हम भोग में उसको क्या देंगें
माखन मिश्री मेवा देंगें
वह भाव का भूखा क्या जाने

वो प्यार कहाँ से लाऐंगें !!

किसी भूखे को हमने खिलाया नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगे
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगे !!

कहते हैं कि हम भगवान के हैं
फिर शक़ भी उसी पर करते हैं
पूरी तरह ख़ुद को सौपे कहाँ

इल्ज़ाम लगा क्या पाऐंगें !!

किसी भटके को राह दिखाया नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगें
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगे

तेरा मेरा का विष है भरा
किस भाव से गीता सुनते हैं
जिस कथा का सार हो
प्रेम ,त्याग और कर्म ,दया

इन बिन गोविन्द कहाँ मिल पाऐंगें !!

किसी बेबस का हाथ थामा नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगे
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगें !!












Friday, May 20, 2016

तेरे जाने के बाद

मौत ना आई तेरे जाने के बाद
जाने कैसे हम तेरे बिन रह गये
बिन तेरे ना था एक पल भी क़रार
जाने कैसे हम वो पल भी सह गये

अपने आँचल की कोर से
हटा कर गर्द तस्वीरों की
देखते हैं अँखियाँ मीचे
कभी एकटक झलक तस्वीरों की
और करते हैं मन ही मन बातें हजार
जाने कैसे इन लबों को सिलते गये

डायरी के पन्नों में
अनगिनत बातें हैं प्यार की
उन पन्नों मे रखी है कुछ
गुलाब की पंखड़ी इक़रार की
जो कभी कभी करती है बेहद बेक़रार
जाने कैसे तन्हाई से कह गये

आँखो की काजल ना बहके
छुपाती बातें अपने मन की
जान ना जाये विरह के किस्से
बातें  हैै जो सिर्फ अंदर की
लोग हँसे बातें बनाकर बार-बार
इसलिए हम अश्क अपने पी गये

आई जब भी रूत सुहानी
कलियों से मिल भौंरे गाये
इस जीवन के सुनेपन मे
कोई सुर अब ना सँज पाये
करवटें बदलते रहे सारी रात
जाने कैसे तन्हा
सफ़र तय करते गये !!

                            
      
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Thursday, May 19, 2016

थक गया मैं ख़ुद से लड़ अये ज़िंदगी

एक सदा तो दे मुझे अये ज़िंदगी
तेरे बिन अब नींद भी आती नहीं

भटकता फिर रहा आबुदाने की तलाश में
माँग कर खा लूँ  मेरी आदत नहीं

मेहनत से मैं पीछे नहीं हटता मगर
तक़दीर की लकीरें भी साथ दे कहीं

धोखा,रिश्वत,बेईमानी छिपाकर काम करूँ
मेरा ज़मीर ये ग्वारा करता नहीं

ईमान की कुर्सी पर बैठ करता हूँ काम
देखता हूँ बिन मेहनत
कुछ पा लेते आसमान

मैं चकित हूँ कड़ी मेहनत कर के भी
मैं दूर तक नज़र आता नहीं

पाया था जो ज्ञान किताबों में
उन किताबों मे ये सब लिखा नहीं

डिग्री के साथ ये गुण भी चाहिये
ये किसी अखबार में छपा नहीं

देखता हूँ मुझसे पीछे आये जो
आज बड़े घरों में रहते और
बड़ी गाड़ियों में घुमते हैं

सोचता हूँ कौन से पन्ने पढूँ
किस विद्या मंदीर में जाकर ज्ञान लूँ
मुझमे भी हुनर ये आ जाये कहीं

थक गया ख़ुद से लड़ के अये ज़िंदगी
अब डर लगता है
उन कतारों में

मैं भी शामिल न हो जाऊँ कहीं !!






