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Tuesday, August 30, 2016

मेरी जान निकल जाएगी

                               
उनकी खुशबू
फिजाओं में बिखर जाएगी
उनके आने पे तक़दीर बदल जाएगी

ए हवा तू ये सुन ले
बहुत शर्मिले हैं सनम
ज़रा- सा थम के बहना
कहीं चल दें ना हमदम
वो चल दिये तो मेरी जान निकल जाएगी

                           
तू ना छू लेना आकर
उनके तन्हा दिल को
जिसमे अब बसेरा होगा
मेरा जीवन भर को
ये इंतज़ार का पल सब्र का फल लाएगी

क्या मैं बताऊँ तुझे
उनके बिन कितना तड़पा
जब वो आएगे करीब
हिसाब लूँगा पल- पल का
तू देखना मेरे इक अश्क पे पिघल जाएगी

उनकी खुशबू
फिजाओं में बिखर जाएगी
उनके आने पे तक़दीर बदल जाएगी

                               


Monday, August 29, 2016

शर्मसार इंसानियत फिर

                             

शर्मसार इंसानियत फिर
फिर इक बात साबित हुई
दर्द बाँटने वाला
यहाँ नहीं होता कोई

दर्द किसी का देख यहाँ
आँसमां फटा धरती रोई
इंसान तमाशबीन बना रहा
ज़मीर थी उसकी बिलकुल सोई

थम जा बस इंसान यही पे
सरकार तो दोषी है ही
दर्द किसी का देख
इक दिल नहीं पसीजा
लालत है बेदर्द दुनिया तेरी

इक गरीब लाचार मृत जिस्म
कंधे पर रक्खा भारी
गिरता उठता कभी संभलता
चलता जाता दूर कही

थका-हारा भूखा-प्यासा बढ़ता
दिल पे रख पत्थर भारी
नजरें बचा भीड़ हट जाती
हाय रे इंसान ??????
तेरी फितरत कितनी प्यारी

चलता जा ओ गरीब तू
कोई चित्कार तेरी सुनेगा नहीं
भरते को ही भरते सब हैं
गरीब की झोली हरदम खाली

कोई बंधू साथी मसीहा
मदद को ना आया तेरी
ये तो तेरी प्रियतमा थी
बोझ उठाना है तुझे ही

ये दुनिया की रीत है पगले
आँसू उसको मिलते हैं
जिनकी कीमत कौड़ियो की रख
इंसां ही इंसां की लगाते हैं

कैसे कहे इंसान है हम
गर है तो ??????
मुहब्बत का जज्बा जिंदा रहने दो
कि जमीर कभी धिक्कारे नहीं
इतनी तो शराफत रहने दो

कल अपनी बारी आये तो
कोई हाथ मदद को आगे बढ़े
बाँट ले दर्द इक भी इंसां
क्योंकि ???????
आज मेरी तो कल तेरी बारी

                                   






Sunday, August 28, 2016

ये दिल मेरा अपना है

                                        
तेरी गलियों से गुजरना छोड़ दूँ
तो जीयूँ कैसे
सनम ये दिल मेरा अपना है
सज़ा दूँ कैसे

खिड़कियों पे जब मुस्कराते
नज़र जाते हो
उफ़्फ उस पल को इस दिल में
छुपा लूँ कैसे

गीले लटों से टपकती बूँदे
चुरा हाथों में
तेरी खुशबू से साँसों को
बचा लूँ कैसे

                              

तेरी बदनामियाँ ना हो
ख़्याल रखता हूँ
नज़रे चुरा सामने से
गुज़र जाऊँ कैसे

दुसरों से हँस-हँस
कर बातें करते हो
खुद का दिल जलने से
रोक पाऊँ कैसे

देखा करीब से
थोड़े हसीं हो थोड़े नादां भी
किसी की बातों मे आ जाओ
तो बचाऊँ कैसे

                             

