इसकदर प्यार में टुटे की
खुदा भूल गये
कोई अपना भी है इस शहर में
ये भूल गये
कश्ती कागज की थी
उसे तो कही डुबना था
दिल भी शीशे का था
उसे भी कही टूटना था
उसकी चाहत ने रूलाया
कि वफा भूल गये
हज़ारो सुरते शामिल है
अंजुमन मे मगर
कौन है दोस्त
या रक़ीब या रशीद यहाँ
कऱीब भी गये
पर्दा हटाना भूल गये
एक आश्याँ हो प्यार का
कोई दस्तक दे दे
ख्वाहिश ख्वाहिश ही रह गयी
कोई एक घर दे दे
दरोदिवार की चाहत में
इतना भटके कि
कहाँ रहते हैं
उस दर का पता भूल गये
अब न वो जिक्र
न तलाश न अफ़सोस कोई
न मुक़द्दर से
किसी बात की शिकायत है
क्योंकि हममे
चलती भी है क्या साँसें
उफ़ ये भूल गये !!
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