Search This Blog

Tuesday, June 28, 2016

आसान नहीं है मुहब्बत का रास्ता

ए दिल ज़रा मुहब्बत में क़दम                          
फूँक कर बढ़ा                                    
 आसान नहीं है                                      
इसतरफ का रास्ता
इस राह में सैयाद
जाल भी बिछाये हैं
फँस ना जाये पाँव कही
तू सँभल ज़रा

ये उम्र ही ऐसी है
जब खबर  दिल को होती है
देर हो जाती है
बहुत ज़िंदगी रूलाती है
बस थोड़ी एहतियात तू
ख़ुद से बरत ज़रा
आसान नहीं है इसतरफ का रास्ता

माना मुहब्बत जरूरत हर किसी की है
माँगकर नहीं मिलती ये
मुक़द्दर से मिलती है
तमाम कोशिशे बेकार यहाँ
तू सँभल ज़रा
आसान नहीं है इस तरफ का रास्ता

कुछ मनचले हाथों मे दिल
लिये फिर रहे
दिल में क्या रक्खे हैं मगर
बात परखने की है
थोड़ा काबू रख और
ख़ुद को वक़्त दे ज़रा
आसान नहीं है इस तरफ का रास्ता

                                          


                                     



                                        




                                        


                                                









Saturday, June 25, 2016

गुनगुना कर चले जाना

                                      

फिर आके वादियों में                                   
गुनगुना के चले जाना                                               
बहुत बेज़ार है सनम दरख़्तें                            
जहाँ लेते थे हम ठिकाना                                
वही है झरने बेकल
वही चिनार का वृक्ष पुराना

बहुत बेज़ार है सनम दरख़्तें
जहाँ लेते थे हम ठिकाना

तुम्हें तो याद भी न हो,पुरानी बातें हैं
पड़ी ज़हन पे धुंधली,ये मुलाकातें हैं
बना के बाँहों का मेरे बिस्तर
लेते थे तुम सिरहाना

बहुत बेज़ार है सनम दरख़्तें
जहाँ लेते थे हम ठिकाना
                                   
चमक उठी थी जो बिजली
तुम्हारी हालत क्या थी
बूँदे आँसमा से गिर रहीं थीं
नमी इन आँखों में थी
लपक के सहमे से ढ़क लिये थे
ख़ुद का चेहरा शायराना

बहुत बेज़ार है सनम दरख़्तें
जहाँ लेते थे हम ठिकाना

इन दरख़्तों पे हमारा नाम
अब भी महफूज़ है
इन वादियों में तुम्हारी पुकार
अब भी शामिल है
सिमट के आते थे बाँहों में
बहार ब दामाँ आशिकाना

बहुत बेज़ार है सनम दरख़्तें
जहाँ लेते थे हम ठिकाना !!

बहार ब दामाँ -- दामन में बहार की शोभाएँ लिये

                                        

ब्लॉग ज्वाइन करने के लिए ऊपर बाँयी तरफ सिनरी के नीचे join this site पर क्लीक करे


Friday, June 24, 2016

धूप में जल रहा था

किसी के हाथों में किताबें देख
किसी का दिल मचल रहा था
छोटी-छोटी ख़्वाहिशें पाले नन्हा दिल
ज़िंदगी की धूप में जल रहा था

दूर किसी महल में रौशनी
झिलमिला रही थी
किसी टुटी झोपड़ी में नन्हा दिया
भी कम जल रहा था
भाव को पत्थर बना कर वह
खुली आँखों से सपने बुन रहा था

वो खाने जो
पालतू जानवरों के नसीबों में थी
उस खाने पे  ललच रहा था
अपने बालापन से लड़कर
डूब-डूब कर उभर रहा था

लिख पत्थर पर कुछ  ऊटपटांग शब्द
लोगों को दिखा-दिखा चहक रहा था
कहकर  लोग अनाथ चिढ़ाते
उन शब्दों से तड़प रहा था

मात-पिता के सुख से वंचित
जहां से प्यार की उम्मीद कर रहा था
पेट की आग बुझाने के लिए
कड़ी मशक्कत  से गुज़र रहा था

याख़ुदा तुने भी क्या सोचकर
तक़दीरें बनायी थी
बनायी वो बात तो ठीक थी
उसमे मासूमों की मासुमियत क्यों पिसवायी थी
आँखे ना भर आई जब वह
तेरी रहमोकरम को तरस रहा था

छोटी छोटी ख़्वाहिशे पाले नन्हा दिल
ज़िंदगी की धूप में जल रहा था

                                
ब्लॉग ज्वाइन करने के लिए ऊपर सिनरी के नीचे बाँयी तरफ join this site पर क्लीक करें