प्यार करना जरूरी नहीं
तुम्हारा मुझसे
मुझको बेपनाह है ये
हक़ मैं जताऊ कैसे

वक़्त है सिर्फ दिखावे
और दौलत का
चाँद तारे नज़राने में
मैं लाऊँ कैसे

कम से कम इतना हो
नज़र भर मुहब्बत कर लूँ
छूने की ख़्वाहिश नहीं
तुमसे बताऊँ कैसे

                                 



Wednesday, August 24, 2016

जन्मे कृष्ण कन्हैया

                               
                                              
नंद घर बाजे बधईया                                     
जन्मे कृष्ण कन्हैया

ए बुआ आओ ज़रा काजल लगाओ
नज़र ना लग जाये भईया
जन्मे कृष्ण कन्हैया

रेशम की डोरी सोने का पालना
झूला झूले रास रचईया
जन्मे कृष्ण कन्हैया

                                      
कौन झूलावे सोने का पालना
कौन लुटावे अन्न-धन-रूपईया
जन्मे कृष्ण कन्हैया

माँ यशोदा झूलावे सोने का पालना
बाबा नंद लुटावे अन्न-धन-रूपईया
जन्मे कृष्ण कन्हैया

                                     
कौन लगावे माथे उनके तिलक
कौन लेवे हैं बलईया
जन्मे कृष्ण कन्हैया

बाबा नंद लगावे माथे उनके तिलक
माँ यशोदा लेवे हैं बलईया
जन्मे कृष्ण कन्हैया

                                        
माखन चोर माथे मुकुट मोर
दूध पिलावे धेनु गईया
जन्मे कृष्ण कन्हैया

मथुरा मे जन्म लेके गोकुला पधारे
बड़े नटखट नाग नथईया
जन्मे कृष्ण कन्हैया

                                        
माँ देवकी के प्यारे यशोदा के दुलारे
अद्भुत लीला रचे जग रचईया
जन्मे कृष्ण कन्हैया

चलो सखी आओ दर्शन कर आवे
ऐसी बाल छवि देखी ना रे दईया
जन्मे कृष्ण कन्हैया

                                               





Tuesday, August 23, 2016

लोग मिलते है यहाँ पत्थर के


                                   

दिल में रखना मुहब्बत सब से
फिर भी चलना जरा सँभल कर के
लोग रहते हैं यहाँ पत्थर के
लोग मिलते हैं यहाँ पत्थर के

पल में अपना बना लेते हैं लोग
पल में बेगाना भी कर देते हैं लोग
ऐसे देते हैं घाव उल्फ़त के
लोग मिलते हैं यहाँ पत्थर के

दिल में कुछ और बाहर कुछ
जुबां पे रहती है गुफ़्तगू कुछ
कैसे समझे निगाहें मक़सद ये
लोग मिलते हैं यहाँ पत्थर के

जिससे बाँटे दर्द वही हँसते हैं
पीठ पीछे से वार करते हैं
इससे बेहतर मर जाये खज़र से
लोग मिलते हैं यहाँ पत्थर के

दोस्त बनकर भी दगा देते हैं
अपने बनकर भी सज़ा देते हैं
किसपे अब हो यकिन अंदर से
लोग मिलते हैं यहाँ पत्थर के

लब सिल जायें तब भी क्या हो
लफ़्ज़ जाहिर हो तब भी क्या हो
कोई नहीं सँवारता ज़िंदगी बंजर से
लोग मिलते हैं यहाँ पत्थर के

                          









Wednesday, August 17, 2016

भईया राखी पे आ जाना

                                 
भईया  राखी पे आ जाना
भूला ना देना इस बहना को
भाई का फ़र्ज निभाना
भईया राखी पे आ जाना

धागे का ये बंधन है अनोखा
भईया मेरे देना ना धोखा
साल का ये इक दिन मेरा होगा
ना इस दिन तुम करना पराया

भाभी से कहना इंतज़ार में बैठी
भूखी बहना के घर है जाना
भईया राखी पे आ जाना
                                

राखी पे माँगुगी ना तुमसे
रूपये- पैसे चाहें गहना
मेरी उमर लग जाये तुम्हें बस
भईया तुमसे इतना है कहना

