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Tuesday, March 8, 2016

देखा है पल- पल

देखा है लोगों के
चेहरे की रंगत को पल-पल
मौसम की तरह बदलते हुए
कभी एक-दुजे के लिए जान देते हुए
तो कभी एक-दुजे की जान लेते हुए
गलती किसकी है
कभी- कभी कहना-समझना
मुश्किल हो जाता है
दोनो ही पक्ष अपनी-अपनी
जगह सही होते हैं
ना जाने फिर क्यों ज़िंदगी
उस मोड़ पर लाकर खड़ी कर देती है
बिना कुछ करे हुए
सबकी अपनी-अपनी सोच है
सबकी अपनी-अपनी राय
कौन किसी से कम है जो कह दे
कि हम हैं तुमसे डरे हुए
विनम्रता ,तहज़ीब,अदब
नाम की चिड़िया जाने कहाँ फूर्रर्र हो गई है
बड़े कहतें हैं हम क्यों झुके
हम क्या हैं इतने गिरे हुए
छोटे कहते हैं
हम भी कम नहीं हैं
तुम अकेले तड़पो यूँही पड़े हुए
शायद ही कोई बुर्जुग अब
सड़क पार करते वक़्त
बोलता हो'बेटा जरा सड़क तो पार करवा दे'
ना मालूम कौन हो
ले जाये छिनकर सबकुछ यूहीं खड़े-खड़े
जिनमे इंसानियत जिन्दा है
उन्हे कभी-कभी जरूर लगता होगा
आस-पास दूषित वातावरण देख कर
कैसे बर्दाश्त किये जा रहे हैं
सबकुछ चुपचाप
आँखो के सामने मन को मारे हुए
राम-कृष्ण की जन्मभूमि
गौतम-रविन्द्रनाथ की कर्मभूमि को
क्यों नही उसवक़्त की तरह गुलशन में
गुलज़ार कर पा रहे है
बेबस है जैसे मरे हुए
भाषण सभी देते है
ये बेहतर है,वो बेहतर है
मगर एकजुट होकर
कोई नहीं चलता
देश की तरक्की के लिए
मेहनती बच्चों के भविष्य के लिए
सबको अपनी-अपनी पड़ी है
सत्य पर असत्य की विजय
पल-पल हो रही है
कभी देश के नाम पर
कभी धर्म के नाम पर
कभी भाषा के नाम पर
कभी जाति के नाम पर
कभी प्रजाति के नाम पर
कभी अमीरी-गरीबी के नाम पर
बहुत ही गिरे हुए
बात तो बहुत ही छोटी-सी है
अगर समझना चाहें तो
एकता देश की नहीं
एकता धर्म या भाषा की नहीं
एकता जाति,प्रजाति
अमीरी-गरीबी की भी नहीं
एकता अच्छे इंसानों की हो
एकता अच्छे विचारों की हो
एकता हर धर्म मे छिपी संस्कारों की हो
तभी तो ये मुल्क आगे बढ़े !!









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