Thursday, June 23, 2016

बात खनकती चुड़ियों की थी

बात हाथों में खनकती
चुड़ियों की थी
और वो खफ़ा हो के चल दिये
जो कहा
एक नज़र देख लिजिए

माथे की बिदिंयाँ ने भी
एतराज जतायी थी
इधर वो देखते नहीं
वो चमके किसके लिए

ये भी क्या बात है
बेज़ार हुए जाते हैं
पहले फिरते थे आगे-पीछे
अब बेगानगी जताते हैं
वो दिन क्या भूल से भी
याद नहीं आते है
मेरी तारिफ में जब
नग्में बनाये जाते थे

बात पैरों में झनकती
पायल की थी
और वो खफा हो के चल दिये
जो कहा
एक नज़र देख लिजिए

फ़लक के चाँद तारे तोड़
नहीं माँगें थें
नाहीं तारिफ में वो
कुछ कहें ये चाहें थें
उनके होंठों पे थिरकती मुस्कराहट की
मगर बेकार ये उम्मीद हम जगाये थें

बात चाहत में लिपटी हुई
एक नज़र की थी
और वो खफा हो के चल दिये
जो कहा
एक नज़र देख लिजिए

                                             
ब्लॉग ज्वाइन करने के लिए ऊपर सिमरी के नीचे बाँयी तरफ join this site पर क्लीक करेें


                                         



                                     


                                                    










Saturday, June 18, 2016

मुस्कराहट पे तेरी

मुस्कराहट पे तेरी
मर जाऊँ यार न कर
क़ातिलाना अंदाज से
मुझे हरपल घायल

अभी बाली है उमर
बहक जायें न डगर
ऐसी हस्रत भरी आँखो से
यूँ देखा न कर

ज़रा रख दिल पे सबर (सब्र)
सादगी पे न बहक
वर्ना इल्ज़ाम लगेगें
ज़माने के बहुत

हमक़दम साथ में चल
बहुत लंबा है सफ़र
किया वादा जो है तुने
कभी उससे न मुकर

शर्मोहया की चादर
नाज़नींनों की दौलत
दस्तक देकर के दिल पे
थोड़ी देर ठहर

प्यार मे जीत शिकस्त
नहीं होता दिलबर
ये तो बंधन साँसों का
खुदा से मिल के निकल चल

                                             


                                            
                                                              






Friday, June 17, 2016

लग गई मेंहदी

कि उनके हाथों में सँज गई मेंहदी
पहन चुनर सुर्ख मेरे लहु की
वो चल पड़े मेहमानों की तरह

बातें करते हैं सबसे हँस-हँस कर
जब भी पड़ जाती है मुझपे नज़र
मुँह फेर लेते है बेगानों की तरह


मेरे दिल का बना खिलौना
पहले जी भर के खेला अर्मानों का खेला
फिर बेच आये बेसामानों की तरह

किसके बातों पर एतबार करूँ
किसके आँखों मे मुहब्बत पढ़ लूँ
वो बन गये बेजबानों की तरह

पलकें झुकी और आँखे नम
उस खुदगर्ज के साथ बिताये दिन
याद आते है एहसानों की तरह

बुरा जो चाहूँ तो किसका
जो मेरी साँसे है उसका
नहीं हूँ मैं शैतानों की तरह !!

                                                          
ब्लॉग ज्वाईन करने के लिए ऊपर सिनरी के नीचे बाँयी तरफ  join this site पे क्लीक करे

Wednesday, June 15, 2016

रजनीगंधा पुष्प खिलने लगे हैं

सहने मकाँ में रजनीगंधा पुष्प
अब खिलने लगे हैं
तुम आकर उसकी खुशबू साँसों में भर लो
तुम्हें खुश देखकर इस दिल का
कँवल भी खिल जाये
बेतकल्लुफ़ ये आरजू कर लो

शाख दर शाख हैं शाखे गेसू
कब से इनकी तरफ देखी नहीं हूँ
तोड़कर कुछ रजनीगंधा पुष्पों को
मुट्ठी में बाँधे बैठी हुई हूँ
शामगाह अंधेरी रात में ढ़लने लगी है
आकर गेसूए  सँजा जाओ

दामन की आड़ में हवा से बचाकर
जलता चिराग जगमगाई हुई हूँ
ये सोचकर कि कोई अब यहाँ रहता नहीं
तुम उल्टे पाँव वापस न लौट जाओ

हमारी सायागाह तुम्हारी बाँहे हैं
जिसमे मैं महफूज़ रहती हूँ
दुनिया के स्याह सवालातों से
कभी कभी मगर डर -सी जाती हूँ
रफ्ता रफ्ता ज़िंदगी में आये हो
रफ्ता रफ्ता रिश्ते को नाम दे जाओ

