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Sunday, January 31, 2016

लफ़्जों के गुलाम नहीं होते -----

हमारी ख़ामोशी को इंकार समझ
कही और न भटक जाना
चाहने वाले लफ़्जों के गुलाम नहीं होते !!

बेइंतिहा प्यार से देखने वाली नज़र -----

तस्वीर में उभरी हुई सूरत तेरी है मगर
उसे बेइंतिहा प्यार से
देखने वाली नज़र मेरी है !!

प्यार भी मेरा दर्द भी मेरे ----

प्यार भी मेरा,दर्द भी मेरे
तन्हाईयां भी मेरी
रूसवाईयां भी मेरे
उनका क्या???
मैं और मेरा वजूद !!

Saturday, January 30, 2016

कितनी दीवारें खड़ी कर दी हैं तुमने

एक ही घर में
एक ही कमरे में
एक ही बिस्तर पर
कितनी दीवारें खड़ी कर दीं हैं तुमने
जिसे तोड़ पाना मुमकिन नहीं लगता
हम साथ-साथ चलने के बजाय
एक-दुसरे के आमने-सामने खड़े हैं
एक नदी के दो किनारों की तरह
जिनका मिल पाना मुमकिन नहीं लगता
वक़्त ने हमारे बीच खड़ी कर दीं हैं
अहम,खुदग़र्ज़ी और अविश्वासकी दीवारें
इंसानीयत का जज़्बा दिल मे रखते हो
इक-दुजे के लिए ऐसा भी नहीं लगता
तुम मुझे ठेस पहुँचा कर खुश होते हो
मैं तुम्हें दर्द देकर मुस्कुराती हूँ
मगर ये खु़शी झण भर की होती है
ज़िंदगी का खालीपन न चुभता हो ज़िंदगी में
ऐसा नहीं लगता
हम हँस-बोल लेते हैं एक-दुसरे के साथ
हरपल एक-दुजे के क़रीब भी रहते हैं
मगर दिल की दूरियाँ ये कहतीं हैं
हम समझते हो एक-दुजे को एेसा नहीं लगता
ऐसा लगता है जैसे जकड़ रक्खा हो हमें खु़दी ने
खुलकर साँस लेते मैंने तुम्हें देखा नहीं
मैं भी खुलकर साँसें ले पा रही हूँ
ऐसा नहीं लगता
छोड़ दो तुम ये झूठी जिद्द अपनी
और मैं अपना झूठा अहंकार छोड़ दूँ
और बाँट ले हम इक-दुजे से प्यार को
घर,कमरें और बिस्तर पर
दीवारें खड़ी करने के बजाय !!

Friday, January 29, 2016

गैर की निगाहों में है -----

ज़िंदगी से कोई शिकवा नहीं है
कि तू किसी और की बाँहों में है
शायद हमारी मोहब्बत में ही कमी होगी
कि तू किसी गैर की निगाहों में है !!

उनकी हर अदा कातिल ----

उन्हें आता है हमारे प्यार पे गुस्सा
हमें उनके गुस्से पे प्यार आता है
कहीं कुर्बान ही न हो जाऊ मैं
उनकी तो हर अदा ही कातिल है !!

नाम उनका हाथों पर लिखकर -----

नाम उनका हाथों पर लिखकर मिटा देतें हैं
रूसवाइयां न हो उनकी इस बात से हम डरतें हैं
खु़द की फ़िक्र नहीं है
परवाह उनकी इज्जत की है
यही सबब है,लोगों से इज़हार करते डरते है
नाम उनका हाथों पर लिखकर मिटा देतें हैं !!

Thursday, January 28, 2016

चलो पुराने वक़्त में लौट जायें

चलो पुराने वक़्त में लौट जायें
वही अपनी छोटी-सी दुनिया बसायें
वो गाँव की मिट्टी में छोटा-सा आँगन
वो छोटी-सी बगीया में कोयल की कूँ-कूँ
वो बारिश की बूँदों में मिट्टी की ख़ुशबू
वो सावन के झूले,वो अपना-सा शबनम
चलो उस नर्मीं को आँखों में सजायें
वहीं अपनी छोटी-सी दुनिया बसायें
वो मिट्टी के चुल्हें पे सोंधी-सी रोटी
वो खेतों से निकली हरी-ताजी सब्जी
वो गाँव का पाठशाला ,मास्टर जी की छड़ी
बहुत याद आते है बचपन के साथी
चलो उनसे मिलने का मौका जुटायें
वहीं अपनी छोटी-सी दुनिया बसायें
वो ईद , क्रिसमस , लोहरी,दिवाली
वैशाखी दशहरा वो रंगों की होली
भले ही हम लड़ते-झगड़ते रहें हो आपस में
मगर कितना अपनापन था उन लम्हों में
चलो फिर उन त्योहारों को मिलकर मनायें
वहीं अपनी छोटा-सी दुनिया बसायें
इस शहर ने दिखाये है बहुत से सपने
मगर छिन लिये हमसे सारे वे अपने
सिर्फ मतलब के रिश्तों में मतलबी चेहरे
कहाँ दे पाऐंगें वे अपनें से चेहरे
वहाँ के कमरों मे था अपनापन बसता
यहाँ के घरों मे है सन्नाटा पसरा
नहीं दिखती है वो गलियों की रौनक
वो चाहत समर्पण वो अनमोल जीवन
चलो फिर से गाँव की ओर लौट जायें
वहीं अपनी छोटी-सी दुनिया बसायें !!!

Wednesday, January 27, 2016

आँखो पे पर्दा

आँखों पे पर्दा पड़ा है हमारा
कि उन्हें हमारी ज़रूरत है
उनके हर झूठ पर ये दिल एतबार करता है
क्योंकि सिर्फ उनसे मोहब्बत है !!

