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Thursday, December 31, 2015

जाड़े की रात

जाड़े की रात, अमीरों की ऐश,गरीबाें का काल
सुनसान सड़क किनारे लगी हैं बिस्तरें
जिसपे पड़े हैं गरीब बेचारे
क्या जानवर और क्या आदमी
बने हुए हैं एक- दुजे के सहारे
एक ही कम्बल और जाड़े की ठिठुरन
वो दुबके हुए हैं जीवन को बचाने
कशमकश चल रही हैं जाड़े और जीवन की
देखो कौन बचता है इस सड़क किनारे
एक दिन जी लेने पे गरीब खुश होता है
आज जीता मैं और जाड़े तुम हारे
देखो अमीरों की हस्ती उनके महफ़िल की मस्ती
खुल रही बोतले गर्म हो रही साँसे
नरम गरम बिस्तरें उसपे कमरे गर्म सारे
खाने को भी मिल रहें गरमागरम निवाले
ललकार रहे हैं कहाँ है जाड़ा
अा जाओ जरा हम तुम्हें पछाड़े
एक के लिए खेल है जिन्दगी
दुजे के साथ खेल रही जिन्दगी
भँवर मे है कश्ती खुदा की है बस्ती
अब वो जाने
उनकी मर्ज़ी कौन जाने !!!

Wednesday, December 30, 2015

नींद की बातें

                                  

नींद तुम ये ख़ता नहीं करना
हमें उनसे जुदा नहीं करना
ख़्वाब में भी यक़ीनन वो आये
मिलकर उनसे ये गुफ्तगू करना

वास्ता देना मेरी चाहत का
मेरे खामोश दिल की धड़कन का
मेरे इन्तज़ार के हरेक पल का
हिसाब उनसे रूबरू करना

खामख्वाह बात ना बहुत बढ़ जाये
ख्वाब बदख्वाब में ना बदल जाये
ये गरज मेरी है उनकी नहीं
गोया इसका ख्याल भी करना

चंद अल्फाज मेरे जुस्तजू के 
जज्बेहालात मेरे आरजू के
उनसे एकपल जुदाई गवारा नहीं
जिक्रे ख़ास ये ज़रूर करना !!!


Monday, December 28, 2015

मंज़िल के करीब

मंज़िल के करीब आकर कश्तीयॉ डूब जाती हैं,    देखा है कई बार हमने गर्दिश में सितारों को,        हाथों की लकीरों को गर इंसान बदल सकता तो,  खुश होता वो अपनी तक़दीर बनाकर !!🌴🌹🌴🌴🌹🌴🌴🌹🌴🌴🌹🌴🌴🌹