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Saturday, March 26, 2016

एक अहम् ही नहीं आता कान्हा

एक अहम् ही नहीं आता कान्हा
सोचती हूँ  करूँ तो, किससे करूँ कितना करूँ
किस बात पे इतराऊँ कान्हा
जो भी है, जितना भी है
तुने दिया, सब तेरा है कान्हा
कैसे मैं मेरा कहूँ
सूरत,शीरत,दौलत,शोहरत
जो भी है, जितना भी है
तुने दिया, सब तेरा है कान्हा
क्यों मै मेरा कहूँ
एक अहम् ही नहीं आता कान्हा
सोचती हूँ ,करूँ तो, किससे करूँ कितना करूँ
ये नज़रे जो तेरे दर्शन को
व्याकुल है,ये तेरे है, क्याें मै मेरा कहूँ
इस लब पे जो है नाम तेरा
वो लब भी तो तेरे है
कैसे मै मेरा कहूँ
एक अहम् ही नहीं आता कान्हा
सोचती हूँ ,करूँ तो,किससे करूँ कितना करूँ
सुख-दुख मे,ग़म और खुशी में
हरपल तुम शामिल हो कान्हा
जो सुखद पल  तुमने दिये हैं
वो भी तो बस तेरे हैं कान्हा
कैसे मै मेरा कहूँ
फूलो में पौधों में,गुलिस्ता के हर गुलो में
तुम ही बस दिखते हो कान्हा
किस-किस को अपना कहूँ
चाँद में सूरज में,अाँसमा के नीलेपन में
तुम ही तुम हो,किसपे अपना हक़ रखूँ
एक अहम् ही नहीं आता कान्हा
सोचती हूँ ,करूँ तो किससे करूँ कितना करूँ
हर इंसा में तुम दिखते कान्हा
जलूँ तो, किससे जलूँ, कितना जलूँ
किस बात का अभिमान कान्हा
ये साँसे भी जो चलती है,तुने दी हैं
जबतक है ये तन मे मैं जिन्दा हूँ
तन भी तो ये है मिट्टी का
मिट्टी मे ही मिलेगा
मैं क्यों *मैं*मैं* करूँ
एक अहम् ही नहीं आता कान्हा
सोचती हूँ, करूँ तो,किससे करूँ कितना करूँ !!






