मुहब्बत है कि नहीं इतना बताओ मुझको
बिन किसी बात के इतना ना सताओ मुझको
कहती है खुद मेरी तन्हाईयाँ खामोशियों से
गिला-शिकवा ही सही कर के मनाओ मुझको
उसकी गलियों से गुज़रते हुए बेचैन दिल को
एकपल ही सही पर अक़्स दिखाओ मुझको
कशमकश में है दिल उनके बढ़ाये फासलों से
ढुढ़कर कुछ पल बहाने से मिलाओ मुझको
रोकतीं हैं मेरे कदमों की चाप मुझको ही
अपनी खुशबू बिखेर कर ना बुलाओ मुझको
ज़िंदगी है सफ़र तो क्या मुश्किलें कम हैं
सता के खुद को इतना ना रूलाओ मुझको
तुम मिलो या न मिलो जो कुछ मुझमे ज़िंदा है
सिर्फ तुम हो तुम्हीं हो ये जताओ मुझको
उठाकर हाथ दुआओं मे जब भी माँगा है
मेरी खुशियाँ हो तेरी दे दो बलाए मुझको !!
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