फिर आके वादियों में
गुनगुना के चले जाना
बहुत बेज़ार है सनम दरख़्तें
जहाँ लेते थे हम ठिकाना
वही है झरने बेकलवही चिनार का वृक्ष पुराना
बहुत बेज़ार है सनम दरख़्तें
जहाँ लेते थे हम ठिकाना
तुम्हें तो याद भी न हो,पुरानी बातें हैं
पड़ी ज़हन पे धुंधली,ये मुलाकातें हैं
बना के बाँहों का मेरे बिस्तर
लेते थे तुम सिरहाना
बहुत बेज़ार है सनम दरख़्तें
जहाँ लेते थे हम ठिकाना
चमक उठी थी जो बिजली
तुम्हारी हालत क्या थी
बूँदे आँसमा से गिर रहीं थीं
नमी इन आँखों में थी
लपक के सहमे से ढ़क लिये थे
ख़ुद का चेहरा शायराना
बहुत बेज़ार है सनम दरख़्तें
जहाँ लेते थे हम ठिकाना
इन दरख़्तों पे हमारा नाम
अब भी महफूज़ है
इन वादियों में तुम्हारी पुकार
अब भी शामिल है
सिमट के आते थे बाँहों में
बहार ब दामाँ आशिकाना
बहुत बेज़ार है सनम दरख़्तें
जहाँ लेते थे हम ठिकाना !!
बहार ब दामाँ -- दामन में बहार की शोभाएँ लिये
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