Tuesday, March 22, 2016

कैसे खेले होली और किससे

कैसे खेले होली और किससे
रंगो से भरे अपनो के हाथ
अब पराये से लगते हैं
भाईचारे की खिड़की से झाँकती
अपनो की तस्वीरे अब धुँधली हो चली है
अब वो फागुन की रौनक
कहीं दिखती नहीं है
वो चेहरे पर अपनापन का भाव
जो कभी अपना होने का एहसास कराता था
वो गायब हो चला है
कैसे खेले होली और किससे
एेसा नही कि आज किसी से कोई मिलता नही हैं
रौनके महफ़िले कही जमती नहीं है
मगर कुछ टूटा,कुछ खोया,कुछ तन्हा-सा है
आँखों में भाव तैरते ही नहीं है
जिसकी अनबूझ प्यास लिये
ये दिल तमन्ना करता है
कैसे खेले होली और किससे
कैसी मज़हब की
और ना जाने किन-किन बातों की
दीवारे खड़ी कर ली है हमने
इन गलत भावों के उभरने से
चेहरे पे छाये सारे अच्छे भाव
गायब हो चले हैं
कैसे खेले होली और किससे
वक़्त कितना तेजी से बदल गया है
हम देखते ही रह गये
मुट्ठी मे पड़े रेत की तरह फिसल गया है
हम लाख पीछे लौटने की कोशिश करे
हमारा आज हमारा पीछा नही नहीं छोड़ता
मन मे वो भाव आ ही जाते है
जो दिलो को तोड़कर
अविश्वास और नफरत पैदा करते हैं
बाँट कर हमें अलग-अलग श्रेणीयों में
कैसे खेले होली और किससे
न वक़्त बदलता है न हम
बदले भी कैसे हम बदलना चाहें तब तो
मुझे आज भी याद है बचपन के वो दिन
जब होली महज़ एक त्योहार नहीं था
कितने खुश थे हम
जब दिल किसी कड़वाहट से नही भरा था
वो होली मनाने हमारे घर आते थे
हम ईंद मनाने उनके घर जाते थे
नये कपड़े पहन ईंदी लेने और
मीठी-मीठी सेवइया खाने
मिलते तो अब भी है हम
पर्व,त्योहारों में
हँसते- मुस्कराते भी हैं साथ
मगर कहते है ना कि जब
किसी रिस्ते मे गाँठे पड़ जाती है
तो बस दिखावटीपन बचता है
अपनापन नहीं
बस यहीं ठहराव हर वक़्त नज़र आता है हममें
कैसे खेले होली और किससे
उसवक़्त हमसब सिर्फ हम ही हम थे
आज हम, हम और तुम मे बदल चुके हैं
जो बाँट देता है अपनेपन के एहसास को
और जुदा कर देता देता है हमे हम से तुम बनकर
कैसे खेले होली और किससे
जी करता है खींच ले आये वापस उन लम्हों को
और फिर से फैला दे चमन मे प्यार की खुशबू
और दिखा दे दुसरे मुल्को को कि
वो हमे तोड़ने की कोशिश ना करे
हम सब एक हैं
और दिखा दे अपनी एकता की ताकत
मगर उदास-तन्हा-नन्हा-सा दिल बैठ जाता है
क्योकि ये प्रयास सबकी होनी चाहिए
किसी एक की नहीं
कैसे खेले होली और किससे
टूटा हुआ दिल कभी कभी कल्पना करता है
कि कही ऐसा न हो कि भविष्य में
अपना ही हाथ हो और अपना ही चेहरा
और हम खुद से ही बोल रहे हो
****होली मुबारक*** !!




Monday, March 21, 2016

चलो हम भी खेले होली

छाई फागुनी छटा लाई रंगो की होली
कृष्ण कहे चलो जरा खेल आये होली
शिव के भी मन मे थी बस रही होली
हम भी खेलेगे मसाने मे होली
कृष्ण खेले होली भोलेनाथ खेले होली
दोनो की है मगर अलग-अलग टोली
कृष्ण खेले ब्रज में,भोलेनाथ श्मशान में
कैसी अद्भुत होगी चलो देख आये होली
कृष्ण खेले ब्रज की गोपियन संग होली
राधा भी संग मग्न भई टोली
शिव खेले श्मशान के भूत बैताल संग होली
कोई गोप न गोपियन
आँधर ,लाँगड़ ,लुलो की टोली
कृष्ण खेले होली भोलेनाथ खेले होली
दोनो की है मगर अलग-अलग टोली
कृष्ण खेले रंग गुलाल संग होली
भोले खेले चिता भस्म भर झोली
कृष्ण की होली पिचकारी भरी होली
लाल पीली हरी गुलाबी और नीली
शिव की पिचकारी है सर्पो की टोली
मारे फुफकार विष से ये भरी होली
कृष्ण खेले होली भोलेनाथ खेले होली
दोनो की है मगर अलग अलग टोली
कृष्ण की होली
बंसी-तान भरी होली
डमरू की डमक- डमक
शिवदानी की होली
इधर नाच रहे कृष्ण
उधर बाबा नाथ अघोरी
कृष्ण कहे प्रभू आपकी धन्य है होली
भोले कहे कान्हा तुमरी मनोहर है होली
प्रभू हम तो भये धन्य
देख-देख आपदोनो की होली
अलग-अलग भावो से भरी हुई होली !!


