रात चाँद छत पे आया था
नज़रें मिलाने के लिए
मैं गई थी छत पे भींगीं
जुल्फें सुखाने के लिए
बेखुदी मे उठ गये थे
ये कदम, ख़ुद ब ख़ुद
देखना था चाँद कैसे
बादलों के संग है गुम
छुप के नज़रें बचा के देखे
मुझे सताने के लिए
मैं गई थी छत पे,भींगीं
जुल्फें सुखाने के लिए
चेहरे पे थी शरारत उसके
कुछ कही कुछ अनकही
बेचैन था दिल,घबराया भी
कोई देख न ले मुझे यहाँ कहीं
थोड़ा-सा वो करीब आया था
बेक़रारी बढ़ाने के लिए
मैं गई थी छत पे भींगीं
जुल्फें सुखाने के लिए
कहने को थी ढ़ेरों बातें
लब मगर थे सिले-सिले
नाहीं इल्म था,ना वो उमर थी
सही-गलत बातें समझे
चाँद गुम गया फिर बादलों में
नई सुबह लाने के लिए
मैं गई थी छत पे भींगीं
जुल्फें सुखाने के लिए !!
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