एक तरफ कुँआ दुसरी तरफ खाँई

ओफ़ ये ख़्वाब मुझे
ज़िंदगी की हकिक़त से
कितनी दूर लेकर चली आई है
आँखें खुलती है तो देखती हूँ
एक तरफ कुँआ तो दुसरी तरफ खाँई है !!

ज़िंदगी की शाम

वो न आये नाहीं उनका कोई पैगाम आया
इस ज़िंदगी की शाम ढ़ल गई
सिर्फ उनके इन्तज़ार में !!

Tuesday, January 26, 2016

मत आवाज़ दो मुझे ---

मत आवाज़ दो मुझे
मेरे अरमाँ मिट चुकें हैं
मेरे सपने मर चुकें हैं
अब तकलीफ़ किसी बात से नहीं होती
लें जाओं उन यादों को वापस अपने साथ
और मुझे जीने दो
मत आवाज़ दो मुझे
जिन्दा हूँ ये कहने के लिए
क्या सिर्फ साँसें चलनी काफ़ी है
तुम कहोगे
शुक्र है साँसें तो चल रही है
मैं मुस्कुरा सकती हूँ सबके लिए
मैं समर्पित हूँ सबके लिए
ज़िंदगी को जीना मैंनें सीख लिया है
सिर्फ मैं ही तो ऐसी नहीं
जिसने कुछ खोया है
लाखों एेसे हैं जिसने कुछ पाया हीं नहीं
खुश हूँ,मैंनें पाकर कुछ खोया है
उस वक़्त को यादों में समेटे
भविष्य की राहों पर निकल पड़ी हूँ मैं
मत आवाज़ दो मुझे
छोड़ो नाराज़गी खु़दा से भी कैसी
तक़दीर लिखने वाला भी तो थकता होगा
उसकी भी कुछ इच्छाएँ,अपेक्षाएँ हमसे रहीं होंगीं
कहाँ उतर पायें हम उसकी उम्मीदों पर खड़े
मत आवाज़ दो मुझे !!! 

Sunday, January 24, 2016

लगती है चोट जब खु़द को ----

लगती है चोट जब खु़द को
दर्द कितना होता है
दुसरों के दर्द को कोई
समझता कहाँ है

मालिक तेरे जहां में
इंसानियत की कमी है
हमदर्द बनकर कोई
दर्द बाँटता कहाँ है

कहतें हैं  हम खु़द को इसां मगर
जानवर भी हमसे बेहतर हैं
कैसे किसी का क़त्ल कर
कोई ख़ुश होता है

अपने घर में भी माँ-बहनें
सबकी होतीं ही होगीं
लूटकर किसी का अस्मत कोई
कैसे मज़ा लेता है

पालते हैं लोग जानवर
घरों की रौनक बढ़ाने को
माता-पिता के लिए बस
घर मे जगह कहाँ है

क्यों जिहाद के नाम पर
क़त्लेआम होते हैं
कोई मज़हब नहीं सिखाता
फिर भी सरेआम होते हैं

ये दरिंदगी कैसी, कौन-सा धर्म है ये
कौन-सा मज़हब है जो
लहु माँगता है

उठेगी जब उनकी लाठी
कोई आवाज न होगी
वक़्त है अभी भी सँभलने का
मौक़ा एेसा मिलता कहाँ है !!!
                            

Saturday, January 23, 2016

उम्र के अंतिम पड़ाव पे---

देखा था मैंने तुम्हें उम्र के अंतिम पड़ाव पे
कितने अजनबी से लगे थे तुम
न आँखों में मेरी छवि थी
न चेहरे पर अपनापन का भाव
न होंठों पर हँसी
न जुबा पर दिल को छू लेने वाले अल्फ़ाज
शायद तुम्हारी बुढ़ी आँखें
पहचान नहीं पाई थी मुझे
या फिर वो चाहत ही नहीं थी अब मेरे लिये
कितना फ़र्क था दोनों की मोहब्बत में
मैं अबतक तुम्हारी चाहत को लेकर
अपनों के बीच बेगानी बनी रही
और तुमने मेरी चाहत को किनारे कर
बेगानों को अपना लिया था
देखा था मैंने तुम्हें उम्र के अंतिम पड़ाव पे
तुमने वादा किया था
एकबार ज़रूर मिलने आओगे मुझसे
मिले भी,वादा भी पूरा किया
मगर अफ़सोस हमदर्द बनकर ही आये होते
तो दर्द का एहसास न होता
शायद मोहब्बत को रूह से
महसूस नहीं कर पाये थे तुम
तभी तो बुढ़ापे के साथ
मोहब्बत भी बुढ़ी हो चली थी तुम्हारी
देेेखा था मैंने तुम्हें उम्र के अंतिम पड़ाव पे
आह कितनी बेताब थी मेरी चाहत
बस एकबार तुम्हारी ज़ुबा से
मेरा नाम सुनने के लिए
तुमने पुकारा मगर
एहसास करा गये परायेपन का
ज़ुबा से निकले तुम्हारें ये अल्फ़ाज
कि जाओ आईने में देखकर आओ
बुढ़ापे की झुर्रियों को
फिर बात करना मुझसे
तीर की तरह मेरे अंतर्मन को
भेदते चले गये थे
मैं रोती-बिलखती खुद को
आईने के क़रीब ले जाकर देखी
सचमुच बुढ़ापे की झुर्रियों में
तुम्हारी प्रियतना का अस्तित्व मिट चुका था
ज़िंदगी की हक़िक़त आईना बयां कर रही थी
और इन बुढ़ी आँखों में
आँसुओं के सैलाब उमड़ पड़े थे
देखा था मैंने तुम्हें उम्र के अंतिम पड़ाव पे
तुम तो अज़नबी की तरह आये
और वापस लौट गये
उस वक़्त थामा था मुझे मेरे अपनों ने
जिन्हें मैं अबतक बेगाना समझती रही
उन्हीं के कंधे मेरे सहारे बने
मेरे आँसुओ में मेरी चाहत बह गई
और मैं लौट आई अपने अपनों के बीच
उम्र के अंतिम पड़ाव पे !!!