Saturday, March 19, 2016

वृंदावन श्याम खेले होली

वृंदावन श्याम खेलत होरी(होली)
चली आओ सखियाँ
आज मौका मिला है
उन्हें रंगने-रंगवाने का
रंगो-रंगाओ सखियाँ
लाल लगाऊँ,पीली या हरी,गुलाबी
ये बताओ सखियाँ
किस रंग में कान्हा रंगेगे
हमे बताओ सखियाँ
प्रेम के रंग मे रंग दो
यही रंग उन्हें हैं प्यारी
चली आओ सखियाँ
कृष्णा ले आये पिचकारी
रंगो-रंगाओ सखियाँ
कृष्णा जब लाये पिचकारी
गोपियाँ भाव दिखायी
जरा इतराई गोपियाँ
ऐसे ना लगवाऊँगी रंग
पहले बंसिया बजा के
जरा रिझाओ रसिया
आज मौका मिला है
हमे रिझाओ रसिया
मंद मंद कान्हा मुस्काये
ऐसी तान सुनाये
घिर के आ गई गोपियाँ
सुधबुध खोके रास रचाने
घिर के आ गईं गोपियाँ
जब वो खोई सुर की धुन मे
कान्हा को मिला मौका
रंग गई सारी गोपियाँ
उनके प्यार के रंगो में
रंग गई सारी गोपियाँ
चिढ़कर बोली गोपियाँ सारी
कान्हा ये धोखा है
रंग लगवा लो छलिया
हमसब आई होली खेलन
रंग लगवा लो छलिया
आगे-आगे कृष्ण मुरारी
पीछे गोपियाँ सारी
दौड़ लगाये रसिया
थककर चूर गोपियाँ सारी
दौड़ लगाये रसिया
देखकर उनकी हालत
कान्हा को दया आई
बैठ गये रसिया
आओ रंग दो जो रंग चाहो
आकर बैठ गये रसिया
कोई लगाता लाल कोई
हरा -पीला- गुलाबी
रंगतें जाये कन्हैया
सबको अपने रंगो मे रंगने वाले
आज खुद रंगते जाये कन्हैया
साँवली सुरत रंगीं चेहरा
और भी मन को लुभाये
वारी जाये गोपियाँ
आज जीवन सफल हुआ रे
वारी जाये गोपियाँ !!



Monday, March 14, 2016

दुआओ से यारों के

                                     

दुनिया में,लोगों में
दर्द कितना है,जख्म कितने हैं
देखा जब,आँखे पसार के
हम तो बहुत सही हैं,जमाने में
दुआओं से यारों के

यारों ने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया
यारों ने हमेशा सही रास्ता दिखाया
आँखों में जब आँसू आये
हँसा के मुझे
गिरने ना दिया ज़रा सा भी
अश्क को ज़मीं पे
वही पे रोक डाला

दुनिया में,आँखो में,अश्क कितना है
देखा जब,आँखे पसार के
हम तो बहुत सही है,ज़माने मे़ं
दुआओं से यारों के

रिश्ता खून का ना सही
उससे कम भी तो नहीं है
हर ग़म में, खुशी में
वो शामिल तो कहीं है

जीवन में,जीने का,पल कितना है
देखा जब,आँखे पसार के
हम तो बहुत है सही है,ज़माने में
दुआओं से यारों के

ज़िंदगी में सबकुछ
मिल जाता है
सच्चे यार जो मिलते हैं
रब भी ऐसी दोस्ती को
झुककर,सलाम करते है
दुनिया में,दुश्मनी कितनी है,देखा जब
आँखे पसार के
हम तो बहुत सही है,ज़माने में
दुआओं से यारों के

हमारी तमन्ना है
उन्हे ज़िंदगी की
हर खुशीयाँ नसीब हो
जितनी दुआएँ
उनके दिल मे ,हमारे लिए है
उतनी ही ,उनके भी करीब हो
नसीब में बद्दुआएँ कितनी है,देखा जब
बिना यारों के प्यार के

हम तो बहुत सही हैं,ज़माने में
दुआओं से यारों के !!