शाम की लालीमा देख कर अब तो
पक्षी भी अपने-अपने आशियाँ  लौटने लगे हैं
मुझे इंतज़ार तुम्हारा है क्योंकि
रजनीगंधा पुष्प साथ तुम आैर मैं होगें
मुझपे बादे सहर बनके छा जाओ

                                

सहने मकाँ - घर का आँगन
बेतकल्लुफ़ - निस्संकोच
आरजू - इच्छा
शाख दर शाख - उलझा हुआ
शाख़े गेसू - बालों की लट
शामगाह - संध्याबेला
गेसूए - जुल्फे
सायागाह - आराम की जगह
महफूज़ - सुरक्षित
स्याह सवालातों - गलत पुछने की क्रिया
रफ्ता- रफ्ता - धीरे धीरे
आशियाँ - घर
बादे सहर - सुबह पूर्व से चलने वाली
               शीतल मंद वायु

इस ब्लॉग को ज्वाइन करने के लिए ऊपर सिनरी के नीचे  बाँयी तरफ join this site पर क्लीक करे


        
                               









Tuesday, June 14, 2016

तक़ल्लुफ़ न किजीए

हम चले जाऐंगे सनम आप
तक़ल्लुफ़ न किजिए
ज़िंदगी का हर सफ़र तन्हा है
हमें तन्हा छोड़ दिजिए

कब तक देंगें साथ मेरा
मेरे ग़म के अंधेरों में
कहाँ तक चलेंगें साथ मेरे
काँटे भरी राहों में
ऐसी राहों से हो गुज़र क्यों
हमें तन्हा छोड़ दिजिए

नहीं मिलती यहाँ पर हर वो खुशी
तमन्ना हो जिसकी
बात बनती नहीं बनाने से
जो तक़दीर न हो सही
ऐसे ग़म में हो बसर क्यों
हमें तन्हा छोड़ दिजिए

जी लेंगें हम ये सोचकर
मेरा प्यार है कहीं
कभी आँचल भरा था प्यार की
खुशबू से मेरा भी
आपकी ज़िंदगी का ज़हर बने क्यों
हमें तन्हा छोड़ दिजिए

                               
ब्लॉग ज्वाइन करने के लिए ऊपर सिनरी के नीचे join this site पर क्लीक करे


                                                    


                                 


                                             


                                      
                                                                                        

Monday, June 13, 2016

कल रात संजोये थे

बहुत देर तक बरसते रहें बादल
वो सारे ख़्वाब भींग गये
जो कल रात संजोये थे
हल्की हल्की बूँदों से
सँजायी थी कुछ लम्हें
वो सारे बिखर गये
जो कल रात पिरोये थे

तक़दीर की लकीरे भी क्या
बेतर्तीब लकीरें हैं
कुछ एक-दुजे से उलझी हैं
और कुछ कटी-छँटी हैं
तदबीर भी सिमटकर
बारिश में रो रही है
सारे एहसास मिट गये
जो कल रात महसूस किये थे

बख्ते नासरा से कुछ अरमान जोड़े बैठे थे
ब चश्मे तर के साथ वो भी बह चले थे
बददुआ किसकी शामिल थी
उसकी इबादत के बाद भी
सारी दुआएँ ज़मीदोज़ हो गई
जो कल रात माँगे थे

बेजा नहीं थी हरक़त
तूफ़ाने आब की भी
सब खुश थे बेइंतिहा
एक बस आँखे नम थी मेरी
वो सारे अल्फ़ाज भींग गये
जो तुमसे कहना चाहते थे

बादे खँजा ज़रा सुन जा
ब नज़रे हिकारत से ना देखा कर
मुतहज्जिर बन गई लेकिन
मुतकस्सिर नहीं हूँ अबतक
मौसिमे बाँरा ने सबकुछ छीना
फिर भी एतबार जिंदा है
जो हर लम्हा संजोये थे !!


बेतर्तीब - क्रमहीन
बख्ते नासरा - अधूरी किस्मत
ब चश्मे तर - भींगी हुई आँखों के साथ
बददुआ - श्राप
ज़मीदोज़ - मिट्टी मे मिल जाना
बेजा - अनुचित
हरकत - चाल
तूफाने आब - पानी का तूफान,सैलाब
अल्फ़ाज - लफ़्ज,शब्द-समूह
बादे खँजा - पतझड़ ऋतु की हवा
ब नज़रे हिकारत - तिरस्कार की दृष्टि से
मुतहज्जिर - पत्थर बन जाना
मुतकस्सिर - टूटा हुआ
मौसिमे बाँरा - बरसात

                                   


                                         


                                                                







Sunday, June 12, 2016

पर्दे में चाँद

ऐ रात जरा उनसे तू ख्वाहिश जता के पूछ
पर्दे मे चाँद क्यों है जानने का हक़ तो है
नाराज़ है या बात फ़कत दिल्लगी की है या
बेमा'ना चौदहवी के चाँद पर अमावस की रात है