जय हिन्द और हिन्द की सेना ----

                                      

जब दिल में तमन्नाओं के फूल खिले
जब सावन भी अँगड़ाई ले
आ जाना तुम,आ जाना तुम
मनमीत मेरे,मनमीत मेरे

माना धरती के लाल हो तुम
पहले तुम्हें फ़र्ज़ पुकारेगा
पर हम भी हैं,राहों में खड़े
इस बात को ना भूल जाना तुम

एक माँ और भी है
जो बेसब्री से तेरी राहें देखा करती है
एक बहन है जो रक्षाबंधन पर
फूट-फूट कर रोती है
छोटा भाई भी क्या कम है दुखी
बस याद तुम्हें ही करता है
मेरी हालत सोचो क्या होगी
जो तेरी यादें लेकर जिंदा है

डरता है ये दिल इस बात से भी
वापस तुम्हें देख भी पाऊंगी
वादा है किया तुमने मुझसे
वापस फिर लौट के आने का
---- पर बात जब
वतन की हिफ़ाज़त की आये
इस बात से न हट जाना तुम
दुश्मन की इक-इक गोली को
सीने पर खाकर आना तुम

मुझे दर्द बहुत ही होगा तब
पर फ़क्र कहीं ज्यादा होगा
मेरी आँखों में आँसू होंगें
पर लब पे हँसी लहराएगी
और गर्व से मैं भी ले लूंगीं
तिरंगा अपने हाथों में
और जोश लगाकर बोलूंगीं
इन्क़लाब ज़िंदाबाद
जय जवान जय किसान
वन्दे मातरम् , वन्दे मातरम्
वन्दे मातरम् ,वन्दे मातरम् !!!

                                     








जय हिन्द और हिन्द की सेना ----

                                      

जब दिल में तमन्नाओं के फूल खिले
जब सावन भी अँगड़ाई ले
आ जाना तुम,आ जाना तुम
मनमीत मेरे,मनमीत मेरे

माना धरती के लाल हो तुम
पहले तुम्हें फ़र्ज़ पुकारेगा
पर हम भी हैं,राहों में खड़े
इस बात को ना भूल जाना तुम

एक माँ और भी है
जो बेसब्री से तेरी राहें देखा करती है
एक बहन है जो रक्षाबंधन पर
फूट-फूट कर रोती है
छोटा भाई भी क्या कम है दुखी
बस याद तुम्हें ही करता है
मेरी हालत सोचो क्या होगी
जो तेरी यादें लेकर जिंदा है

डरता है ये दिल इस बात से भी
वापस तुम्हें देख भी पाऊंगी
वादा है किया तुमने मुझसे
वापस फिर लौट के आने का
---- पर बात जब
वतन की हिफ़ाज़त की आये
इस बात से न हट जाना तुम
दुश्मन की इक-इक गोली को
सीने पर खाकर आना तुम

मुझे दर्द बहुत ही होगा तब
पर फ़क्र कहीं ज्यादा होगा
मेरी आँखों में आँसू होंगें
पर लब पे हँसी लहराएगी
और गर्व से मैं भी ले लूंगीं
तिरंगा अपने हाथों में
और जोश लगाकर बोलूंगीं
इन्क़लाब ज़िंदाबाद
जय जवान जय किसान
वन्दे मातरम् , वन्दे मातरम्
वन्दे मातरम् ,वन्दे मातरम् !!!

                                     








Friday, January 22, 2016

जीने की एक वजह दें दो ---

मुझे जीने की एक वजह दें दो
ज्यादा नहीं थोड़ी- सी बस
दिल में जगह दें दों
मुझे जीने की एक वजह दें दो

चलो आज दूर कहीं चलते हैं
वक़्त भी है साथ और मौका भी
दिख जायें शायद राहें वो
जिससे गुज़रते थे हम कभी
उन राहों को रौशनी दे दो

ज्यादा नहीं थोड़ी-सी बस
दिल में जगह दे दो
मुझे जीने की एक वजह दे दो

मिल बैठेंगें जब दो दिल तो
मंजिल खुद-ब-खुद दिख जाएंगीं
बातें होगीं जब थोड़ी-सी
फ़ासलों में भी कमी आएंगीं
छोड़ो बिती बातों को ज़मी दे दो

ज्यादा नहीं थोड़ी-सी बस
दिल में जगह दे दो
मुझे जीने का एक वजह दे दो

माना अब हम अकेले नहीं
तुम्हारी जिम्मेदारियाँ है ,मेरी भी
वक़्त जो था कभी हम दोनो का
आज मिलते हो जैसे दो अज़नबी
इन लम्हों में खुशी दे दो

ज्यादा नहीं थोड़ी-सी बस
दिल में जगह दे दों
मुझे जीने की एक वजह दें दो !!!

                               
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वो मोहब्बत नहीं

वो मोहब्बत नहीं
जिसमें ख़्वाहिश हो
खुद के चाहत को पा जाने की
कभी-कभी फ़ासलें भी
प्यार के रास्तें की मंज़िल होते हैं
प्यार को रूह से महसूस करने वाले ही
सही मायने में प्यार के काबिल होते हैं !!!