मेरे हाथों की लकीरें

मेरे हाथों की लकीरों में वो लकीर नहीं
जिसे दिल चाहें वो मिल जायें 
ये तक़दीर नहीं

चाहत के मुतज़िर ये निगाहें बेबस
छलकता प्यार पैमाना
ये तक़दीर नहीं

अब हर मुआमला जज़्ब है सीने में कही
उनतक पहुँचे मेरे जज़्बात 
ये तक़दीर नहीं

माजराये दिल उनके कदमों में उठाकर रख दूँ
बदल जाये तब भी हालात 
ये तक़दीर नहीं

मस्ते शबाब हैं वो क़द्र वफा की क्या जाने
मिले हमारे खयालात 
ये तक़दीर नहीं

बड़ी मुश्किल से जख़्मेजिगर संभाला है मगर
हरबार हो ये चमत्कार 
ये तक़दीर नहीं

हवाए समूम फैली है फ़िजा मे शायद
मोहब्बत बदल दे ये आसार
ये तक़दीर नहीं


अर्थ -----
मुतज़िर - इंतज़ार करने वाला
जज़्ब - आत्मसात् ,एक मे समाया हुआ
माजराये दिल -हृदय की व्यथा,प्रेम कहानी
मस्तेशबाब - जवानी के नशे मे चूर
खयालात - विचारधारा
जख़्मेजिगर - इश्क का जख़्म
हवाए समूम - जहरीली हवा
आसार - लक्षन
फ़िज़ा - वातावरण 

                                                                                                                       
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Wednesday, May 18, 2016

ज़िक्र कोई ख़ास तो छेड़ा नहीं

जिक्र कोई ख़ास तो छेड़ा नहीं
उनकी याद फिर दिला गये मुझे

जब चली ठंडी हवा छाई घटा
यूँ लगा दामन हिला गये मेरे

जब कभी बहकी शमाँ तो शक़ हुआ
खिड़कियों से वो बुला गये मुझे

जब कभी दर्पण उठा देखा अये दिल
आकर गालो को सहला गये मेरे

साथ बिते खुशगवार लम्हों में
गुलाब की खुशबू जगा गये मेरे

हँस के कोई बात जो सोची अगर
वो हँसी भी वो चुरा गये मेरे

जिन पलो मे सिर्फ बची कुछ यादे थी
ख्वाब के वो पल रूला गये मुझे

किस से करू शिकवा- शिकायत बता
जान थे और जान ले गये मेरे !!

                                      
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Monday, May 16, 2016

श्याम तुम मुरली बजाना छोड़ दो

श्याम तुम मुरली बजाना छोड़ दो
मुरली की धुन पे रिझाना छोड़ दो
नहीं आने वाली तेरी बातों में मैं
मुस्काके दिल को चुराना छोड़ दो

पनघट पे जाऊँ जब मै मटकी भरने
पीछे-पीछे मेरे आना ना पड़ने
श्याम तुम हमको सताना छोड़ दो
मुस्काके दिल को चुराना छोड़ दो

ऐसी वैसी ना तुम मुझको समझना
ना तेरी रूक्मणी ना मै राधा हूँ कृष्णा
श्याम तुम प्रेम जताना छोड़ दो
मुस्काके दिल को चुराना छोड़ दो

भोली भाली सी हैं हम सारी गोपियाँ
हमको सताकर क्या मिलता है कृष्णा
श्याम तुम हमको रूलाना छोड़ दो
मुस्काके दिल को चुराना छोड़ दो

मैं ही हूँ भोली जो बातों मे फँस गई
आधी उमर तेरी यादों मे कट गई
श्याम तुम ख़्वाबों में आना छोड़ दो
मुस्काके दिल को चुराना छोड़ दो !!








Wednesday, May 11, 2016

ढूंढती है ये नज़र

ढूंढ़ती है ये नज़र पाक मोहब्बत तेरी
तेरी नज़रों ने सिर्फ मेरी वफा माँगी थी

बहुत ही ख़ुश थी ये सोचकर मेरे ज़ाहिद
तुमने औरो की तरह और न कुछ माँगी थी

मुफ़्लिसी के फटे कपड़े जो पहने थे मैने
उन मजबुरियों पे लोगों की नज़रे आई थी

मैने हर उधड़न को हथेली से ढ़कना चाहा तो
कुछ बेशर्मीयाँ कऱिब चली आईं थी

मेरी आँखों मे छिपे शर्म और दर्द को पढ़कर
एक तुम ही थे जो हवा के झोंके बन आये थे

डालकर मेरे बदन पर इज्जत की चादर
खींच उस भीड़ से दूर ले आये थे

बहुत ही मद्धम -सी लौ दिल मे जगमगाई थी
कोई सवाल ना कोई जवाब दरम्या था
सिर्फ आँखो की गहराईयाँ समाई थी

