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Friday, November 11, 2016

रात कान्हा ने

                               
रात कान्हा ने मुरली बजाई रसिया
मै सुधबुध भूलाई चली आई रसिया

वो था यमुना की तीर
मै तो थी गंभीर
उसने मुरली बजा कर लुभाई रसिया
मै सुधबुध भूलाई चली आई रसिया

मेरी धड़कन बढी थी
साँसे ऊपर चढ़ी थी
जब कान्हा ने हँस कर रिझाई रसिया
मैं सुधबुध भूलाई चली आई रसिया

माना मुश्किल घड़ी थी
सिर पर मटकी धरी थी
कान्हा ने गुदगुदा कर गिराई रसिया
मैं सुधबुध भूलाई चली आई रसिया

घर कैसे जाऊंगी
माँ से क्या बतलाऊंगी
कान्हा ने मेरी चुनरी भिंगाई रसिया
मैं सुधबुध भूलाई चली आई रसिया

समझे कान्हा ये बात
चुनरी कि की बरसात
उसी कान्हा ने इज्जत बचाई रसिया
मै सुधबुध भूलाई चली आई रसिया

                             




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