Thursday, January 21, 2016

नसीब

वैसे तो कमी हर किसी की ज़िंदगी में है
ठोकर खाकर सँभाल ले जो कदम
अक्लमंदी इसी में है
जानते हुये भी सबकुछ लोग
मंज़िल से भटक जाते हैं
शायद इसी को कहते है "नसीब "
लिखवा कर जो ऊपर से लातें हैं !!!

हुस्न ने फिर पर्दा किया है ---

                         

हुस्न ने फिर पर्दा किया है
नज़रें इनायत क्या होगी
पलकें उठाकर,नज़रें झुकाना
उफ़ तौबा मेरी जाँ लेगी

क्यों रूठें हैं,क्या चाहते हैं
कुछ भी ना मुझको बतायें ऽऽऽ
मेरी तरफ बस देख के संगदिल
बेवज़ह ही मुस्कुराये

हुस्न ने फिर दिखाई हैं अदायें
मेरी वफ़ायें क्या होगी
पलकें उठाकर,नज़रें झुकाना
उफ़ तौबा मेरी जाँ लेगी

मौसम सुहाना,दिल दिवाना
कैसे हम उनको बतायें ऽऽऽ
नज़रों की बातें वो पढ़ नहीं पाते
होंठो से क्या समझायें

हुस्न ने फिर की है शरारत
मेरी हालत क्या होगी
पलकें उठाकर,नज़रें झुकाना
उफ़ तौबा मेरी जाँ लेगी

उनको मुझसे है,मुझको उनसे है
बेपनाह मोहब्बत
फिर इन अदाओं से,क्यों करते हैं
वो अक्सर मुझे घायल

हुस्न ने फिर माँगीं हैं दुआँए हाय ऽऽऽ
कोई क़यामत क्या होगी
पलकें उठाकर,नज़रें झुकाना
उफ़ तौबा मेरी जाँ लेगी !!!


Wednesday, January 20, 2016

खुदा खै़र करें ---

                                  
अपने हाथों को उठाकर के इबादत में वो
नाम मेरा ही लें लेतें हैं,खुदा खै़र करें
नासमझ है वो,समझते नहीं ये बात ग़लत
नाम मेरा ही ले लेतें है, खुदा खै़र करें

कैसें समझाऊँ,कैसें समझाऊँ

वो कहतें हैं मुझे ,चाँद में तुम दिखते हो
गुले-गुलज़ार,गुलाबी शाम में तुम दिखते हो
हवा के झोंकों में भी रहते हो,तुम शामिल

कैसें समझाऊँ ,कैसे समझाऊँ

वो कहतें हैं,हसीं रात में तुम दिखते हो
मेरी बेचैनियाँ जज़्बात में तुम दिखते हो
मेरी साँसों के एक-एक तार में हो तुम शामिल

कैसें समझाउँ,कैसें समझाऊँ

मुझसे कहतें है
कितनी दूर तलक जाओगे
इतनी बढ़ जाएंगी बेचैनियाँ
कि खींचे चले आओगे और
खुद ही कहोगे ,तेरे जीवन में हूँ शामिल

कैसे समझाऊँ,कैसे समझाऊँ

देखकर उनकी अदा़
मैं ख़ुद बहक जाती हूँ
आँखें बंद कर
उनकी बाँहों में सिमट जाती हूँ
शर्म से हो जातीं हैं मेरी आँखें बोझिल

कैसे समझाऊँ,कैसे समझाऊँ !!!

                               
                              




Tuesday, January 19, 2016

इक आधा-अधुरा सपना होता

ज़िंदगी में कोई अपना तो होता
इक आधा-अधुरा सपना तो होता
यकीं किस पर करे अब तू ही बता दें
कि हर चेहरा
पढ़ना आसान होता

वो मुख़्तस दिन थे कितने खुशगुवार
आँखें बंद कर लेते थे सब पे एतबार
कोई शक-शुब्हा
न कोई इल्ज़ाम होता

वक़्त ने बदल दिया दोस्ती का मा'ना(मतलब)
हर तरफ फ़रेब का जाल एैसा फैला
जो सही है वो भी
इसमें पीसता न होता

हर रिश्तों की अपनी-अपनी ज़गह है
फिर भी क्यों क़द्र इसकी समझता कहाँ है
पहचान होती तो
कोई हादसा न होता

नसीहतें-तहज़ीब क्या देगें हम
आने वाली नस्लों को
जब खुद अपना
पाक दामन न होगा !!!

                                   
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Monday, January 18, 2016

कोई इंसां नहीं समझ सकता

तेरे दरबार में बैठे हैं
दुआँ माँगते हैं
तू भी तो किसी से
प्यार किया होगा ही
मेरी उल्फ़त को
कोई इंसां समझ नहीं सकता
तू तो ख़ुदा है
तू समझ सकता है ही
कोई चमत्कार कर
मुझको मिला दे उनसे
या बुला लें
तेरी दुनिया में अब दिल लगता नहीं !!!

क़ाबिल कहाँ रक्खा है

वक़्त ने हमें
इस क़ाबिल कहाँ रक्खा है
क़द्र हो आपकी नज़रों में
हमारी अनमोल चाहतों का
काश ऽऽ कोई बेवफा
आपको भी मिल जायें
तब फ़र्याद समझ सकेगें
हम रफ़ीक़ो का!!!!

तुम्हें भूल जाने की

तुम्हें भूल जाने की
कोशिश तो बहुत की थी
मगर भूल पाना
मेरे बस में नहीं था
जितने फ़ासले तुमने
दरमियां करने चाहें
तू मेरे दिल के
और उतने क़रीब था!!!