आँखों में आँसू छलक आये
प्यार मुझे बस देना
भईया राखी पे आ जाना
                                

मैं तुम तक शायद पहुँच ना पाऊँ
बंधन है अब मैं हूँ परायी
इज्जत हूँ अब दुजे घर की
मनमानी ना चलती अपनी

ये मेरे बाबुल का घर ना
मजबूरी ये जान जाना
भईया राखी पे आ जाना
                               


Tuesday, August 16, 2016

पति महफूज हाथों में है

                                     
                                                     
                                                    
एक शाम पति महोदय
बहुत थककर दफ्तर से घर आये
उनकी हालत देखकर हमने पूछा "चाय बनाये"
उन्होंने घूरकर मुझे देखा और बोला
रोज तो दफ्तर से आकर मैं ही चाय बनाता हूँ
एक ग्लास पानी भी नहीं पूछती
उल्टे मैं ही तुम्हें चाय बनाकर पिलाता हूँ
आज क्या बात हुई कि इतना प्यार बरसा रही हो
पैसे चाहिए या मायके वालों को बुला रही हो

अभी तक मै चुपचाप सारी बातें गटक रही थी
बिन आग के ही लपटों मे धधक रही थी
दफ्तर से तो रोज ही थके-हारे  आते हैं
किस बात का गुस्सा आज मुझपे दिखाते हैं

पति महोदय ने झुंझला कर कहा
अरे यार बकवास बंद कर
ऐसे ही बॉस ने दिमाग खाई है
पहले वाले कम थे जो अब महिला बॉस आई है

महिला बॉस का नाम सुनते ही
मन के तार झनझना उठे
अनगिनत सवालो के साथ
पति शक के घेरे मे आ फँसे
मैंने धीरे से क़रीब जाकर पूछा
वो दिखने मे कैसी है ????

पति महोदय का गुस्सा
सातवें आसमान पर चला गया था
आज पहली बार महसूस हुआ
कुछ ना कुछ मेरी पीठ पीछे तला गया था

मै झनकती-मटकती किचन मे गई टेन्शन में
चाय में चीनी की जगह नमक डालकर आ गई
                            

ये लो चाय पीकर दिल-दिमाग काबू मे लाओ और मुझे बताओ तुम्हारी बॉस दिखने मे कैसी है ????

पति ने ज्योहीं चाय मुँह मे उढ़ेली
पूरी की पूरी बाहर अा गई
मै थर-थर काँप रही थी
जाने मेरी कौन सी बात इन्हें इतनी सता गई
मैने धीरे से पूछा क्या हुआ ????
पति जोर से गरजे
मेरी मेहनत की कमाई अपनी ऐश मे उड़ाते हो
एक कप चाय माँगी तो नमक डालकर लाते हो

तभी फोन की घंटी घनघनाई
पति ने फोन उठाई
बहुत देर तक हँस हँस कर बातें बतिआई
मैने सोचा चलो जान बची तो लाखो पाई

थोड़ी देर बाद पति ने करीब आकर प्यार से बोला
डार्लिग कल मेरे बहुत ही अजीज़ मित्र
खाने पे आने वाले है खाना स्वादिष्ठ बनाना
नमक की जगह चीनी
चीनी की जगह नमक ना डालना
वरना मेरी नाक तुम्हारी इक बेवकुफी
से कट जाने वाले है

मेरे मन मे कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी
बॉस वाली बात कैसे पता लगाऊँ
मेरी दाल नहीं गल रही थी

दुसरा दिन था खाने के बाद
दोनो मित्रों की हँसी- ठिठोली
की आवाज गूँज रही थी
                             

मै क्या बताऊँ मेरे कानो मे ये कितनी चुभ रही थी

अचानक उनके मित्र ने कहा
यार सुना है तेरे अॉफिस मे महिला बॉस आई है
तेरी क्या पूरे स्टाफ की भी नींदें उड़ाई है
इतना सुनकर मेरे कान खड़े हो गये
और दरवाजे से जा लगे