रेत के बिछौने पे डाल चादर बादलो की
रात आँखो आँखो मे ही काट पाये थे

दो लफ़्ज सुनने के लिए तुमसे मेरे लब जो हिले
चुप रहने का इशारा कर
एक घरौंदा वफा का रेत पर बनाये थे

लगी झपकी आँखें खुली तो देखा चाँद गुम है
सुरज की रौशनी सागर से मिलने आये थे

वहाँ सिर्फ तन्हाई थी और थी तड़प लहरों की
वो घरौंदा भी बह गया था जो तुम बनाये थे

दूर तक कदमो की कोई तेरी निशाँ ना थी
तुम फरिश्ता थे या दर्द बनकर आये थे

एक सदा मिश्री मे लपेटी हुई तुमसे सुनने की
बस इतनी चाहत थी
तुम क्यों नहीं समझ पाये थे

आज भी उस चादर में सिमटी उन यादों को
ताजा रक्खा है मैने बासी होने ना दिया

रोज गुज़रती हूँ उस राह से
पूछने लहरों से तेरा पता
शायद मिल जाओ कभी
तो कह दूँ तुमसे
वापस ले जाओ
अपनी चादर और यादों के पल
और लौटा दो मेरा दिल जिसे
गलती से साथ अपने ले आये थे !!





Tuesday, May 10, 2016

वो शाम की रवानी थी

वो शाम की रवानी थी या तेरे आँचल की घटा
लहरा दिया था तुमने बहक उठी थी हवा
उफ़ तेरी नज़रो के तीर से घायल हुआ यूँ
तेरी बाँहों में आकर गिरा महक उठी फिज़ा

आहिस्ता आहिस्ता बाँहों का सहारा देकर
मुझे मुझ से जो संभाला  तुमने
आसमां मे बिजली सी चमकी
और असर दिल पे हुआ

अब तो साँसे भी थम जाये तो कोई शिकवा नहीं
रब से माँगी थी ज़रा-सी खुशी बेशुमार मिला

चाँद के उजाले में  जुल्फों की लटे भींगी हुई
ओस की बूँदों-सी जब मेरे चेहरे पे पड़ी
चाँद तूने देखा नहीं
या तुझे फुर्सत ही नहीं
वरना उस रात तू भी ये कहता
वाह तुझे भी क्या चीज तेरी मुक़द्दर से मिला

खुबसूरत है वो जैसे तराशा हुआ ताजमहल
उसकी हँसी झरनें की-सी कलकल
आँखे हैं सागर की गहराई सी
होट गुलाब की पखड़ी-सी कोमल
जिसे फ़ुर्सत से तराशा हो ऊपर वाले ने
चाँदनी रात मे जो करती है और भी घायल
डर लगता है उसके कऱिब जाने से
टूट न जाये कोई सपना जो हकिक़त से मिला

अये चाँद तेरे उजाले की ज़रूरत क्या है
जा छिप जा बादलों में
मेरी  चाँदनी मेरे पास है और उसकी रौशनी भी

आज कह दूँ पूरे कायनात से
कि हाँ मैं मोहब्बत करता हूँ बेपनाह मोहब्बत
ये मुक़द्दर भी मुझे मेरी मोहब्बत से मिला !!