Sunday, January 17, 2016

अच्छा लगता है

अपनों का प्यार मिले
अच्छा लगता है
अपने अगर साथ चले
अच्छा लगता है
"एक"के दर्द पे कराहता हो
"दुजे"का दिल
ये एहसास बहुत अच्छा लगता है!!!

खुदाया एक हमदर्द तो ऐसा

रास्तें कईं हैं मगर
मंज़िल एक होनी चाहिये
जो दूर तक साथ चले
एैसा एक मुसाफ़िर होना चाहिये
ग़म और ख़ुशी में
एक सीना तो हो जिसपर सिर रखकर सुकून मिले
खुदाया एक हमदर्द तो ऐसा ज़िंदगी में चाहिये!!


सलामत रहें वो

सलामत रहें वो,रब्बा खैर करें उनकी
हमारी हर दुआँ उनके लिए है
हमारी हर ख़ुशी उनके लिए है
हमारी ज़िंन्दगी उनके लिए है
और कोई मिल्कियत हमारे पास नहीं है
जो नाम उनके कर दूँ
ऐसी कोई सौगात नहीं है!!!


Saturday, January 16, 2016

बाँध के क्या रक्खा है---

वे कहते हैं मुझसे
तुम्हें बाँध के क्या रक्खा है
दिल में जो क़ैद हो
उसे क़ैदखाने की क्या ज़रूरत है!!!

कैसे हो???

"दर्द" देकर पूछते हैं, कैसे हो??
"जख़्म"देकर पूछते हैं,कैसे हो??
अये ज़ालिम तेरी हर अदा पर
मुझे प्यार आया!!

फ़ित्रत ही रही

उनकी फ़ित्रत रही
हमेंशा हमें आज़माने की
हमारी हस्रत रही हमेशा
उनके क़रीब जाने की!!

इंतिहा कर दी

उनकी दिल्लगी एहसान है
हमारी मुहब्बत पर
जिसने ग़म की दौलत
हमें अदा कर दी
उसने रोते-रोते सज़ा दी थी
हमने हँसते-हँसते इंतिहा कर दी!!!

Thursday, January 14, 2016

आमने-सामने यूँ ही-------

आमने-सामने यूँ हीं बैठें रहें
वास्ता दिल से दिल का निकल जाएगा
शोख़ नज़रें हैं मेरी मेरे हमनफ़स
मैं शमा बन गई तो तू जल जाएगा
तू शमा है तो मैं भी तो परवाना हूँ
जल गया तो भी दिल में उतर जाएगा
हसीना हूँ हज़ारो पड़े हैं राहों में
कोई बेगाना कैसे मेरा बन जाएगा
मैं हूँ मंज़िल तुझे पास आना ही है
खो गया तो दिल मुश्कि़ल में पड़ जाएगा
अपनी तक़दीर पे इतना न इतराईयें
दिल जो टूटा तो जान पे बन जाएगा
हर एक शर्त मंज़ूर है हमें प्यार में
तेरा साथ होगा तो सफ़र कट जाएगा
मुझको मंज़ूर है तेरी चाहत सनम
दिल्लगी की न जाना तू रूठ जाएगा !!!


वह रोज़ पीता है----------

वह रोज़ पीता है---------
आँसू भी सकता है,ग़म भी पी सकता है
दर्द भी पी सकता है
मगर वह रोज़ पीता है
जिंदगी का ज़हर शराब--------
ग़म मे पीता है या ख़ुशी में
ऐश करने के लिए पीता है या
परेशां करने के लिए
मालूम नहीं
मगर वह रोज़ पीता है
जिंदगी का ज़हर शराब--------
अँधेरी रातों में सुनसान राहों पर
लड़खड़ाते क़दमों को सँभालता
गिरता फिर उठता
वही किसी गट्ठर या नाले मे गिर पड़ता है
थोड़ा होश आने पर उल्टियाँ करता हुआ
गालियाँ देता हुआ
घर की ओर चलता है
घर में बीवी बच्चें सहमें है
न जाने आज किस रूप में आएगा वो
क्या-क्या अत्याचार करेगा
कितना मारेगा वह
तबतक वह घर पहुँच जाता है
दरवाज़े से ही चिल्लाता है
अरे ओ करमजली मर गई क्या----------
आगे बढ़ता है, बड़े ही बेरहमी से मारता है
मारता ही जाता है,पत्नी और बच्चों को
क्यों मारता है मालूम नहीं
मगर वह रोज़ पीता है
जिंदगी का ज़हर शराब--------
सुबह जगने पर गलती का एहसास सताता है
माफियाँ माँगता है,कसमें खाता है
पत्नी और बच्चों की
कभी ऐसी गलती न करने की कसमें
मगर शाम होते ही
फिर शैतान हावी हो जाता है---------
वही सड़क,वही शराब वही नशे में धुत आदमी
वही कालरात्री
पत्नी और बच्चों की सिसकियों से भरी
वह क्यों पीता है??????
जिंदगी का ज़हर शराब------



Wednesday, January 13, 2016

कब्र,मकां या "घर"

ईंट और रेत से कब्र और मकां बनते हैं
एक घर प्यार की दिवारों से ही बनता है
नींव एतबार का पड़ता है हमेशा उसमे
वफ़ा से मंज़िले दर मंज़िले बढ़ता जाता है
स्नेह की ईंट से घर संवरता जाता है
प्रेम के रेत से ये और निखरता जाता है
एहसास की ख़ुशबू से सींचे तो ख़ुशहाली आती है
घर के हर कोने में हरियाली छाती है
समर्पण के अमृत से घर की मज़बूती बढ़ती है
प्रिय के प्रेम से आँगन की तुलसी बढ़ती है
दोनों की चाहत से घर का संसार फलता है
पवित्र इस बंधन से ही हर मकां एक घर बनता है!

