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Thursday, January 28, 2016

चलो पुराने वक़्त में लौट जायें

चलो पुराने वक़्त में लौट जायें
वही अपनी छोटी-सी दुनिया बसायें
वो गाँव की मिट्टी में छोटा-सा आँगन
वो छोटी-सी बगीया में कोयल की कूँ-कूँ
वो बारिश की बूँदों में मिट्टी की ख़ुशबू
वो सावन के झूले,वो अपना-सा शबनम
चलो उस नर्मीं को आँखों में सजायें
वहीं अपनी छोटी-सी दुनिया बसायें
वो मिट्टी के चुल्हें पे सोंधी-सी रोटी
वो खेतों से निकली हरी-ताजी सब्जी
वो गाँव का पाठशाला ,मास्टर जी की छड़ी
बहुत याद आते है बचपन के साथी
चलो उनसे मिलने का मौका जुटायें
वहीं अपनी छोटी-सी दुनिया बसायें
वो ईद , क्रिसमस , लोहरी,दिवाली
वैशाखी दशहरा वो रंगों की होली
भले ही हम लड़ते-झगड़ते रहें हो आपस में
मगर कितना अपनापन था उन लम्हों में
चलो फिर उन त्योहारों को मिलकर मनायें
वहीं अपनी छोटा-सी दुनिया बसायें
इस शहर ने दिखाये है बहुत से सपने
मगर छिन लिये हमसे सारे वे अपने
सिर्फ मतलब के रिश्तों में मतलबी चेहरे
कहाँ दे पाऐंगें वे अपनें से चेहरे
वहाँ के कमरों मे था अपनापन बसता
यहाँ के घरों मे है सन्नाटा पसरा
नहीं दिखती है वो गलियों की रौनक
वो चाहत समर्पण वो अनमोल जीवन
चलो फिर से गाँव की ओर लौट जायें
वहीं अपनी छोटी-सी दुनिया बसायें !!!

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