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Sunday, July 31, 2016

तुम शाम बनके ढ़लना

                                                      

तुम शाम बन के ढ़लना
मैं सुब्ह बनके उभरूगा
भर लूँगा तुम्हें बाँहों में
फिर दूर कहीं चल दूँगा

सतरंगी छटा बिखरा कर
राहों में दिल बिछा देना
मै अपने दिल से उसे लगा लूँगा
सिन्दुरी शाम माँग कर दूँगा

पलकों से भरे चिलमन में
तुम मुझको छुपा रख लेना
मै उन नैनो मे घर बना लूँगा
दिलशाद अपना कर लूँगा

तुम चाँदनी बन छा जाना
मैं चाँद बन के आऊँगा
तारों की बारात होगी
दुल्हन-सी रात कर दूँगा

तुम नील गगन बन जाना
मैं पवन झोंका बन लूँगा
तुझे छू सनसन बह लूँगा
और खींच अंक भर लूँगा

                                








Friday, July 29, 2016

तेरी मेरी कहानी है

                                 

ये ज़िंदगी आनी-जानी है
कुछ तेरी कुछ मेरी कहानी है
कुछ ख़्वाब पलकों पे रख के चल
वरना ख़त्म ज़िंदगानी है

आये गर तूफ़ां तो आने दे सामना कर
घिरे काली घटा तो हँसके तू आगे बढ़
जीने की ये अदा मस्तानी है
हार के बाद जीत ही आनी है

बीते लम्हें दफ़न कर
जो पल रूला गये उन्हें कफ़न कर
क्योकि कोई पल वापस ना आनी है
आगे एक नई ज़िदगानी है

करता जा मन की तू
बातें जो अच्छी हो
कह के ना बैठ ये मेरा नसीब है
जो बातें कच्ची हो
बुलंद इरादों से चट्टान तोड़ जानी है
बुज़ुर्गों की नसीहत पुरानी है

देख कोई हाथ दे प्यार से तो थाम ले
ना मिले साथ कोई चल दे तन्हा तू यूहीं
सही राहों को मंजिल मिल जानी है
पीछे से क़ाफ़िला भी चली आनी है!!

                                        


                                  


                                                                                               





Thursday, July 28, 2016

पुकार सुनो भोलेनाथ

                                                

हे शिव शंकर हे करूणाकर
सुन लो मेरी पुकार
अंदर-बाहर तमस घनेरा
समझ ना पाऊँ
मैं जाऊँ किस द्वार

कर दे उजाला जीवन में थोड़ा
भर अंदर ज्ञान प्रकाश
आश की ज्योत जलाये बैठी
द्वार से तेरे
जाऊँ ना खाली हाथ

भव सागर के बीच फँसी है
जीवन रूपी नाव
तुम बिन कौन बने खेवाईया
पार लगाये
भवभय से उस पार

तुम बिन कौन बचाये लज्जा
समझे परायी पीड़
जग हँसता तू भी ना समझता
भक्त प्रभु की
कैसी ये जोड़ी

नीलकंठ हे विषधारी
विष का प्याला
तूने  पीया हरबार
मुझको भी जीवन-विष पीना
सिखला दें
मै भी बाँटू खुशियाँ
विष के बदले हरबार!!
----------****---------

तमस-अंधकार
घनेरा-बहुत
खेवाईया- नाव खेने वाला
भव सागर- जीवन सागर
भवभय- संसार मे बारबार जन्म लेने मरने का                  भय
परायी पीड़-दुजे का दर्द
जीवन-विष-जीवन का बुरा वक़्त रूपि जहर

                                      
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Sunday, July 24, 2016

पवन पिया जा बसे परदेश

                                     

पवन जा के बसे परदेश पिया को
दे आना संदेश

उनसे कहना नयन बिछाये
कब से बैठी दर पे टिकाये
आश ये मेरी टूट ना जाये

पवन जा के बसे परदेश पिया बिन
सुना है जीवन

लिख लिख पाति रोज पठाते
कागज पर लिख हाल बताते
फिर भी वो मुझपे तरस ना खाते

पवन जाके बसे परदेश पिया की वहाँ
लड़ तो नहीं गये नैन

सावन की हरियाली फीके
हरी चुनरिया कंगना बिदियाँ भी तीखे
डँसते हैं झूले नाग सरीखे

पवन जा के बसे परदेश पिया संग बीते
भूला तो ना बैठे वो दिन-रैन

सखियाँ सहेलियाँ मुझको चिढ़ाते
अपने भी ताने दे सताते
धीरज का दामन छुटने को आते

पवन जाके बसे परदेश पिया से कहना
जी ना सकेंगें उनके बिन !!

