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Tuesday, February 9, 2016

आशियाँ बिखर जाएगा

वक़्त बदला-बदला-सा है
लोग बदले-बदले-से हैं
तुम बदले-बदले-से हो
हम भी बदले-बदले-से हैं
मगर कभी-कभी लगता है
गुज़रा वक़्त ही सही था
जब तुम साइकिल की घंटियाँ बजाते
घर आते थे
धीरे से दरवाजा खटखटाते थे
सँज-सँवर के मैं वही खड़ी
बेसब्री से तुम्हारा इंतजार कर रही होती थी
दरवाजा खुलते ही हमदोनों
एक-दुसरे को देख मुस्कुराते थे
कितने हौंलें से थपथपा कर मेरे गालों को
कहते थे
मैडम जी ज़रा गर्मागर्म चाय तो बनाईयें
मेरे पल्लू में पोंछ कर अपने हाथों को
किसी बहाने से मुझसे लिपट जाते थे
मैं भी चालाकी दिखाकर
तुमसे कहती थीं
देखो बच्चें आ गयें
तुम घबरा कर पीछे सरक जाते थे
हँसते-हँसते हम वक़्त को भी भूल जाते थे
मेरे हाथों से बने गर्मागर्म खाने को
कितना स्वाद ले लेकर तुम खाते थे
मुझको साईकिल पे बिठा कर के
हँसी वादियों की
फिर सैर करवाने ले कर जाते थे
दस-दस पानी-पुड़ी मैं अकेली खा जाती थी
और तुम दूर से बस मुझे देखकर
मुस्कराते थे
बर्फ के गोले के लिए
हममें झगड़ा हो जाता था
तुम कहते थे नहीं खाना है मगर
मेरी जिद्द के सामने
तुम हार जाते थे
उन लम्हों में हमारे पास
बहुत-सी चीजों की कमीयाँ थीं
मगर प्यार इतना था कि
उस बुरे वक़्त को भी हम
खुशी-खुशी साथ काट जाते थे
तुम समझ न पाये
मेरे मन में छिपी बातों को
जिसे वर्षो से मैं तुम से कहना चाहती थी
जीने के लिए दौलत बहुत कुछ है मगर
जीवन के लिए दौलत ही सब कुछ नहीं
तुम मुझे इतना सा भी न समझ पाये
मैने माँगी थी तुमसे दौलत बच्चों के लिए
इतना,जितने में साथ-साथ हमारा
प्यार से गुज़ारा हो जाये
मुझे नहीं मालूम था कि
ये भी एक नशा है
जिसमें हो सकता है मेरा आशियाँ
बिखर जायें !!!


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