                                 


                                                 
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Saturday, March 12, 2016

प्रीत ना निभाई मुझसे

प्रीत ना निभाई मुझसे तुमने कन्हैया
तड़प रही हूँ जैसे जल बिन मछलियाँ
कान्हा ऽऽ कान्हा ऽऽ छलिया ऽऽ छलिया
माता पिता के तुमने बंधन छुड़ाये
कंस का कर संहार पाप मिटाये
मथुरा मे जन्म ले के गोकुल में आये
मुझे नाहीं मिले कान्हा ,कहाँ ढूँढ़ने जाये
कान्हा ऽऽ कान्हा ऽऽ छलिया ऽऽ छलिया
गणिका-अजामिल को तुमने उबारा
बड़े- बड़े पापियों को क्षण भर मे तारा
मै ही एक अकेली कान्हा तुमको बुलाती
जिसकी पुकार तुम ना सुनते गिरधारी
कान्हा ऽऽ कान्हा ऽऽ छलिया ऽऽ छलिया ऽऽ
इन्द्र ने कोप किया था ब्रज पे भारी
चारो तरफ जल ही जल था
व्याकुल थे नर-नारी
गोवर्धन उठाके तुमने प्राण सबकी बचायी
सिर्फ मुझे भूले कान्हा अब तक ना आये
कान्हा ऽऽ कान्हा ऽऽ छलिया ऽऽ छलिया ऽऽ
द्रोपदी की बारी कान्हा नंगे पॉव दौड़े
कौरव सभा मे सब चुप थे लाज तुमने रख ली
गज की पुकार सुनके तुरंत भागे आये
ग्राह को मार कर गज को बचाये
कान्हा ऽऽ कान्हा ऽऽ छलिया ऽऽ छलिया ऽऽ
आज मेरी बारी कान्हा देर क्यों लगाये
सबकी खबरियाँ रख के मुझे बस भूलाये
ऐसे मैं ना छोड़ूँगी तुमको साँवरिया
बीत ही जाये चाहें सारी उमरियाँ
कान्हा ऽऽ कान्हा छलिया ऽऽ छलिया ऽऽ !!