                                                    
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Wednesday, July 20, 2016

शिव नाम ही काफी है


                                                                                                                   

शिव ॐ शिव नम: शिव शिवाय श्री ॐ

शिव नाम ही काफी है जीने के लिए
कोई और सहारा क्यूँ चाहिए
बड़े भोले हैं  मन के प्रबल दानी
पल में ढ़ुलते हैं बस भोलापन चाहिए

शिव ॐ शिव नम: शिव शिवाय श्री ॐ

थोड़ी गंगाजल ले स्नेह भरा
भोले दानी पे चढ़ा कर देख ज़रा
सच्ची आँखो की भाषा पढ़ते हैं वो
बस देखने वाली वो नज़र चाहिए

शिव ॐ शिव नम: शिव शिवाय श्री ॐ

एक बेलपत्र हो भाव भरा
बम बम भोले पे चढ़ा कर देख ज़रा
दौड़े आएगे दयालू अघोरी बाबा
इन्हें कोठा अटारी ना महल चाहिए

शिव ॐ शिव नम: शिव शिवाय श्री ॐ

भोले ना जाने श्रृंगार कोई
मसाने की धूलि इन्हें बहुत प्यारी
बस भाँग धतूरा भोग लगा
कोई फल फूल ना पंचमेवा चाहिए

शिव ॐ शिव नम: शिव शिवाय श्री ॐ

कोई मंत्र ना जाने छोटा-बड़ा
बस ॐ में जीवन का सार छुपा
भक्ति भाव से जप मन ॐ कभी
नईया ले चल जीवन की
मन जिधर चाहिए !!

शिव ॐ शिव नम: शिव शिवाय श्री ॐ

                                       






Monday, July 18, 2016

छाई प्यासी घटा

                                     

छाई रहती है प्यासी घटा
जम के जज़्बात मचलते हैं
करीब आकर कभी देखो
कि बादल बरसते हैं
या ये आँखें बरसते हैं

अंदर फिसलन घनेरे हैं
अंधेरे ही अंधेरे हैं
कदम रखना सँभल कर के
दरिया यहीं से निकलते हैं
कि जब-जब दिल तड़पते हैं

तन्हा छोड़ जिस सफ़र पर
चल दिये तुम
कभी सोचा क्या करते हैं
तुम्हारा नाम लिख-लिख कर
कभी दिल से लगाते हैं
कभी अश्कों से मिटाते हैं

वही बारिश का मौसम
आ गया है
पुराने ख़यालात उमड़ते हैं
कि इक छाता में हम और तुम
उधर बादल गरजते थे
इधर दो दिल धड़कते थे

जिसमे भींगकर
अबतक ना उबरे
वो सावन याद करते हैं
निभाई तुमने ना जो उल्फ़त
कभी दिल को जलाते हैं
कभी आँखो से बरसते हैं

                                                 



Sunday, July 17, 2016

वक़्त वक़्त की बातें

                                                                   

वक़्त से थोड़ा,वक़्त माँगा
हसीन वक़्त गुज़ारने के लिए
वक़्त ने बोला वक़्त नहीं है
कल मिलना आकर के गले

वक़्त ने देखा भाग रहे सब
वक़्त पकड़ने के लिए
वक़्त हँसा हँसकर मुस्काया
वक़्त के आगे किसका चले

वक़्त दिखाये कितनो को दर्पण
वक़्त ने राजा रंक किये
वक़्त बुरा होता है उनका
जो वक़्त की न अहमियत समझे

वक़्त ने जोड़े कितने दिल फिर
तोड़ के टुकड़े टुकड़े किये
वक़्त ने डाले आँखो मे आँसू
तो गहरे जख़्म भी वक़्त ने भरे

वक़्त दिखाये कितने सपने
तोड़ के फिर दिल चल दिये
वक़्त से पहले भाग्य से ज्यादा
मिलता नही कोई कुछ कर ले

वक़्त पहचान कराते अपने
वक़्त दिखाता असली चेहरे
वक़्त बुरा तो परछाई भी साथ छोड़ दे
कौन किसे फिर अपना कहे

वक़्त से सीखे वक़्त की बातें
वक़्त चले तो हम चल दिये
बंद मुट्ठी ले आये थे जग में
हाथ पसारे वक़्त पे चल दिये !!