मै निखर रही हूँ

तेरी शरण में आकर मै अब निखर रही हूँ
लोहा थी मै तो दाता पारस अब बन रही हूँ

तुम बिन कही नहीं था जग मे मेरा सहारा
तुमसे लगन लगी तो जग भी हुआ हमारा
भटकती फिरती थी जाने किन अंधेरों में
पायी जब तुम्हे तो जीवन लौ जगमगाया

प्रभू नाम के सुमिरन तले मैं भी सँवर रही हूँ
लोहा थी मै तो दाता पारस अब बन रही हूँ

जब राम बनकर आये शीला अहिल्या तारा
केवट की नाव बैठे दे दिया उसे किनारा
शेबरी के जुठे बैर बन गये संजीवनी बूटी
लक्ष्मण के प्राण बचाये ऐसी थी तेरी माया
रावण को मारकर के विभीषण को बचाया

प्रभू सत्य के प्रकाश तले मै भी चमक रही हूँ
लोहा थी मै तो दाता पारस अब बन रही हूँ

जब कृष्ण बन कर आये कैसी रचायी लीला
कंस को मारकर कर माता देवकी को बचाया
मथुरा मे जन्म लेकर गोकूल मे थे सिधारे
बिना जनम दिये तुमको यशोदा बनी माता
द्रोपदी की लाज रख ली जब उसने तुम्हें पुकारा
मीरा प्रेम को तुमने अमर कर डाला

प्रभू प्रेम के मिठास तले मै भी छलक रही हूँ
लोहा थी मै तो दाता पारस अब बन रही हूँ

जब शिव बनकर आये विषधर गले लगाये
समुद्र मंथन मे देवताओ को बचाये
विष की प्याली पीकर  नीलकंठ कहलाये
गणपति को पूजा मे पहला स्थान दिलाये
अपनी अमर कथा से
दो कबूतरों को अमरता दिलाये

प्रभू नाम के एक जाप तले मै भी दमक रही हूँ
लोहा थी मै तो दाता पारस अब बन रही हूँ !!






Tuesday, May 3, 2016

इस शहर से अच्छा था मेरा गाँव

सँजती थी महफिलें और
हँसी ठहाकों से गुंज उठता था मेरा ठाँव
बहुत ही प्यारा बहुत ही सच्चा
इस शहर से अच्छा था मेरा गाँव

अतीत की गहराईयों से गुज़रो तो
आज भी मन को ठंडक पहुंचा जाती है वो छाँव
बहुत ही प्यारा बहुत ही सच्चा
इस शहर से अच्छा था मेरा गाँव

शहर की सड़कों पर दौड़ती-भागती ज़िंदगियाँ
खुद मे सिमटती-सिकुड़ती ज़िंदगियाँ
वक़्त के एक-एक लम्हें को तरसती ज़िंदगियाँ
धूल-धक्कड़ प्रदुषण के बीच आज भी
तलाशती है गाँव की हरियाली
ताजी शुद्ध हवा और अपनेपन का भाव
बहुत ही प्यारा बहुत ही सच्चा
इस शहर से अच्छा था मेरा गाँव

वो कोयल की कू कू वो पपीहे की पी पी
चिड़ियो की चहचहआहट
वो पत्तों की चरचर
हर नुक्कड़ पर चाय,पान की दुकानें
वो खाली हरा भरा मैदान
सुबह जगने के लिए
अलार्म की जरूरत नहीं पड़ती थी
मुर्गे की बाँग और मंदीर की घंटियो से
गूँज उठता था पूरा गाँव
बहुत ही प्यारा बहुत ही सच्चा
इस शहर से अच्छा था मेरा गाँव

मगर शहर की प्रदुषित हवा ने
ढूढ़ लिया है मेरा छोटा सा ठाँव
और बर्बाद कर देना चाहती है
प्रदुषण फैलाकर
मेरे सपनो का गाँव
कारखाने फैक्टरियाँ,होटल
और बड़ी बड़ी इमारते बनाकर
छिन लेना चाहती है
शुद्ध हवा शुद्ध वातावरण
ऐसे प्रदुषण फैलने से
कैसे फिर बच पाएगा ये हरा भरा गाँव
गाँव के न रहने पे छिन जाएगा
सादगी आैर भाईचारे का भाव
हवाओ मे फैली गंदगी
मिटा देगी जीवन
और खत्म हो जायेगा जीवन का नाम

