पवन जा के बसे परदेश पिया को
दे आना संदेश
उनसे कहना नयन बिछाये
कब से बैठी दर पे टिकाये
आश ये मेरी टूट ना जाये
पवन जा के बसे परदेश पिया बिन
सुना है जीवन
लिख लिख पाति रोज पठाते
कागज पर लिख हाल बताते
फिर भी वो मुझपे तरस ना खाते
पवन जाके बसे परदेश पिया की वहाँ
लड़ तो नहीं गये नैन
सावन की हरियाली फीके
हरी चुनरिया कंगना बिदियाँ भी तीखे
डँसते हैं झूले नाग सरीखे
पवन जा के बसे परदेश पिया संग बीते
भूला तो ना बैठे वो दिन-रैन
सखियाँ सहेलियाँ मुझको चिढ़ाते
अपने भी ताने दे सताते
धीरज का दामन छुटने को आते
पवन जाके बसे परदेश पिया से कहना
जी ना सकेंगें उनके बिन !!
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