पति महोदय ने कहा अरे यार
मत याद दिला उसकी कल फिर सोमवार है
जाने क्या हाल करेगी मेरी
लगता है ये जीवन ही बेकार है
मित्र ने धीरे से पूछा क्या बात है भाई
कही तू प्यार-व्यार के चक्कर मे तो ना फँस गया
क्या होगा इतनी सुन्दर भाभीजी का
जो तू अपनी नियत से भटक गया

अरे बस कर यार तू भी क्या-क्या सोचता है
बॉस सुन्दर होती तो
एक झलक देख कर इन आँखों को ही सेंक लेता
लेकिन उस काली-मोटी-भैसी के
करीब रहना तो दूर खड़ा भी नहीं रहा जाता

                                

ऊपर से खुद को एेश्वर्या राय समझती है
जाने कौन सा परफ्यूम लगाकर आती है कि
इतना बदबुदार महकती है
मुझे ही नहीं पूरे स्टाफ को सताती है
छोटी छोटी बातों पर तनख्वाह काट जाती है

और मत पूछ यार मुझे तो हमेशा
अपने केबिन मे अपने करीब बिठाती है
कहती है तुम इस ऑफिस के सबसे होनहार ईमानदार,मेहनती वर्कर हो
मुझे इज्जत देने का बहाना बनाती है
                               

क्या करूँ यार रात को भी
उसकी डरावनी सूरत ख्वाबों में आ जाती है
डरकर उठ जाऊँ तो
तेरी भाभी सवालों की झड़ी लगाती है
घर-बाहर दोनो का मारा हुआ हूँ
देख मेरी हालत मै कैसा बेचारा हुआ हूँ

मै अबतक कान लगाये उनकी
सारी बाते सुन रही थी

                            
मजे की बात ये है कि
मै बेकार ही इतना डर मन मे बुन रही थी

मैने झटपट गरमागर्म चाय उन्हें पेश किया
                                 
चाय की चुस्कियाँ लेते हुए पति ने कहा
तुमने चीनी कुछ ज्यादा ही डाल दिया

मगर मै खुशी से फूली नहीं समा रही थी
मैने पति  बिलकुल सही हाथों मे है
स्वयं को महफूज बता रही थी !!

                                     










Saturday, August 13, 2016

बाबा के द्वार

 
                               
                                
                                                     
मनवा मे उठल बा विचार
हम हूँ जाइब बाबा के द्वार
छा गईल सावन के बहार
पहुँचनी काँवरिया शिव के द्वार

बरखा बरसेला बेशुमार
राहियाँ मे छईया ना हमार
पैर मे छाला पड़ल हजार
देखी ना प्रभू पीड़ा हमार

नदियाँ पहाड़ करके पार
जल लेके अईनी तोहरे द्वार
सुल्तानगंज से काँवर धइनी साथ
पैदल ही अईनी तोहरे द्वार

बेलपत्र धतुरा भी बा पास
भाँग के गोला लईनी साथ
हाथ जोरत बानी हम तोहार
ले ली ना बाबा  प्यार हमार

भक्तन के भीड़ बा अपार
उनका मे हम हू बानी ठार
गुँजल बा तोहरे जय जयकार
तुही लगईब नईया सबके पार

बम बम बम बम बम बम बम बम
बम बम बम बम बम बम बम बम बम

                              


                                    





Friday, August 12, 2016

वतन तेरे लिए

                                                           
ऐ मेरे प्यारे वतन मेरे वतन
तुझसे मुहब्बत है सनम
तू मेरी जिस्म मेरी जान है
तू मेरी रूह मेरा ईमान है
तुझपे करू कुर्बान अपना हर जनम

                                  
                                              
तेरी आबरू पे कभी आ आय तो
बाँध लूँ मैं अपने सिर पे कफ़न
निकलूँ तेरे रक्षक जाते जिधर
लब पे हो जय हिन्द मेरा माद्रे वतन

                                  

