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Thursday, January 14, 2016

वह रोज़ पीता है----------

वह रोज़ पीता है---------
आँसू भी सकता है,ग़म भी पी सकता है
दर्द भी पी सकता है
मगर वह रोज़ पीता है
जिंदगी का ज़हर शराब--------
ग़म मे पीता है या ख़ुशी में
ऐश करने के लिए पीता है या
परेशां करने के लिए
मालूम नहीं
मगर वह रोज़ पीता है
जिंदगी का ज़हर शराब--------
अँधेरी रातों में सुनसान राहों पर
लड़खड़ाते क़दमों को सँभालता
गिरता फिर उठता
वही किसी गट्ठर या नाले मे गिर पड़ता है
थोड़ा होश आने पर उल्टियाँ करता हुआ
गालियाँ देता हुआ
घर की ओर चलता है
घर में बीवी बच्चें सहमें है
न जाने आज किस रूप में आएगा वो
क्या-क्या अत्याचार करेगा
कितना मारेगा वह
तबतक वह घर पहुँच जाता है
दरवाज़े से ही चिल्लाता है
अरे ओ करमजली मर गई क्या----------
आगे बढ़ता है, बड़े ही बेरहमी से मारता है
मारता ही जाता है,पत्नी और बच्चों को
क्यों मारता है मालूम नहीं
मगर वह रोज़ पीता है
जिंदगी का ज़हर शराब--------
सुबह जगने पर गलती का एहसास सताता है
माफियाँ माँगता है,कसमें खाता है
पत्नी और बच्चों की
कभी ऐसी गलती न करने की कसमें
मगर शाम होते ही
फिर शैतान हावी हो जाता है---------
वही सड़क,वही शराब वही नशे में धुत आदमी
वही कालरात्री
पत्नी और बच्चों की सिसकियों से भरी
वह क्यों पीता है??????
जिंदगी का ज़हर शराब------



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