Tuesday, January 12, 2016

बेज़बान

ज़ुबां थी ऽऽऽऽ
खोली नहीं तो ऽऽऽ
बेज़बान समझ बैठे
हमें तो इतना ही देखना था
सताने की ताकत बड़ी है या सहने की!!!

वो पहला स्पर्श

वो पहला स्पर्श
उसकी कोमल उँगलियों का
किसी प्रेमी का नहीं,हमदर्द का नहीं
हमउम्र का नहीं,जीवनसाथी का भी नहीं
वो पहला स्पर्श बचपन का
जो लौट आया वो मेरा है
मेरे जीवन की बगियाँ में
जो फूल खिला वो मेरा है
अपने टूटे-फूटे शब्दों से
'माँ' कहकर आवाज देना
उसका चलना,गिरकर संभलना
कहीं छिप जाना,कभी इठलाना
कभी भाग-भाग मुझे सताना
मेरे इस अंतर्मन को
छू लेने वाला मेरा है
एक-एक अदा जो भाव भरी
देख के जिसको खिल जाए मन
उसका नटखटपन,बालापन
उसका भोलापन,बड़बोलापन
उसकी मनोहारी सूरत में
जो अक्स छिपा है,मेरा है
मुझे परेशां करना और ख़ुश होना
उसका हँसना,उसका रोना
कभी मुँह बिचका के रूठ जाना
और बात-बात पे ज़िद्द करना
इन आँखों में बसने वाला
वो'कृष्ण कन्हैया'मेरा है!!!

Monday, January 11, 2016

फ़ुर्सत में

फ़ुर्सत से कभी बैठेगें तो
ज़िक्र करेगें हम उनका                        
फ़ासलें बढ़ायें किसतरह
बर्बाद किया मुझे किसतरह
हमने तो उनके अक्स को
दिल में इस तरह बिठा लिया
पत्थर के मूरत को हमने
ईश्वर का दर्जा दिया
उसने मगर हमदोनो को
नदी के दो किनारे बना दिया
जो मिल न पायें इसतरह
जो जुड़ न पायें इसतरह
बिजली गिराया दिल पे
ये मैं बयां करू किसतरह
हमने ज़मी बनके
दामन अपना बिछा दिया
सोची थकान होगी तो
वे आराम करेगें किसतरह
उसने मगर खुद को आसमां बना लिया इसतरह
जो मिल न पायें इसतरह
जो जुड़ न पायें इसतरह
दिल बार-बार टूटा मेरा
बयां करू किसतरह
वो फ़ासलें बढ़ायें इसतरह
हम पास जायें किसतरह !!!

Sunday, January 10, 2016

माँ बिन मायका

                                        

माँ बिन मायका,जैसे जल बिना मछली
कैसे रह पाऊंगी मैं, किससे बताऊंगी मैं
भाभी को बताऊंगी तो बुरा मान जाएेंगी
भईया को बताऊँ,वो भी सही सही नहीं मानेगें
पिता भी कहाँ बर्दाश्त कर पाऐंगे इसे

हर सामान में बस वो दिखती है
हर पकवान में मुझे वो दिखती है
लगता है, अभी आकर पूछ बैठेगीं
बोल बेटे,क्या चाहिए तुझे ???

ग़मो की परछाई से भी दूर रखती है
खुशियों से दामन भर देती है
बिन आहट सबकुछ समझ लेती है
इतना क्या कोई समझ पाएगा मुझे

एक दिन किसी तरह काट लेती हूँ
दुसरा दिन भी कट जाता है
तीसरे दिन नहीं सहा जाता मुझसे
ताना देते हैं लोग,जल्दी चली आई कैसे
पूछा नहीं क्या किसी ने मायके में तुझे

क्या-क्या बताऊँ,कैसे बताऊँ
कुछ भी नहीं अब वहाँ भाता मुझे

------ आँखें खुली ये एक बुरा ख़्वाब था मेरा
काँप गई थी मेरी रूह भी अबतक
ख़्वाब अगर इतनी भयावह है तो
हकिक़त को कैसे झेल पाऊंगी मैं

खुदा उन्हें सलामत रख्खे
हर एक पल उनका निगहबान रहे
दुआँ दिनरात यही करती हूँ उनसे
उम्र के किसी भी पड़ाव पे रहूँ
उनका साथ कायम रहे

क्योंकि-------बेहद निश्छल प्यार देती है माँ
बदले मे कुछ नहीं लेती है माँ
आज मैं भी एक माँ हूँ फिर भी
मेरी साँसों में रहती है माँ !!!

Saturday, January 9, 2016

ऊपर वाले के हाथ

जगह बदल दिजिए
रहन-सहन बदल दिजिए
सूरतें बदल दिजिए
जीने का हर अंदाज़ बदल दिजिए
मगर किस्मत ऽऽऽऽ
इसे बदलना सिर्फ ऊपर वाले के हाथ है !!

सबका मालिक एक

नाहीं मैं गुरू ग्रंथ साहिब जानती हूँ  न कुरान     ना बाइबल न गीता वेदपुराण
मैं जानती हूँ तो बस इतना
माँओं के दूध का रंग सफेद
और हर-एक के खून का रंग लाल
दर्द में आँखो में आँसू ही छलकते हैं
खुशी पे उभर आती है होंठो पे हँसी !!

