कभी गिरते को हमने सँभाला नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगें
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगे
कोई कहता वो है मंदिर में
मस्जिद गिरजा गुरूद्वारे में
पर रहता वो सबके अंदर है
वो नयन कहाँ से लाऐंगें !!
किसी अंधे की लाठी बना नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगें
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगें !!
उसके आगे सोना रख दो
उसके आगे हीरा रख दो
है भाव में उसके भोलापन
वह भाव कहाँ से लाऐंगें !!
किसी रोते के हमने हँसाया नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगें
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगें !!
हम भोग में उसको क्या देंगें
माखन मिश्री मेवा देंगें
वह भाव का भूखा क्या जाने
वो प्यार कहाँ से लाऐंगें !!
किसी भूखे को हमने खिलाया नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगे
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगे !!
कहते हैं कि हम भगवान के हैं
फिर शक़ भी उसी पर करते हैं
पूरी तरह ख़ुद को सौपे कहाँ
इल्ज़ाम लगा क्या पाऐंगें !!
किसी भटके को राह दिखाया नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगें
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगे
तेरा मेरा का विष है भरा
किस भाव से गीता सुनते हैं
जिस कथा का सार हो
प्रेम ,त्याग और कर्म ,दया
इन बिन गोविन्द कहाँ मिल पाऐंगें !!
किसी बेबस का हाथ थामा नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगे
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगें !!
इंसान कहाँ कहलाऐंगें
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगे
कोई कहता वो है मंदिर में
मस्जिद गिरजा गुरूद्वारे में
पर रहता वो सबके अंदर है
वो नयन कहाँ से लाऐंगें !!
किसी अंधे की लाठी बना नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगें
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगें !!
उसके आगे सोना रख दो
उसके आगे हीरा रख दो
है भाव में उसके भोलापन
वह भाव कहाँ से लाऐंगें !!
किसी रोते के हमने हँसाया नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगें
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगें !!
हम भोग में उसको क्या देंगें
माखन मिश्री मेवा देंगें
वह भाव का भूखा क्या जाने
वो प्यार कहाँ से लाऐंगें !!
किसी भूखे को हमने खिलाया नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगे
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगे !!
कहते हैं कि हम भगवान के हैं
फिर शक़ भी उसी पर करते हैं
पूरी तरह ख़ुद को सौपे कहाँ
इल्ज़ाम लगा क्या पाऐंगें !!
किसी भटके को राह दिखाया नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगें
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगे
तेरा मेरा का विष है भरा
किस भाव से गीता सुनते हैं
जिस कथा का सार हो
प्रेम ,त्याग और कर्म ,दया
इन बिन गोविन्द कहाँ मिल पाऐंगें !!
किसी बेबस का हाथ थामा नहीं
इंसान कहाँ कहलाऐंगे
जब भाव नहीं हो सीने में
भगवान कहाँ से पाऐंगें !!
No comments:
Post a Comment