शब्द नि:शब्द थे उसके
जु़बां खुली भी थी और नहीं भी
बच्चों की ललचाई नज़रें
रोटीयों पर थी
एक माँ की कातर दृष्टि बच्चों पर
शब्द नि:शब्द थे उसके
बड़ी मुश्किल से दो-चार रोटियों भर
आटा गूँधा था उसने
सोची चलो न से हाँ ही सही
कुछ तो निवाले पेट में रहेंगें इनके
शब्द नि:शब्द थे उसके
वह रोटियाँ सेंकती गई
बच्चों की ललचाई नज़रें
उस पर ही टिकी रहीं
शायद उन्हें डर था
माँ कहीं ज्यादा निवाले
किसी एक को न खिला दे
शब्द निःशब्द थे उसके
माँ की आँखों मे चमक थी
भूखे बच्चों को कुछ खिला पाने की
बच्चों की आँखों में भूख थी
जल्द उन रोटियों को पा जाने की
शब्द नि:शब्द थे उसके
वह रोटियाँ परोसने लगी कि
भीड़ की एक टुकड़ी
आँधी की तरह आई
एक आदमी किसी की
जेब काट भाग रहा था
उसके पीछे थी लोंगों की भीड़
शब्द नि:शब्द थे उसके
इससे पहले वो
बच्चों और रोटियों को ले
पीछे हट पाती
भीड़ ने उन्हें रौंदना शुरू कर दिया
जख़्मी हुई माँ और भूखे बच्चों को
अपनी फ़िक्र नहीं थी
क्योंकि भूख की पीड़ा
उससे कहीं असहनिय थी
शब्द नि:शब्द थे उसके
वह उठे और रोटियाँ ढूँढ़ने लगे
तबतक रोटियाँ
कुछ मिट्टी ,कुछ पाँव तले
कुछ कुत्तों के निवाले बन चुके थे
माँ का कलेजा फटने लगा था
शब्द आँसू साथ बह चले थे
सूखी छाती से लगे बच्चों को
न दूध मयस्सर हो सका था न रोटी
शब्द निःशब्द थे उसके
जु़बा खुली भी थी और नहीं भी !!!
जु़बां खुली भी थी और नहीं भी
बच्चों की ललचाई नज़रें
रोटीयों पर थी
एक माँ की कातर दृष्टि बच्चों पर
शब्द नि:शब्द थे उसके
बड़ी मुश्किल से दो-चार रोटियों भर
आटा गूँधा था उसने
सोची चलो न से हाँ ही सही
कुछ तो निवाले पेट में रहेंगें इनके
शब्द नि:शब्द थे उसके
वह रोटियाँ सेंकती गई
बच्चों की ललचाई नज़रें
उस पर ही टिकी रहीं
शायद उन्हें डर था
माँ कहीं ज्यादा निवाले
किसी एक को न खिला दे
शब्द निःशब्द थे उसके
माँ की आँखों मे चमक थी
भूखे बच्चों को कुछ खिला पाने की
बच्चों की आँखों में भूख थी
जल्द उन रोटियों को पा जाने की
शब्द नि:शब्द थे उसके
वह रोटियाँ परोसने लगी कि
भीड़ की एक टुकड़ी
आँधी की तरह आई
एक आदमी किसी की
जेब काट भाग रहा था
उसके पीछे थी लोंगों की भीड़
शब्द नि:शब्द थे उसके
इससे पहले वो
बच्चों और रोटियों को ले
पीछे हट पाती
भीड़ ने उन्हें रौंदना शुरू कर दिया
जख़्मी हुई माँ और भूखे बच्चों को
अपनी फ़िक्र नहीं थी
क्योंकि भूख की पीड़ा
उससे कहीं असहनिय थी
शब्द नि:शब्द थे उसके
वह उठे और रोटियाँ ढूँढ़ने लगे
तबतक रोटियाँ
कुछ मिट्टी ,कुछ पाँव तले
कुछ कुत्तों के निवाले बन चुके थे
माँ का कलेजा फटने लगा था
शब्द आँसू साथ बह चले थे
सूखी छाती से लगे बच्चों को
न दूध मयस्सर हो सका था न रोटी
शब्द निःशब्द थे उसके
जु़बा खुली भी थी और नहीं भी !!!
No comments:
Post a Comment