Friday, March 11, 2016

प्रियतमा मौन तोड़ो

प्रियतमा मौन तोड़ो
तुम्हारा चुप रहना बहुत खलता है
कुछ तो हमसे बोलो
सुबह-सुबह बच्चों के
जगने से लेकर स्कूल जाने तक
लगातार टेपरिकार्डर की तरह बजती हो
भोर बेला में लोग राम का नाम लेते है
और तुम लेेक्चर देती हो
सच बताऊँ तो उसवक़्त तुम्हारी सूरत
मुझे सुर्पंनखा-सी लगती है
मैं सोचता हूँ देर रात तक जगने के बाद भी
तुममे कहाँ से इतनी फुर्ती आती है
सच में रब ने बनाया है तुमसब को
एक अलग ही मिट्टी से
हम क्या ब्रह्मा,विष्णु,महेश भी नहीं समझ सकते
क्या चलता रहता है तुम्हारे अंतर्मन में
अबतक समझ ना पाया मैं
तुम किर्तन,सत्संग में भी क्यों जाया करती हो
या तो वहाँ ऊँघती रहती हो
या अपने-अपने घरों के किस्से बतियाती हो
तुम्हारी नज़र हमेशा
कैमरे की फोकस पर रहता है
जहाँ फोकस पड़ी नहीं कि
तुम्हारा रूप बदल जाता है
आँखे बंद कर ऐसे घ्यान मग्न हो जाती हो
प्रभू भक्ति में लीन एक भक्तन बन जाती हो
सारे दिन मेरे इंतज़ार में तुम बैठी रहती हो
मै जब घर आता हूँ ,बहुत ही ख़ुश होकर
मेरा स्वागत करती हो
मैं भी ख़ुश हो जाता हूँ चलो
अब तो तुम्हें मुझपे प्यार आया
मगर ये कुटिल मुस्कराहट
थोड़ी देर बाद मैं समझ पाया
मीठी-मीठी चाय के साथ
मीठा-मठा जहर उगलती जाती हो
जो दिन भर झेला है तुमने
सास-बहु का एपिसोड मुझे दिखलाती हो
इतना भी नहीं समझती
पति घर थकामांदा आया है
थोड़ी देर तो सब्र कर ले
फिर गा लेगे अपनी गाथा,जो गाना है
तुम भी कम अन्तर्यामी थोड़े ही हो
सबकुछ पहले से समझ जाती हो
मैं कमरे में जाकर कान में रूई डाल सो जाता हूँ
इसीलिए सबकुछ पहले ही बोल जाती हो
कहते हैं हर पुरूष के कामयाबी के पीछे
एक नारी का हाथ होता है
हम पुरूष ही जानते है
तुम्हारी नज़र और हाथ हमेशा
हमारी पर्शो की सफाई पे होता है
शॉपिंग पे जब जाना हो तब
कितने प्यार से गले लगती हो
बाद में पता चलता है मुझको
पर्श से पैसे कैसे गायब करती हो
तुम्हारे पास से उठकर थोड़ी शांति के लिए
माँ के पास जाकर बैठता हूँ
वही कहानी वो भी दोहराती है
जो अभी अभी तुमसे सुना हूँ
अंतर यही होता है तुम्हारे एपिसोड की
विलेन वो और उनके एपिसोड की
विलेन तुम होती हो
तुम सास बहु के चक्कर में
ये जीवन एेसा पिसता है
जैसे जौ के साथ घुन पिसता ही रहता है
बच्चों से भी प्यार करो तो उन्हें कहाँ भाता है
टॉफी चिप्स कुरकुरे मैगी बगैरह की
लिस्ट पकड़ा दिया जाता है
चाहिए हमे भी मुहब्बत
तुम समझ नहीं पाती हो
अगर गलती से भी दुसरी महिला के
शरण मे जाने की बात छेड़ दी तो
झट रौद्र काली का रूप धारण कर लेती हो
घर के बाहर शेर मगर घर में कैसा गिदड़ हूँ
इसीलिए अपने दोस्तों से भी
मैं कटा-कटा-सा रहता हूँ
कही जो घर पर आकर वो देख न ले मेरी हालत
मैं तो कही का नही रहूँगा हँसी उड़ेगी जब-तब
करवा चौठ के दिन भी तुम मौन कहाँ धरती हो
मैं सेवा मे लगा रहता हूँ
तब जाकर तुम व्रत करती हो
तुमसे ज्यादा चाँद निकलने की
जल्दी मुझे होती है
ताकि तुम खाकर चैन से सो जाओ क्योकि
मेरी नज़रों में आज तुम कुछ
ज्यादा ही खटकती है
इतना सबकुछ होकर भी,*पता है*
तुम मुझे क्यों अच्छी लगती हो
सबकुछ सहकर तुम मेरे घर को जोड़े रखती हो
मुझसे कहके बातें दिल की वही फेंक देती हो
होंठों पे मुस्कान बिखेरे
सबसे हँसकर ही मिलती हो
तुम्हें समझ कर भी कभी-कभी
मैं समझ नहीं पाता हूँ
फिर भी तुम्हारे हर रूप की पूजा मैं करता हूँ !!






