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Saturday, January 9, 2016

शर्माते हो क्यों इसतरह ---

                             

तुम्हें प्राणप्रिये कहता हूँ प्रिये
तुम शर्माते हो क्यों इसतरह

माना अब उम्र नहीं एैसी
मैं सत्तर का तुम पैसठ की मगर

उम्र से क्या फ़र्क रिश्तों पे पड़ा
तुम शर्माते हो क्यों इसतरह

सच है पोते-पोतियाँ सुन लेगें
बुढ़ा सठिया गया है लोग कहेंगे

मैने ये दिल बस तुमको दिया
तुम शर्माते हो क्यों इसतरह

                                

मुझे याद है अपना पहला मिलन
तुम तेरह के थे और अठारह के हम

तुम सारी रात छिपते रहे
मैं पीछे भागता रहा
तुम शर्माते हो क्यों इसतरह

मैने सिखाया तुम्हें जीवन के सारे गुण
पारिवारिक गुण सामाजिक गुण           भावात्मक गुण रोमांटिक गुण

क्या बुरा किया जो चाहत को नाम दिया
तुम शर्माते हो क्यों इसतरह

चलो उम्र के इस पड़ाव पे
फिर से उन यादों को ताजा कर लें
बाँहो में बाँहे डालकर
पहले की तरह थियेटर चले

मुँह मे दाँत नहीं फिर भी क्या हुआ
तुम शर्माते हो क्यों इसतरह

आओ आज तुम्हें बाँहो में भर लूँ
एहसास जवानी का कर लूँ

                                            
अब जीना है बस एक-दुजे के लिए प्रिया
तुम शर्माते हो क्यों इसतरह !!!





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