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Tuesday, May 10, 2016

मै निखर रही हूँ

तेरी शरण में आकर मै अब निखर रही हूँ
लोहा थी मै तो दाता पारस अब बन रही हूँ

तुम बिन कही नहीं था जग मे मेरा सहारा
तुमसे लगन लगी तो जग भी हुआ हमारा
भटकती फिरती थी जाने किन अंधेरों में
पायी जब तुम्हे तो जीवन लौ जगमगाया

प्रभू नाम के सुमिरन तले मैं भी सँवर रही हूँ
लोहा थी मै तो दाता पारस अब बन रही हूँ

जब राम बनकर आये शीला अहिल्या तारा
केवट की नाव बैठे दे दिया उसे किनारा
शेबरी के जुठे बैर बन गये संजीवनी बूटी
लक्ष्मण के प्राण बचाये ऐसी थी तेरी माया
रावण को मारकर के विभीषण को बचाया

प्रभू सत्य के प्रकाश तले मै भी चमक रही हूँ
लोहा थी मै तो दाता पारस अब बन रही हूँ

जब कृष्ण बन कर आये कैसी रचायी लीला
कंस को मारकर कर माता देवकी को बचाया
मथुरा मे जन्म लेकर गोकूल मे थे सिधारे
बिना जनम दिये तुमको यशोदा बनी माता
द्रोपदी की लाज रख ली जब उसने तुम्हें पुकारा
मीरा प्रेम को तुमने अमर कर डाला

प्रभू प्रेम के मिठास तले मै भी छलक रही हूँ
लोहा थी मै तो दाता पारस अब बन रही हूँ

जब शिव बनकर आये विषधर गले लगाये
समुद्र मंथन मे देवताओ को बचाये
विष की प्याली पीकर  नीलकंठ कहलाये
गणपति को पूजा मे पहला स्थान दिलाये
अपनी अमर कथा से
दो कबूतरों को अमरता दिलाये

प्रभू नाम के एक जाप तले मै भी दमक रही हूँ
लोहा थी मै तो दाता पारस अब बन रही हूँ !!






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