Tuesday, March 8, 2016

देखा है पल- पल

देखा है लोगों के
चेहरे की रंगत को पल-पल
मौसम की तरह बदलते हुए
कभी एक-दुजे के लिए जान देते हुए
तो कभी एक-दुजे की जान लेते हुए
गलती किसकी है
कभी- कभी कहना-समझना
मुश्किल हो जाता है
दोनो ही पक्ष अपनी-अपनी
जगह सही होते हैं
ना जाने फिर क्यों ज़िंदगी
उस मोड़ पर लाकर खड़ी कर देती है
बिना कुछ करे हुए
सबकी अपनी-अपनी सोच है
सबकी अपनी-अपनी राय
कौन किसी से कम है जो कह दे
कि हम हैं तुमसे डरे हुए
विनम्रता ,तहज़ीब,अदब
नाम की चिड़िया जाने कहाँ फूर्रर्र हो गई है
बड़े कहतें हैं हम क्यों झुके
हम क्या हैं इतने गिरे हुए
छोटे कहते हैं
हम भी कम नहीं हैं
तुम अकेले तड़पो यूँही पड़े हुए
शायद ही कोई बुर्जुग अब
सड़क पार करते वक़्त
बोलता हो'बेटा जरा सड़क तो पार करवा दे'
ना मालूम कौन हो
ले जाये छिनकर सबकुछ यूहीं खड़े-खड़े
जिनमे इंसानियत जिन्दा है
उन्हे कभी-कभी जरूर लगता होगा
आस-पास दूषित वातावरण देख कर
कैसे बर्दाश्त किये जा रहे हैं
सबकुछ चुपचाप
आँखो के सामने मन को मारे हुए
राम-कृष्ण की जन्मभूमि
गौतम-रविन्द्रनाथ की कर्मभूमि को
क्यों नही उसवक़्त की तरह गुलशन में
गुलज़ार कर पा रहे है
बेबस है जैसे मरे हुए
भाषण सभी देते है
ये बेहतर है,वो बेहतर है
मगर एकजुट होकर
कोई नहीं चलता
देश की तरक्की के लिए
मेहनती बच्चों के भविष्य के लिए
सबको अपनी-अपनी पड़ी है
सत्य पर असत्य की विजय
पल-पल हो रही है
कभी देश के नाम पर
कभी धर्म के नाम पर
कभी भाषा के नाम पर
कभी जाति के नाम पर
कभी प्रजाति के नाम पर
कभी अमीरी-गरीबी के नाम पर
बहुत ही गिरे हुए
बात तो बहुत ही छोटी-सी है
अगर समझना चाहें तो
एकता देश की नहीं
एकता धर्म या भाषा की नहीं
एकता जाति,प्रजाति
अमीरी-गरीबी की भी नहीं
एकता अच्छे इंसानों की हो
एकता अच्छे विचारों की हो
एकता हर धर्म मे छिपी संस्कारों की हो
तभी तो ये मुल्क आगे बढ़े !!









Sunday, March 6, 2016

गौरी की है बारत आई

गौरी की है बारात आई
सबने मिल के धूम मचाई
शिव  बसहा चढ़ आये
ना सोने का रथ लाये
सब लोगों ने बात फैलाई
सबने मिल के धूम मचाई
पाँच मुख था उनका
तीन नैन थे उनके
साँप ने फुफकार के
जीभ लपलपाई
सबने मिल के धूम मचाई
कोई अंधा आया
कोई लंगड़ा आया
भूत-बैताल ने भय फैलाई
सबने मिलके धूम मचाई
कोई इधर गिर रहा
कोई उधर गिर रहा
मैना रानी बहुत पछताईं
सबने मिल के धूम मचाई
बाघ का छाल पहने
न कोई वस्त्र न गहने
कैसा मुझको मिला है जमाई
सबने मिल के धूम मचाई
भोला नाचने लगे
डमरू बजने लगे
भस्म लगा के हुई रूसवाई
मैना रानी गिरी मुरछाई
गौरी जब देखी
सबकी हालत पढ़ ली
भोले से गुहार लगाई
प्रभू मेरी करो न रूसवाई
बाबा हँसने लगे
बहुत जँचने लगे
चारो तरफ हरियाली छाई
ऐसी अद्भुत शादी ना देखी भाई
शिव भोले ने माया रचाई
कितना सुन्दर मिला है जमाई
गौरी की है बारात आई
सबने मिल के धूम मचाई !!