                                                 
क्या करूँ तेरी धरती स्वर्ग हो जाये अब              
क्या लिखूँ तेरा दर्द समझा जाय अब
शर्मिंदा हूँ तुझसे
नज़रें मिलाने से भी मैं
है नहीं बर्दाश्त ये
अपमान  तेरा हो कहीं
गूँजे ना जहां जय हिन्द वन्दे मातरम्
वो जगह मानचित्र में ना हो कहीं

                                  

                                  
एक वक़्त था जब साथ मिल                           
तेरे लिए लड़ते थे हम
एक वक़्त ये भी आ गया
तेरे टुकड़े बाँटने को बेकल है हम
हमे माफ कर नहीं दे सके माँ तुझे
सकून का एक भी पल

                             

वो लाल तेरे ही तो थे जो
सीने पे गोली खाते थे
नदियाँ लहू की बन जाते थे
कहते थे भाई -भाई हैं
एक माँ के सब हैं लाल हम
वो लाल भी अब तेरे बँट रहें
अब खून के प्यासे है हम
कितना सहेगी तू ओ बुढ़ी माँ
ना कर यूँ  आँखे नम

                                
संतोष रख बहुत है अभी भी
मातृभूमि  तेरे भक़्तजन
तेरे इक इशारे पे वो माँ
फिर बाँध लेगे सिर पे कफ़न
मुझको भी इक मौका देना
ना देखना मेरा अबलापन
जब तक ये धड़कन चल रही
हर इक साँस से गूँजेगी
जय हिन्द वन्दे मातरम् जय हिन्द वन्दे मातरम्
जय हिन्द वन्दे मातरम् जय हिन्द वन्दे मातरम्
ऐ मेरे प्यारे वतन मेरे वतन !!

                                  


                                                       







Friday, August 5, 2016

इतना बताओ मुझको

                                       

मुहब्बत है कि नहीं इतना बताओ मुझको
बिन किसी बात के इतना ना सताओ मुझको
कहती है खुद मेरी तन्हाईयाँ खामोशियों से
गिला-शिकवा ही सही कर के मनाओ मुझको

उसकी गलियों से गुज़रते हुए  बेचैन दिल को
एकपल ही सही पर अक़्स दिखाओ मुझको
कशमकश में है दिल उनके बढ़ाये फासलों से
ढुढ़कर कुछ पल बहाने से मिलाओ मुझको

रोकतीं हैं मेरे कदमों की चाप मुझको ही
अपनी खुशबू बिखेर कर ना बुलाओ मुझको
ज़िंदगी है सफ़र तो क्या मुश्किलें कम हैं
सता के खुद को इतना ना रूलाओ मुझको

तुम मिलो या न मिलो जो कुछ मुझमे ज़िंदा है
सिर्फ तुम हो तुम्हीं हो ये जताओ मुझको
उठाकर हाथ दुआओं मे जब भी माँगा है
मेरी खुशियाँ हो तेरी दे दो बलाए मुझको !!

                                 
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Wednesday, August 3, 2016

आदमी आदमी से

                                          

आदमी आदमी से जल रहा है
लोग कहते है मौसम बदल रहा है
अंदर मक्कारिया ऊपर भोलापन
ज़हर दिखता नहीं कितना पल रहा है

वो जो कहकर अपना गले लगा रहे हैं
उनके अंदर भी कुछ ना कुछ चल रहा है
संभल जायें अपनी राहें बनाने के लिए
कोई गिराकर ऊपर से निकल रहा है

एतबार का दामन  तारतार करके
पर्दे से बाहर आने को फ़रेब मचल रहा है
क़रीब आये है दिल में मुहब्बत लिये
अंदेशा है वहाँ बाजार कोई सँवर रहा है

जिससे पूछो अमन की चाह रखते है वो
मगर कोशिशे करने से मुकर रहा है
वो गूँज हँसी-ठहाकों की कही गुम हो गई
कुछ बची है जो लब पे आकर जम रहा है

चाँद का मज़हब जिक्र से पता चलता नहीं
ईद का है या करवाचौथ का सवाल लग रहा है
ज़िदगी की कौन सी रात आखिरी हो यार
चलो छोड़ो मिट्टी डालो नफरत पे
प्यार बाँटो किस आग में तू जल रहा है !!