Search This Blog

Saturday, January 30, 2016

कितनी दीवारें खड़ी कर दी हैं तुमने

एक ही घर में
एक ही कमरे में
एक ही बिस्तर पर
कितनी दीवारें खड़ी कर दीं हैं तुमने
जिसे तोड़ पाना मुमकिन नहीं लगता
हम साथ-साथ चलने के बजाय
एक-दुसरे के आमने-सामने खड़े हैं
एक नदी के दो किनारों की तरह
जिनका मिल पाना मुमकिन नहीं लगता
वक़्त ने हमारे बीच खड़ी कर दीं हैं
अहम,खुदग़र्ज़ी और अविश्वासकी दीवारें
इंसानीयत का जज़्बा दिल मे रखते हो
इक-दुजे के लिए ऐसा भी नहीं लगता
तुम मुझे ठेस पहुँचा कर खुश होते हो
मैं तुम्हें दर्द देकर मुस्कुराती हूँ
मगर ये खु़शी झण भर की होती है
ज़िंदगी का खालीपन न चुभता हो ज़िंदगी में
ऐसा नहीं लगता
हम हँस-बोल लेते हैं एक-दुसरे के साथ
हरपल एक-दुजे के क़रीब भी रहते हैं
मगर दिल की दूरियाँ ये कहतीं हैं
हम समझते हो एक-दुजे को एेसा नहीं लगता
ऐसा लगता है जैसे जकड़ रक्खा हो हमें खु़दी ने
खुलकर साँस लेते मैंने तुम्हें देखा नहीं
मैं भी खुलकर साँसें ले पा रही हूँ
ऐसा नहीं लगता
छोड़ दो तुम ये झूठी जिद्द अपनी
और मैं अपना झूठा अहंकार छोड़ दूँ
और बाँट ले हम इक-दुजे से प्यार को
घर,कमरें और बिस्तर पर
दीवारें खड़ी करने के बजाय !!

No comments:

Post a Comment