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Friday, April 22, 2016

तुम्हें देखकर एक नग़्म बन रहे हैं

सँजाते-सँजाते शब्द सँज रहे हैं
तुम्हें देखकर एक नग़्म बन रहे हैं
भुला दो मेरे मीत यादों को मेरे
मगर हम तो तेरे लिए जल रहे हैं
न देखो मेरी ओर चाहत से तो भी
दिलो की ये धड़कन यही कह रही है
मेरी जान चाहा है तुमने मुझे भी
ये चाहत की खुशबू मुझसे गुज़र रही है
इशारा ही कर दो तो पहलू मे आ के
बताऊँ ये आँखे किसे तक रही है
समझते हो तुम इतने नादां नहीं हो
कुछ मजबुरियाँ जो तुम्हें डंस रहीं हैं
अमावस की राते नहीं कट रहीं हैं
बिना चाँद के रात यूँ ढ़ल रही है
मेरी जान एक दिन तो दोगे सदा तुम
इसी आश में ज़िदगी कट रही है
भुलाने की फितरत तुम्हारी नहीं है
जताने की आदत हमारी नहीं है
कठिन है डगर मगर चल के देखो
इन्हीं रास्तो पे हमारी खुशी है !!


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