शर्माते हो क्यों इसतरह ---

                             

तुम्हें प्राणप्रिये कहता हूँ प्रिये
तुम शर्माते हो क्यों इसतरह

माना अब उम्र नहीं एैसी
मैं सत्तर का तुम पैसठ की मगर

उम्र से क्या फ़र्क रिश्तों पे पड़ा
तुम शर्माते हो क्यों इसतरह

सच है पोते-पोतियाँ सुन लेगें
बुढ़ा सठिया गया है लोग कहेंगे

मैने ये दिल बस तुमको दिया
तुम शर्माते हो क्यों इसतरह

                                

मुझे याद है अपना पहला मिलन
तुम तेरह के थे और अठारह के हम

तुम सारी रात छिपते रहे
मैं पीछे भागता रहा
तुम शर्माते हो क्यों इसतरह

मैने सिखाया तुम्हें जीवन के सारे गुण
पारिवारिक गुण सामाजिक गुण           भावात्मक गुण रोमांटिक गुण

क्या बुरा किया जो चाहत को नाम दिया
तुम शर्माते हो क्यों इसतरह

चलो उम्र के इस पड़ाव पे
फिर से उन यादों को ताजा कर लें
बाँहो में बाँहे डालकर
पहले की तरह थियेटर चले

मुँह मे दाँत नहीं फिर भी क्या हुआ
तुम शर्माते हो क्यों इसतरह

आओ आज तुम्हें बाँहो में भर लूँ
एहसास जवानी का कर लूँ

                                            
अब जीना है बस एक-दुजे के लिए प्रिया
तुम शर्माते हो क्यों इसतरह !!!





Friday, January 8, 2016

" बला की खूबसूरत थी वो "

                               

बला की खूबसूरत थी वो'
संगेमर्मरी बदन था उसका
जब भी मुस्कुराती
दुधियाँ छटा बिखेर जाती
छत पर निकलती तो लगता
चाँद उतर आया हो
गली में निकलती तो
हर आती-जाती नज़रे उसी पे टिकी होती
मैं भी तो नज़रे बचाकर
निहारा करता था उसे
नाम था उसका मोहिनी
'बला की खूबसूरत थी वो'

एक दिन गली में उसने मुझे रोका फिर टोका
सुनो हर कोई मेरी खूबसूरती को निहारता है
एक तुम ही नहीं देखते
पहले मैं थोड़ा डरा,झिझका
फिर हिम्मत जुटाकर बोल गया
सुनो तुम अपना नाम चाँदनी क्यों  नहीं रख लेती
तुम्हारे संगेमर्मरी खूबसूरती पर                 तुम्हारा नाम फबता नहीं
वो खिलखिलाती हुई नज़रो से ओझल हो गयी थी

वो शाम मेरी मुहब्बत की
सुबह बनकर आयी
उसने भी दबी जुबां में शायद इज़हारी जतायी
एक दिन राह में फिर नज़रे टकराई
वह मुस्कुराई फिर बोली
सुनो मैं चाँदनी हूँ
दोस्ती करोगे मुझसे
मैने भी बहुत शराफ़त से                         उसकी तरफ हाथ बढ़ाया
वह फिर मुस्कुराई
आँखो ही आँखो में कुछ बोल गई
सोचा था क्या
किस राज को खोल गई

सुनो मैं तुम्हें किसी से मिलवाना चाहती हूँ
सभी बेगानो में एक तुम्ही अपने से लगे
इसलिए बताना चाहती
ये है मेरा हमसफ़र
मुहब्बत करते है हम एक-दुजे से
और तुम हो मेरे सबसे अच्छे दोस्त हाँ दोस्त
क्योकि जब सभी की निगाहें
मुझे गलत लगती थी
तब एक तुम्हीं ऐसे थे
जिसमे मुझे पाक़िजगी दिखती थी

मेरे होंठो पे हँसी आई
आँखे डबडबायी
नज़रे दूर तक
दोनो को साथ जाती देखती रही
शाम हो आई मेरे मुहब्बत की शाम
मैं गुनगुनाता हुआ चल पड़ा
साथ थी तन्हाई
दिल से आवाज आई

"पाक़िजगी का लेबल लगा गई
वो मेरा दिल चुरा गई
मैं करता रहा जिसका इन्तज़ार
वही मुझे अंगुठा दिखा गई"
'खूबसूरत सी बला थी वो'!!







शिकायत है मुझसे

तुमने जिस रूप में
हमें देखना चाहा
हमनें उस रंग में
खुद को रंग डाला
मगर तुम्हें आज भी
शिकायत है मुझसे
उतनी ही                                            
जितनी पहले मुलाक़ात के वक़्त थी !!

Thursday, January 7, 2016

आख़िर क्यों ???

बहुत अच्छा लगा
पहली बार तुम्हें
मेरे लिये
दुनिया के सामने
खड़ा होता देख
फिर ऽऽऽऽऽऽ
ये फ़ासले क्यों आये
दरमयां हमारे ?¿?¿?

मैं ही क्यों ???

वो खुशवक़्त वापस ला दो
या फिर बचपन लौटा दो
बहुत हुआ आज़माना आज़माना आज़माना
मैं ही क्यों???
किसी और को भी ये जगह दो!!!

दास्तानें हिज्रा

दर्द का कागज होगा
कलम तन्हाई की
लिख देगे दास्ताने हिज्रा
उनकी बेवफाई की !!

Wednesday, January 6, 2016

दिल एक बच्चा

दिल एक बच्चा ही तो है
उसकी ज़िद्द है सबकुछ पा जाने की
ये हमारा काम है
उसे किस खिलौने से बहलाये!!

ये तृष्नगी कैसी.........

ये तृष्नगी ऐसी है अये खुदा
पहले एक क़तरा काफी था जीने के लिए
अब समुन्दर से भी जी नहीं भरता!!