                                                               
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Monday, May 2, 2016

एक श्याम नाम का सहारा

मन की घोर झंझावातों से
छुटकारा मिल जाये
एक श्याम नाम का जब
सहारा मिल जाये

सागर में डोलती कश्ती को
किनारा मिल जाये
एक श्याम नाम का जब
सहारा मिल जाये

उस साँवले सलोने
की है गजब ही माया
तुम मीरा बन जाओ
वो श्याम दौड़ा आया
बिन माँगे कुछ अपना
गुज़ारा मिल जाये
एक श्याम नाम का जब
सहारा मिल जाये

मुरली की धुन प्यारी
ओ श्याम के पुजारी
राधा का नाम जप लो
हर लेंगीं दुख वो सारी
राधा के बिना कोई
धनश्याम नहीं पाये
एक श्याम नाम का जब
सहारा मिल जाये

दुख मे बहुत ना टूटो
सुख मे ना बहुत फुलो
जीवन है चार दिन का
कुछ नेकियाँ भी कर लो
ये सार ज़िंदगी का
जो समझे श्याम पाये
एक श्याम नाम का जब
सहारा मिल जाये!!














दर्देदिल की दवा माँगी थी

दर्देदिल की दवा माँगी थी
मुहब्बत के बदले वफ़ा माँगी थी
जख़्मों पर नमक छिड़क चल दिये
जिनके लिये कभी दुआ माँगी थी

इंतजार के अनगिनत लम्हें
गुज़ार दिये जिनके इन्तज़ार में
वो आये मगर
कहकर चल दिये कि फुर्सत नहीं
ताउम्र जिनके इंतज़ार में
काट देने की सज़ा माँगी थी

हाय वो जालिम नज़र थी
उस सूरत मे वो कशिश थी
भूल न पाया दिल जिसे अबतक
मेरी आँखो में जिसने कभी
रहने की जगह माँगी थी

भटकती रही विरानों में
जलता रहा मन तन्हाई में
पूछता रहा  ज़ख़्मखुर्द दिल से
क्यो सज़ा दे रही खुद को अबतक
जिसने परछाईयाँ भी ना देखी मुड़ के
उस शख़्स की हरवक़्त खैरख़्वाह माँगी थी

काश दिल दो चार होते
एक टूटता दुजे न रोते
फिर दर्द का एहसास न होता
दिल कहता एक ही तो टूटा है
और भी है मेरे पास
हँस के हम भी कह लेते
जा अये मुहब्बत मेरे और भी दिल हैं
तेरे तोड़ने की वजह नहीं माँगी थी !!

               













Sunday, May 1, 2016

बता किसका है लाला

                                   
देवकी का पुत्र है
या यशोदा का लाला
कन्हैया से पूछ रहीं हैं ब्रज की बाला

कृष्ण खड़े असमंजस में
वे किसके हैं लाला
एक ने दिया जन्म दुजे ने हैं पाला
कन्हैया से पूछ रहीं हैं ब्रज की बाला

                                     
                                
माँ सिर्फ माँ है
क्यूँ नामो में बाँध डाला
माँ देवकी कहों या
यशोदा का लाला
कन्हैया से पूछ रहीं हैं ब्रज की बाला

एक ने दिया जन्म
दुजे ने संभाला
एक ने दी आँखे दुजे ने उजाला
दोनो ही माँओ के आँखो का तारा
माँ देवकी कहो या
यशोदा का लाला
कन्हैया से पूछ रहीं हैं ब्रज की बाला

                               
बातें बनाने में माहिर हो  लाला
यूँ तरकीबे लगाकर छुटेगा न पाला
सच सच बताओ तुम किसके हो लाला
मन को मोहने वाले न बनो जादूडाला
कन्हैया से पूछ रहीं हैं ब्रज की बाला

                             

आँखे बंद कर मुस्काये                                   
फिर कन्हाई लाला                                        
सुन री ओ गोपियाँ मैं किसका हूँ लाला
आँचल मे छिपाया जिसने
माखन मिश्री खिलाया जिसने
आँखो मे बसाया जिसने
मै उसका दुलारा
वो माँ यशोदा मै उसका ही लाला
हाँ मैं यशोदा माता का दुलारा !!