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Thursday, February 4, 2016

मैं तो एक आईना हूँ

मैं तो एक आईना हूँ
तुम्हें इस बात से जलन क्यों है
हक़िक़त बयां करता हूँ
कोई इससे फ़िक्रमंद क्यों है
इसां कोई भी हो,मर्द या फिर औरत
सूरतें कैसी भी हो,गोरी या फिर काली
मुझे क्या
मैं बस मन में छिपी गंदगी को
उनकी आँखों में दिखा देता हूँ
लोग कहते हैं कि मैं खु़द ही साफ नहीं
इन बातों से मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता
ज़िदगी थोड़ी है ,क्यों नहीं समझते यारों
हमारे सामने से हट जाने से
क्या मुद्दा बदल जाएगा
तुम्हारी ये सोच है तो ये सोच अपने पास रखो
तुम्हारी इस सोच से
तुम्हें देखने वालो का
नज़रियाँ नहीं बदल जाएगा
जो अमर हो गये
इस दुनिया के वो महान् इंसां
वो भी तो हम जैसे हाड़-मांस के बने
इंसां ही थे
जिनकी अच्छाईयाँ हम
अबतक न भूला पाये है
कितनी कुर्बानियाँ दी थी,हम क्या- क्या याद करें
उनसब ने अपने अंदर के आईने को पहचाना था
नासमझ है जो मुझे अबतक नहीं जानते हैं
नकार दो मेरे वजूद को
तो भी एक बात तो है
कोई तो शक्ति है,एक रोज जहाँ जाना है
मुझे दुत्कार दो या फिर मुझसे प्यार करो
मुझे क्या
मैं तो एक आईना हूँ
टूटकर कभी भी बिखर जाऊंगा
फिर भी मेरे हर एक टुकड़ो पर
तुम साफ नज़र आओगे
मत चमकाओ सिर्फ सूरतें
अपनी सीरतों पे भी नज़र डालो
फिर पूछो अपने अंदर झाँककर
तुम्हारे अंदर का आईना साफ हुआ है या नहीं !!!


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