तुम्हारी नज़रों से गिरना कबूल नहीं

चाहें मैं सबकी नज़रों से 
गिर जाऊँ कान्हा
तेरी नज़रों से गिरना
कबूल नहीं है
कोई सोचे या ना सोचे
मेरे बारे में
तू न सोचे तो फ़र्क 
पड़ता जरूर है
तुमने हर उस मोड़ पे
सँभाला है 
मुझे जब भी लगा 
अब मैं गिर जाऊँगी
मैने महसूस की है
तेरी मुहब्बत को कान्हा
जमाना क्या सोचता है
मुझे फ़र्क नहीं पड़ता है
मैं ना मीरा हूँ ना हूँ मैं राधा
इनकी चाहत के बराबर क्या
मैं  अंश मात्र भी नहीं हूँ
बस तुम्हें चाहती हूँ
ये मेरी मुहब्बत है या पागलपन
तुम न चाहो अगर
भूल जाओ कभी तो
मुझे इससे
फ़र्क जरूर पड़ता है
बहुत देखे हैं 
दुनिया में अपने-पराये
सभी  रिश्ते
मतलब से जुड़े हुए हैं
एक तुम्हारा-हमारा ही
रिश्ता पाक है कान्हा
लोग हँसते हैं तो हँसे मुझपे
मुझे फ़र्क नहीं पड़ता है
मैं संसार में फैली
गंदगी देखकर थक चुकी हूँ
मेरे वश में कुछ भी नहीं जो
मैं कर सकती हूँ
बस तेरे दिये ज्ञान को
फैला रहीं हूँ
कोई समझे न समझे
मुझे फ़र्क नहीं पड़ता है
लोगों की तकलिफें
देख के कान्हा
मुझे बड़ा ही दर्द होता है
जो तुम्हें चाहते है
सच्चे ,सीधे हैं
उनके सिर पे 
तेरा हाथ ना हो तो
मुझे फ़र्क जरूर पड़ता है
मेरा अंतिम समय 
जब भी आये तो कान्हा
मेरा हाथ थामकर 
तुम ही मुझे ले चलना
क्योकि मुझे 
मरने की आदत नहीं है
मुझे मौत से 
बहुत डर लगता है !!








