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Sunday, March 6, 2016

तुम्हारी नज़रों से गिरना कबूल नहीं

चाहें मैं सबकी नज़रों से 
गिर जाऊँ कान्हा
तेरी नज़रों से गिरना
कबूल नहीं है
कोई सोचे या ना सोचे
मेरे बारे में
तू न सोचे तो फ़र्क 
पड़ता जरूर है
तुमने हर उस मोड़ पे
सँभाला है 
मुझे जब भी लगा 
अब मैं गिर जाऊँगी
मैने महसूस की है
तेरी मुहब्बत को कान्हा
जमाना क्या सोचता है
मुझे फ़र्क नहीं पड़ता है
मैं ना मीरा हूँ ना हूँ मैं राधा
इनकी चाहत के बराबर क्या
मैं  अंश मात्र भी नहीं हूँ
बस तुम्हें चाहती हूँ
ये मेरी मुहब्बत है या पागलपन
तुम न चाहो अगर
भूल जाओ कभी तो
मुझे इससे
फ़र्क जरूर पड़ता है
बहुत देखे हैं 
दुनिया में अपने-पराये
सभी  रिश्ते
मतलब से जुड़े हुए हैं
एक तुम्हारा-हमारा ही
रिश्ता पाक है कान्हा
लोग हँसते हैं तो हँसे मुझपे
मुझे फ़र्क नहीं पड़ता है
मैं संसार में फैली
गंदगी देखकर थक चुकी हूँ
मेरे वश में कुछ भी नहीं जो
मैं कर सकती हूँ
बस तेरे दिये ज्ञान को
फैला रहीं हूँ
कोई समझे न समझे
मुझे फ़र्क नहीं पड़ता है
लोगों की तकलिफें
देख के कान्हा
मुझे बड़ा ही दर्द होता है
जो तुम्हें चाहते है
सच्चे ,सीधे हैं
उनके सिर पे 
तेरा हाथ ना हो तो
मुझे फ़र्क जरूर पड़ता है
मेरा अंतिम समय 
जब भी आये तो कान्हा
मेरा हाथ थामकर 
तुम ही मुझे ले चलना
क्योकि मुझे 
मरने की आदत नहीं है
मुझे मौत से 
बहुत डर लगता है !!








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