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Friday, March 11, 2016

प्रियतमा मौन तोड़ो

प्रियतमा मौन तोड़ो
तुम्हारा चुप रहना बहुत खलता है
कुछ तो हमसे बोलो
सुबह-सुबह बच्चों के
जगने से लेकर स्कूल जाने तक
लगातार टेपरिकार्डर की तरह बजती हो
भोर बेला में लोग राम का नाम लेते है
और तुम लेेक्चर देती हो
सच बताऊँ तो उसवक़्त तुम्हारी सूरत
मुझे सुर्पंनखा-सी लगती है
मैं सोचता हूँ देर रात तक जगने के बाद भी
तुममे कहाँ से इतनी फुर्ती आती है
सच में रब ने बनाया है तुमसब को
एक अलग ही मिट्टी से
हम क्या ब्रह्मा,विष्णु,महेश भी नहीं समझ सकते
क्या चलता रहता है तुम्हारे अंतर्मन में
अबतक समझ ना पाया मैं
तुम किर्तन,सत्संग में भी क्यों जाया करती हो
या तो वहाँ ऊँघती रहती हो
या अपने-अपने घरों के किस्से बतियाती हो
तुम्हारी नज़र हमेशा
कैमरे की फोकस पर रहता है
जहाँ फोकस पड़ी नहीं कि
तुम्हारा रूप बदल जाता है
आँखे बंद कर ऐसे घ्यान मग्न हो जाती हो
प्रभू भक्ति में लीन एक भक्तन बन जाती हो
सारे दिन मेरे इंतज़ार में तुम बैठी रहती हो
मै जब घर आता हूँ ,बहुत ही ख़ुश होकर
मेरा स्वागत करती हो
मैं भी ख़ुश हो जाता हूँ चलो
अब तो तुम्हें मुझपे प्यार आया
मगर ये कुटिल मुस्कराहट
थोड़ी देर बाद मैं समझ पाया
मीठी-मीठी चाय के साथ
मीठा-मठा जहर उगलती जाती हो
जो दिन भर झेला है तुमने
सास-बहु का एपिसोड मुझे दिखलाती हो
इतना भी नहीं समझती
पति घर थकामांदा आया है
थोड़ी देर तो सब्र कर ले
फिर गा लेगे अपनी गाथा,जो गाना है
तुम भी कम अन्तर्यामी थोड़े ही हो
सबकुछ पहले से समझ जाती हो
मैं कमरे में जाकर कान में रूई डाल सो जाता हूँ
इसीलिए सबकुछ पहले ही बोल जाती हो
कहते हैं हर पुरूष के कामयाबी के पीछे
एक नारी का हाथ होता है
हम पुरूष ही जानते है
तुम्हारी नज़र और हाथ हमेशा
हमारी पर्शो की सफाई पे होता है
शॉपिंग पे जब जाना हो तब
कितने प्यार से गले लगती हो
बाद में पता चलता है मुझको
पर्श से पैसे कैसे गायब करती हो
तुम्हारे पास से उठकर थोड़ी शांति के लिए
माँ के पास जाकर बैठता हूँ
वही कहानी वो भी दोहराती है
जो अभी अभी तुमसे सुना हूँ
अंतर यही होता है तुम्हारे एपिसोड की
विलेन वो और उनके एपिसोड की
विलेन तुम होती हो
तुम सास बहु के चक्कर में
ये जीवन एेसा पिसता है
जैसे जौ के साथ घुन पिसता ही रहता है
बच्चों से भी प्यार करो तो उन्हें कहाँ भाता है
टॉफी चिप्स कुरकुरे मैगी बगैरह की
लिस्ट पकड़ा दिया जाता है
चाहिए हमे भी मुहब्बत
तुम समझ नहीं पाती हो
अगर गलती से भी दुसरी महिला के
शरण मे जाने की बात छेड़ दी तो
झट रौद्र काली का रूप धारण कर लेती हो
घर के बाहर शेर मगर घर में कैसा गिदड़ हूँ
इसीलिए अपने दोस्तों से भी
मैं कटा-कटा-सा रहता हूँ
कही जो घर पर आकर वो देख न ले मेरी हालत
मैं तो कही का नही रहूँगा हँसी उड़ेगी जब-तब
करवा चौठ के दिन भी तुम मौन कहाँ धरती हो
मैं सेवा मे लगा रहता हूँ
तब जाकर तुम व्रत करती हो
तुमसे ज्यादा चाँद निकलने की
जल्दी मुझे होती है
ताकि तुम खाकर चैन से सो जाओ क्योकि
मेरी नज़रों में आज तुम कुछ
ज्यादा ही खटकती है
इतना सबकुछ होकर भी,*पता है*
तुम मुझे क्यों अच्छी लगती हो
सबकुछ सहकर तुम मेरे घर को जोड़े रखती हो
मुझसे कहके बातें दिल की वही फेंक देती हो
होंठों पे मुस्कान बिखेरे
सबसे हँसकर ही मिलती हो
तुम्हें समझ कर भी कभी-कभी
मैं समझ नहीं पाता हूँ
फिर भी तुम्हारे हर रूप की पूजा मैं करता हूँ !!






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