बुनियाद ज़िंदगी की वो हैं
जिसपे खड़ा प्यार का महल
बेहद सहुलियत से कट रहा जीवन का हर सफ़र
हताश होते जब कभी जीवन के डगर पर
उम्मीद का दिया बन जाती है वो हमनफ़स
गुनगुना कर बात कोई कह दे तो अगर
उस नाज़नी के प्यार की बन जाती एक गजल

ऐ रात जरा उनसे तू दर्पण दिखा के पूछ
पर्दे मे चाँद क्यों है जानने का हक़ तो है

बेशक नज़रे बचाकर देखते है हम इधर उधर
न चाहते हुए भी नज़रे उठ जातीं हैं
कुदरत की रची हर खुबसूरत चीज पर
ये इंसानी फ़ित्रत है मोहब्बत नहीं हमसफ़र

ऐ रात जरा उनसे तू नज़रे मिला के पूछ
पर्दे  मे चाँद क्यों है जानने का हक़ तो है

ये ज़िंदगी है बिन मुस्कराये थम जाऐगी
यौवन की हर खुशी तन्हा पड़ जाऐगी
बखुदा एकबार
दिले बेक़रार की धड़कन सुना के पूछ
पर्दे मे चाँद क्यों है जानने का हक़ तो है !!

ख्वाहिश - इच्छा
फ़कत - सिर्फ
बेमा'ना - बेकार,निरर्थक
नाज़नी - सुन्दरी,कोमल
फ़ित्रत - स्वभाव,प्रकृति
बखुदा - खुदा के लिए,भगवान के लिए
दिले बेकरार - प्रेमव्यथा में तड़पता हुआ दिल
बुन्याद - आधार,अस्तित्व

                                           
ब्लॉग ज्वाइन करें,ऊपर सिनरी के नीचे बाँये तरफ join this site पर क्लीक करे





Friday, June 10, 2016

बहकने लगे यूँ

उनके हर ख़त पे महकने लगे यूँ
वो आस-पास हो चहकने लगे यूँ
खुशबू फूलों की थी उस खत में या मुहब्बत की
शाखे  आर्जू  झुकने लगे यूँ
वो आस पास हो चहकने लगे यूँ

मुआमला दिल का था संजीदा
इधर भी उधर भी
तस्वीर दिल में थी उनकी इसकदर बसी हुई
उनके होंठों के जाम लब पे मेरे
छलकने लगे यूँ
वो आस-पास हो चहकने लगे यूँ

उनके अल्फाज़ सीपो में क़ैद मोतियों- सी
एक-एक शब्द प्यार की खुशबू से पिरोई हुई
गहरा ये राज़ एक पे एक खुलने लगे यूँ
वो आस-पास हो चहकने लगे यूँ

वो ख़त थी या प्यार भरी बेचैनियाँ थी
क़रार इधर भी नहीं था ना उधर भी
उनके ख़ामोश जज़्बात बहकने लगे यूँ
वो आसपास हो चहकने लगे यूँ

                                                      
शाखे आर्जू - इच्छारूपी वृक्ष की शाखा
संजीदा - गंभीर
क़रार - सुकून,चैन
जज़्बात - विचार,खयालात,भावना


मेरा ब्लॉग ज्वाइन करने के लिए ऊपर सिनरी के नीचे join this site  पर क्लीक करे
                                               

Monday, June 6, 2016

हस्रत रही दिल की

हस्रत ही रही दिल की
कभी उनकी वफा पाये
वो आये तो मुस्कराये
वो जाये तो रूठ जाये

आने लगी है खुशबू
अब तो बनावटी फूलों से भी
पहचान कैसे हो महज़
खुशबू से जो बहक जायें

उनके मिलने की गर्मजोशी
और मेरे अंदाज बयां करते
कि ख़ास है एक चेहरा
जो पढ़ के भी ना पढ़ पाये

आँखों मे अश्क देते पराये नहीं
बेशक अपने हैं
फ़र्याद मुस्करा के
किससे किस अंदाज में बतलाये

मुंतज़िर सी निगाहें
तलाशती है शुकून के दो पल
टुटे हुए इस दिल से
किस लख्त़े दर को खटखटाये

अये बादल जरा बरस जा
दिल की बंजर धरती पर
कुछ जज्बात उमड़ आये
कुछ एहसास पनप जायें

                                    
   
हस्रत -इच्छा
मुंतज़िर - इंतज़ार करने वाला
लख़्ते दर - दरवाजे की किवाड़

मेरा ब्लॉग ज्वाइन करे,ऊपर सिनरी के नीचे jion this site को क्लिक करें