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Monday, February 29, 2016

भक्त और भगवान

रख आऊँगीं तेरी मूरत श्याम
मंदिर में जाके
सुना है तेरे चाहने वाले वहाँ
रोज आते-जाते रहते हैं
जब तुझे मेरी परवाह नहीं श्याम
तो मुझे भी क्या जरूरत है
मेरी आँखें भी अब पथरा गईं हैं
तेरी राहें निहार के
मैं सोचती थी
जब भी हारने लगूँगीं
मेरी बाँहें थाम लोगे
क्योकि तेरे होते हारना नहीं आता श्याम
किसी के सामने जाके
ना भी थाम पाये तो कम से कम
रास्ता ही दिखा दोगे
क्योकि तेरे होते खुद से
चलना नहीं आता श्याम
इस संसार में आके
रास्ता ना भी दिखा पाये
तो कम से कम एक इशारा
ही कर दोगे
क्योकि एक तेरे ही नज़रों की भाषा
पढ़ पाती हैं श्याम मेरी ये आँखे
इशारा न भी कर पाये तो कम से कम
इतना ही बता दोगे
कसूर क्या था मेरा
गुनाह कब हुई मुझसे
कि इतना गिर गई श्याम
तेरी नज़रों में आके
बहुत सँजाया-सँवारा श्याम तुझे
रंगीं-रंगीं वस्त्र पहना के
मेरी फटी हुई चुनरी
कैसे मंजूर है तुझे
मैं रोज तुझे गंगाजल में
अपने अश्रु मिला कर नहलाती हूँ
मेरी आँखो में अब भी वो नमी है श्याम
क्या दिखता नहीं तुझे
मैं रोज माखन- मिश्री
तुम्हें भोग लगाती हूँ
मेरे खाने के लाले पड़े हैं
हालात नाजुक है मेरे
मैं रोज फूलो की सेज पे बिठाती हूँ तुझे
मेरे जीवन मे हैं बस काँटे
चुनना जरूर है तुझे
मैं रोज तेरे सामने
घी का दीपक जलाती हूँ
मेरे जीवन का अंधेरा
कैसे मंजूर है तुझे
हाथ काँपने लगे हैं श्याम
तेरी मूरत उठा के
कैसे रख आऊँ मैं तुझे
मंदिर में जाके
मेरी चाहत की परिक्षा है
तो तू आज़मा ले
मैं भी हँसती ही रहूँगीं श्याम
तुझे दिल मे बिठा के !!






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