Thursday, July 14, 2016

रात चाँद आया था

                                       

रात चाँद छत पे आया था
नज़रें  मिलाने के लिए
मैं गई थी छत पे भींगीं
जुल्फें सुखाने के लिए

बेखुदी मे उठ गये थे
ये कदम, ख़ुद ब ख़ुद
देखना था चाँद कैसे
बादलों के संग है गुम

छुप के नज़रें बचा के देखे
मुझे सताने के लिए
मैं गई थी छत पे,भींगीं
जुल्फें सुखाने के लिए

चेहरे पे थी शरारत उसके
कुछ कही कुछ अनकही
बेचैन था दिल,घबराया भी
कोई देख न ले मुझे यहाँ कहीं

थोड़ा-सा वो करीब आया था
बेक़रारी बढ़ाने के लिए
मैं गई थी छत पे भींगीं
जुल्फें सुखाने के लिए

कहने को थी ढ़ेरों बातें
लब मगर थे सिले-सिले
नाहीं इल्म था,ना वो उमर थी
सही-गलत बातें समझे

चाँद गुम गया फिर बादलों में
नई सुबह लाने के लिए
मैं गई थी छत पे भींगीं
जुल्फें सुखाने के लिए !!

                                                                                  












Tuesday, July 12, 2016

कौन है मेरा-मेरा

झुमती चली हवा
घिर गई घटा-घटा
कुछ जो टुटा खो गया
धुँध से घिरा-घिरा

वो बसा के आँखों में
दे गया सज़ा-सज़ा
कैसे बोलू बेवफा
ख़ुद से है गिला-गिला

याद आई वो वफा
दर्द मे डुबा-डुबा
देखती हूँ दिल का जख़्म
था बहुत हरा-हरा

अंधेरे ही अंधेरे अब
जिंदगी पीड़ा-पीड़ा
दर्द का सागर निकल
आँखों से बहा-बहा

जिंदगी का बोझ अब
जाता नहीं सहा-सहा
मर भी जाऊँ क्या हुआ
कौन है मेरा-मेरा !!

                                

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Sunday, July 10, 2016

सुनो कान्हा

                             

मुकुन्द मुकुन्द मुकुन्द मुकुन्द

मुकुन्दा मुरारी सुनो गिरधारी
तेरा नाम सत्यम् जपे दुनिया सारी

सुनो हे विधाता सुनो प्राणदाता
तुम्हीं राम कृष्ण तुम्हीं त्रिपुरारी

तुम्हीं सत्य सुन्दर,हरि: ॐ तत्सत्
नमो बासुदेवाय मैं शरणम् तिहारी

तुम्हीं राधे-राधे नारायण मिला दे
प्रभू प्राण प्यारे थकी अब मैं हारी

लगी है लगन जबसे बाँके बिहारी
तुम्हीं तुम हो दिखते नज़र में हमारी

बसाओ जो दिल में,गिराओ नज़र से
नहीं मिट रही जो अगन है तुम्हारी

सुनो हे मुरारी सुनो दुखहारी
मैं गज़ बन तड़पती बचा चक्रधारी

मुकुन्द मुकुन्द मुकुन्द मुकुन्द !!

                                                 


🌹अच्युतम् केशवम् कृष्ण दामोदरम्🌹
   🌹राम नारायण् जानकी वल्लभ्🌹
        🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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Friday, July 8, 2016

बाबुल का आँगन

                                  

बाबुल तेरे आँगन में
फिर कुछ शामे गुज़ारने की
ख़ुद में चाहत जगते देखा है
दिल आज भी बच्चा बन जाता है
उसने जब भी तेरी गलियों से
मुझे गुज़रते देखा है

माँ का प्यार आँखों में मचलते
बातों से टपकते देखा है
तुमने कोई एहसास
पनपने ही ना दिया कभी
फिर भी छिप छिप कर तुम्हें
प्यार लुटाते देखा है

चेहरे पर न कोई भाव
न प्यार वाले शब्द
हरवक़्त नियम,शिष्टाचार
कर्तव्य,समर्पण की बातें
सुन सुन पकती रही कुढ़ती रही मैं
सारी नाराज़गी काफूर हो जाती जब
मेरी हर सफलता पे
तुम्हें छाती फुलाते देखा है

माँ मेरी गलतियों पर पर्दा डालती जब
उनपे नाराज़ होते
और मुझे भी सज़ा मिलती
मन तड़प उठता ये सोचकर
कि पापा कितने गंदे है
तुम्हें समझने की कोशिश में
डबडबाई आँखे लिए
ठंड से ठिठुरी सोई होती जब
तेरे अंदर के वात्सल्य को
बिन आहट सिर चुमकर
चादर ओढ़ाते देखा है

कितनी राते तुम्हारी फटकार सुन
नाराजगी मे बिन खाये सोई
याद भी नहीं
माँ मनाती थी मगर
उतनी ही रातें तुम्हें
भूखे चुपचाप सोते देखा है

पिता गुरू, पिता आदर्श
पिता तजुर्बा, पिता अनुभव का खजाना
हर कठिन परिस्थितीयों में
तुम्हें ही मैने मेरा हौसला बढ़ाते देखा है

