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Tuesday, May 3, 2016

इस शहर से अच्छा था मेरा गाँव

सँजती थी महफिलें और
हँसी ठहाकों से गुंज उठता था मेरा ठाँव
बहुत ही प्यारा बहुत ही सच्चा
इस शहर से अच्छा था मेरा गाँव

अतीत की गहराईयों से गुज़रो तो
आज भी मन को ठंडक पहुंचा जाती है वो छाँव
बहुत ही प्यारा बहुत ही सच्चा
इस शहर से अच्छा था मेरा गाँव

शहर की सड़कों पर दौड़ती-भागती ज़िंदगियाँ
खुद मे सिमटती-सिकुड़ती ज़िंदगियाँ
वक़्त के एक-एक लम्हें को तरसती ज़िंदगियाँ
धूल-धक्कड़ प्रदुषण के बीच आज भी
तलाशती है गाँव की हरियाली
ताजी शुद्ध हवा और अपनेपन का भाव
बहुत ही प्यारा बहुत ही सच्चा
इस शहर से अच्छा था मेरा गाँव

वो कोयल की कू कू वो पपीहे की पी पी
चिड़ियो की चहचहआहट
वो पत्तों की चरचर
हर नुक्कड़ पर चाय,पान की दुकानें
वो खाली हरा भरा मैदान
सुबह जगने के लिए
अलार्म की जरूरत नहीं पड़ती थी
मुर्गे की बाँग और मंदीर की घंटियो से
गूँज उठता था पूरा गाँव
बहुत ही प्यारा बहुत ही सच्चा
इस शहर से अच्छा था मेरा गाँव

मगर शहर की प्रदुषित हवा ने
ढूढ़ लिया है मेरा छोटा सा ठाँव
और बर्बाद कर देना चाहती है
प्रदुषण फैलाकर
मेरे सपनो का गाँव
कारखाने फैक्टरियाँ,होटल
और बड़ी बड़ी इमारते बनाकर
छिन लेना चाहती है
शुद्ध हवा शुद्ध वातावरण
ऐसे प्रदुषण फैलने से
कैसे फिर बच पाएगा ये हरा भरा गाँव
गाँव के न रहने पे छिन जाएगा
सादगी आैर भाईचारे का भाव
हवाओ मे फैली गंदगी
मिटा देगी जीवन
और खत्म हो जायेगा जीवन का नाम

                                                               
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