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Thursday, June 23, 2016

बात खनकती चुड़ियों की थी

बात हाथों में खनकती
चुड़ियों की थी
और वो खफ़ा हो के चल दिये
जो कहा
एक नज़र देख लिजिए

माथे की बिदिंयाँ ने भी
एतराज जतायी थी
इधर वो देखते नहीं
वो चमके किसके लिए

ये भी क्या बात है
बेज़ार हुए जाते हैं
पहले फिरते थे आगे-पीछे
अब बेगानगी जताते हैं
वो दिन क्या भूल से भी
याद नहीं आते है
मेरी तारिफ में जब
नग्में बनाये जाते थे

बात पैरों में झनकती
पायल की थी
और वो खफा हो के चल दिये
जो कहा
एक नज़र देख लिजिए

फ़लक के चाँद तारे तोड़
नहीं माँगें थें
नाहीं तारिफ में वो
कुछ कहें ये चाहें थें
उनके होंठों पे थिरकती मुस्कराहट की
मगर बेकार ये उम्मीद हम जगाये थें

बात चाहत में लिपटी हुई
एक नज़र की थी
और वो खफा हो के चल दिये
जो कहा
एक नज़र देख लिजिए

                                             
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