Tuesday, January 5, 2016

बदलते वक्त के साथ

बदलते वक्त के साथ चलो
थोड़ा तुम बदलो थोड़ा हम बदले
अपने 'मै' को बगल मे रखकर
अपने 'अहम' से थोड़ा हटकर
थोड़ा तुम चलो थोड़ा हम चले
बातों को जितना खींचो बढ़ती हैं
रिस्तों के नाजुक डोर को कमजोर करती हैं
ऐसे मे 'हम' बनकर दोनो साथ चले
थोड़ा तुम जुड़ो थोड़ा हम जुड़े !!

एक ही मंज़िल

रास्ते कई है मगर मंज़िल एक होनी चाहिए
जो दूर तक साथ चले
ऐसा एक मुसाफ़िर होना चाहिए
ग़म और ख़ुशी मे एक सीना तो हो
जिसपर सिर रखकर शकून मिले
खुदाया एक हमदर्द तो ऐसा ज़िंदगी में चाहिए !!

Monday, January 4, 2016

ज़िंन्दगी तुझसे 'हम' चाहिए

एक निगाहें करम चाहिये
ज़िंदगी तुझसे 'हम' चाहिये

खो गये हैं जाने कहाँ
अक्स देखते नहीं आईना

भागते फिर रहे है किधर
कुछ ना सोचे न समझे बिना

खुद पे थोड़ा रहम चाहिये
ज़िंदगी तुझसे 'हम' चाहिये

लाख दौलत कमाये मगर
शकुन के एक पल की तड़प

बैठे हैं घिर के लोंगों में
खुद से मिल ने की नहीं फ़ुर्सत

चश्म मे एक चमन चाहिये
ज़िंदगी तुझसे 'हम' चाहिये

ख्वाहिशें भी है पाली अगर
वो भी इंसानियत से अलग

मर्जियों में भी शामिल है क्या
दिल जाने नहीं बेखबर

थोड़ा कुछ तो शरम चाहिये
ज़िंदगी तुझसे 'हम' चाहिये

मंजिल की है चाहत मगर
प्यास किस चीज की ना खबर

क्या सही है क्या है गलत
बिन समझे जारी है सफ़र

एक नया फिर जनम चाहिये
ज़िंदगी तुझसे 'हम' चाहिये

                                          
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एक ऱोज वो सुनेगा

एक ऱोज वो सुनेगा
दिल को यक़ीन है इतना
ना हारेगी ये साँसे
कोशिश हो चाहे जितना
माँ ने सिखाया हमको
सच है ये भी उतना
वो परखता है कसौटी पे
उतरते है हम कितना
हारेगे ना हिम्मत
कोई साथ हो न अपना
उम्मीद की लौ को
तुम भी जलाये रखना
जिद्द है ये मेरी उनसे
उनपे ही हक़ है इतना
वो देखता है सबकुछ
अंदाज़े बयां अपना !!

अचानक ज़िंन्दगी में

अचानक ज़िंन्दगी में हादसे हो जाते हैं
कोई मिल जाता है तो बिछड़ जाते हैं
अक्स अक्सर उनका तन्हाइयों मे तड़पाता है
भूलकर भी वो अज़ीज़ बहुत याद आता है!!

Sunday, January 3, 2016

इसकदर प्यार में

                                             

इसकदर प्यार में टुटे की
खुदा भूल गये
कोई अपना भी है इस शहर में
ये भूल गये

कश्ती कागज की थी
उसे तो कही डुबना था
दिल भी शीशे का था
उसे भी कही टूटना था
उसकी चाहत ने रूलाया
कि वफा भूल गये

हज़ारो सुरते शामिल है
अंजुमन मे मगर
कौन है दोस्त
या रक़ीब या रशीद यहाँ
कऱीब भी गये
पर्दा हटाना भूल गये

एक आश्याँ हो प्यार का
कोई दस्तक दे दे
ख्वाहिश ख्वाहिश ही रह गयी
कोई एक घर दे दे
दरोदिवार की चाहत में
इतना भटके कि
कहाँ रहते हैं
उस दर का पता भूल गये

अब न वो जिक्र
न तलाश न अफ़सोस कोई
न मुक़द्दर से
किसी बात की शिकायत है
क्योंकि हममे
चलती भी है क्या साँसें
उफ़ ये भूल गये !!

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Saturday, January 2, 2016

नये साल का जश्ऩ

नये साल का जश्ऩ मनायें
नये तरिकों को अपनायें
सोच को थोड़ा विकसीत कर के
चलो धरती को स्वर्ग बनायें
जहाँ जातिवाद न भ्रष्टाचार                             न आतंकवाद न शोषण हो
साम्प्रदायिकता का जन्म ही न हो
जड़ से ऐसे काट गिरायें
धर्म-कर्म के नाम पे जो                               खेल रहे हैं खुन की होली
आम लोग ही पीसतें इसमे
ये बातें समझें-समझायें
भूख लगी हो गर भूखे को
रोटी की पहचान न करता
हिन्दु-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई
एेसा कोई नाम न धरता
अमीर-गरीब और ऊँच-नीच से
ऊपर उठकर बात चलायें
ईश्वर जब कोई भेद न करता
हम क्यो ये मतभेद बढ़ायें
सूरज-धरती-चाँद-परिन्दे
किस देश के वासी हैं
नदियाँ-झरनों के पानी पे
किसका एकाधिकार बाकी है
जन्म किसी बच्चे का हो जब
माथे पे क्या धर्म लिखा है
मन को जरा टटोले तो
उत्तर खुद के अंदर पायें
भ्रष्टों के चक्कर मे पड़कर
देश को न बदनाम करायें
खुद भी सोचे खुद ही समझे
एक प्यारा हिन्दुस्तान बनायें!!