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Sunday, September 25, 2016

हमसफ़र न मिलेगा

                                 
चाहेंगें भी तो इस दिल-सा दीग़र( दुसरा)न मिलेगा
दिलोजाँ से जो फिदा हो हमसफ़र न मिलेगा

जैसे रखा है आपने हम उसमे खुश रहे
चाहत का मेरे दिल सा समन्दर न मिलेगा

दिल में बिठा के आपको पूजा है रात- दिन
बुत को खुदा है माना ये नज़र न मिलेगा

जायें कहीं भी आप चाहत की खोज में
दे दे जो इतनी मुहब्बत कही बाहर न मिलेगा

इक दरिया हूँ प्यार का कभी खुद मे समा के देखें
ढूंढ़ने से भी ऐसा कहीं मंजर न मिलेगा

देखा है आपने भी खूब ज़माना
मानेंगे वफा की राह में जब रहबर न मिलेगा

ओ चाहत के सौदागर रूक जा यही पे तू
मोहब्बत की ये ज़मी कभी बंजर न मिलेगा

नहीं है यकीं तो कभी आज़मा के देख लें
लौटेगे कभी आप तो ये दर न मिलेगा

कदमों मे दिल पड़ा है देखें इक नज़र
ठुकरा के चल दिये तो फिर ये मुक़द्दर न मिलेगा

                               






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