Friday, March 4, 2016

प्यार शादी के बाद

वो टमाटर काट रहे हैं
मैं बर्तन धो रही हूँ
शादी के बाद यही प्यार
बचा रह गया है
हमारा- तुम्हारा
बच्चे पढ़ते नहीं है
तुम उन्हें कुछ कहते नहीं हो
इसी तू-तू मैं-मैं में
कट रहा है जीवन बेचारा
सारे दिन तुम क्या करती हो
क्या बस सोती रहती हो
बच्चे ही तो हैं
सँभाल नहीं सकती हो
कौन समझाये किसी को
कि गलती किसकी है
बोलते- बोलते थककर
ख़ुद ही चुप हो जाऐंगें दोनो
फिर क्यों ले किसी और का सहारा
मैं कुछ बोलूँ
और उधर से उल्टा जबाव ना मिले
तो भी शक़ होता है
क्या चल रहा होगा मन में
ताने मार के देखूँ क्या दुबारा
बच्चों की परीक्षायें खत्म हो चुकी है
चलो बाहर कहीं घूम आते है
पहले ये तो तय हो जाये
चलना कहाँ है दिलदारा
तुम्हारी मर्जी कुछ और
मेरी मर्जी कुछ और
बच्चों की मर्जी कुछ और
छोड़ो जाने दो
यही पड़े रहते हैं
इतना टेन्शन क्यों ले ये दिल-दिमाग बेचारा
बैठे- बैठे यहीं से महसूस कर लेते है
बहारों का बहाराँ
चलो आज कहीं
बाहर डीनर पे चलते हैं
सबकी अपनी- अपनी पसंद है
बेचाना वेटर परेशान
घूर घूर कर देख रहा है
शायद सोचता होगा
काश अब यहाँ न आये ये दुबारा
मुझे सिरीयल पसंद है
उन्हें न्यूज़ पसंद है
बच्चों को कार्टून नेटवर्क चाहिए
माताजी भजन सुनना चाहती हैं
हाय राम
बिजली बिल थमाते हुए
मीटर रीडर ने मजाक में बोला
आप बिजली ही खाते हो क्या हमारा
मुझे पुराने गाने पसंद है
उन्हे ग़जल पसंद है
बच्चे हनी सिंग सुना-सुना कर बर्बाद कर रहे है
घर न हुआ
मानो चिड़िया घर हो गया हमारा
चलो खाने मे आज कुछ स्पेशल बनाये
मुझे डोसा पसंद है
उन्हें इडली पसंद है
बच्चे चाऊमिंग की जिद्द मचाये है
ओह,कहाँ फँस गई मैं बोलकर
नाहीं बोलती तो अच्छा था हमारा
इसमे तीखा कम है
इसमे नमक ज्यादा है
सब्जी में रस कम लगता है
पतिदेव जी तुनक कर बोले
तुम ख़ुद देखो ना यहाँ आकर
अपनी सब्जी का नज़ारा
मुझे चाय पसंद है
उन्हें कॉफी पसंद है
बच्चों को दूध की तलब लगी है
बताओ तो
कौन करेगा काम इतना सारा
घर मे मेहमान आये है
लगता है टिकने वाले हैं
फरमाइश कर लिस्ट पकड़ा चुके है
ये सामान जरा लेते आईयेगा हमारा
सारे बच्चे मिलकर
घर मे ऊधम मचाये हैं
किसी को टॉफी चाहिए
किसी को पानी चाहिए
कोई बिस्कीट माँग रहा है
आंटी सुनती नहीं हो
जरा  बिस्किट दे दो न हमारा
बड़े भी क्या कम है
गप्प का सिलसिला चल रहा है
बीच बीच में चाय-कॉफी का अॉडर मिल रहा है
ओह राम जाने
कबतक होगा ऐसा हाल हमारा
मैं अपने दिन भर के
कामों के बखान मे लगी हूँ
वो अपने  दिन भर के
कामों के बखान मे लगे हैं
बच्चें सुन-सुनकर परेशान
मम्मा-पापा कुछ नहीं हो सकता तुम्हारा
जिनकी शादी नहीं हुई है
सँभल जाये
क्योकि आगे
यही हाल होने वाला है
प्यार के साइड इफेक्ट में तुम्हारा !!



Wednesday, March 2, 2016

मैने चोरी नहीं की किसी का मन

मुझे कृष्ण की सौगंध
मुझे राधे की सौगंध
मैने चोरी नहीं की हैं
किसी का भी मन
तुमने लगाया जो इल्जाम
बताओ कब भेजा पैगाम
मैं तो ठीक से जानती भी नहीं तुम्हें
तुम कैसे हो इंसान
तुम जो राहों में मिले
हमारी मंज़िल एक थे
चल दिये दो कदम साथ तो क्या
हम एक हो गये
अपने मन को साफ करो
चलो जी मुझको माफ
मैने सोचा भी नही है
ऐसा कोई काम
जीवन एक संघर्ष है
मगर तुम्हें क्या दर्द है
तुम तो जीवन जी रहे हो
आवारा-बदनाम
हमारी सोच अलग हैं
हमारी राहें अलग हैं
मुझे करना है जीवन में
ढ़ेर सारा काम
जो प्यार करते हैं
वो यूँ बदनाम ना करते है
उनको देने पड़ते है
चाहत में ढ़ेरो इम्तहान
तुम्हें सब खेल लगता है
तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है
दिल जो टुटेगा हमारा
हँसेगी दुनिया
मुझपे सुबह- शाम
तुम अगर सुधर जाओ
बेहतर इंसान बन जाओ
मै भी सोच के देखुँगी
तुम्हारे साथ अपना नाम !!