कभी हमारी छोटी इच्छाओ पे
अपना मन मारते तो कभी
हमारे पेट की आग बुझाने के लिए
तुम्हे पल- पल जलते देखा है

वो कुछ ख़ास पल ज़िंदगी के थे
तेरे आँगन से डोली उठी थी मेरी
वो लम्हा भी तेरी आँखों में
मैं ठीक से पढ ना पाई थी
माँ के आँसुओ से इतनी भीगी कि
बस दूर से धुधंले से तुम नज़र आये थे
कितने लोग तुम्हें सहारा दिये खड़े थे
तब पहली बार मैने बुढ़े बरगद को
कदम लड़खड़ाये देखा है

एक युग बित गये जैसे तुम्हें पहचानने में
तुम्हे अबतक ना कह पाई
कि तुम कितने अच्छे हो
आज भी घऱ के आँगन मे पहुँचते ही
तुम्हारे कुर्ते पर लगी गुलाब की इत्र
तुम्हारे होने का एहसास करा जाती है
आँखों मे नमी होती है
तुम्हारे भी, मेरे भी
खिड़की की तरफ मुँह करके
कितनी बार तुम्हें
हवा के झोंकों में मैने
आँखे सुखाते देखा है !!

                                        
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Wednesday, July 6, 2016

ख़ता क्या थी

मासूम सुरतों की ख़ता क्या थी
न वो खुदा जानते थे न ईश्वर को
ख़ुद्दारी, इंसानियत उनके वजूद में थी
क्या इतना काफी नहीं था जीने को

बर्बाद हुआ फिर किसी का आशियाँ
दुसरा कोई ये दर्द समझे क्यूँ
जिसपे बिती है वही जानता है
पूरी ज़िंदगी भी कम है जख़्म सीने को

बिखरे होगे कितने सपने अपने
ख़ुद अपनी मौत को सामने पाकर
ये दर्द भी महसूस हो क्यूँ
जो ज़िंदा ही है ऐसे दर्द देने को

जिसने बाँटी नही आकाश ज़मी
जिसने बाँटी नहीं हवा पानी
उसी के नाम पे बँट गई ज़िंदगीयाँ
क्या बीता होगा उस मदिने को

ये कैसा वक़्त आ गया यारों
न इंसानो की किमत रही
न इंसानियत की
ऐसी दरिंदगी पर खुदा भी तड़प
कह रहा होगा
अब बस कर
क्या इतना लहु काफी नहीं
तेरा रूह  भिंगोने को

चलो माना बहुत मुनासिब किया
बेगुनाहों को सज़ा दे दिया
बस एकबार ये सज़ा ख़ुद पे
आज़मा कर देखो
शायद वो माफ कर दे और बचा ले
दोज़ख की आग से
तुम्हें जलते रहने को !!
                                



                                                     




Friday, July 1, 2016

मैं अभी जिंदा हूँ

ज़िंदगी की ठोकरों से
घबराई और सहमी-सी सुरत मेरी
देखकर माँ ने कहा डर मत
मै अभी जिंदा हूँ
काँपते हाथों से थपथपा कर मेरे गालों को
मुस्कराकर कहा न हार
मैं अभी जिंदा हूँ

हादसे भी गर्द बन उसकी दुआओं से हारी
न हुए दर्द में तन्हा जब जब मै उसे पुकारी
मेरे लिए लड़ती रही सबसे वो बार बार
फिक्र की बात नहीं कहती रही
मैं अभी ज़िदा हूँ|

मेरे किरदार पे धब्बा कभी लगने ना दिया
नसीहते इतनी दी कि खजाना अबतक है भरा
मेरी हर ख्वाहिश पे मिटती रही वो बार बार
और कहती रही घबरा मत
मै अभी जिंदा हूँ

हर मुसीबतों में हौसला हमेशा उसने बढ़ाया
वो चट्टान बन गई जब तुफान आया
उसकी पेशानी चमकती रही अँधेरो मे भी
और उस उजाले ने कहा कुछ सोच मत
मै अभी जिंदा हूँ

बैठकर चुनती रही  मेरे दामन से काँटे
हाथ लहुलुहान हुए हारी न बुढ़ी साँसे
छुपकर तन्हाई मे वो रोती रही बार बार
और हँसकर कहती रही मुझसे कि
मै अभी जिंदा हूँ

मुसीबतों मे जहा
हमराह अपना साया ना हुआ
वहाँ भी वो साथ चल दी
कदम था लड़खड़ाया हुआ
रब की तरह देती रही हरवक़्त साथ
और कहती रही रो मत
मै अभी ज़िंदा हूँ !!

                             
                                
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