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Saturday, March 12, 2016

प्रीत ना निभाई मुझसे

प्रीत ना निभाई मुझसे तुमने कन्हैया
तड़प रही हूँ जैसे जल बिन मछलियाँ
कान्हा ऽऽ कान्हा ऽऽ छलिया ऽऽ छलिया
माता पिता के तुमने बंधन छुड़ाये
कंस का कर संहार पाप मिटाये
मथुरा मे जन्म ले के गोकुल में आये
मुझे नाहीं मिले कान्हा ,कहाँ ढूँढ़ने जाये
कान्हा ऽऽ कान्हा ऽऽ छलिया ऽऽ छलिया
गणिका-अजामिल को तुमने उबारा
बड़े- बड़े पापियों को क्षण भर मे तारा
मै ही एक अकेली कान्हा तुमको बुलाती
जिसकी पुकार तुम ना सुनते गिरधारी
कान्हा ऽऽ कान्हा ऽऽ छलिया ऽऽ छलिया ऽऽ
इन्द्र ने कोप किया था ब्रज पे भारी
चारो तरफ जल ही जल था
व्याकुल थे नर-नारी
गोवर्धन उठाके तुमने प्राण सबकी बचायी
सिर्फ मुझे भूले कान्हा अब तक ना आये
कान्हा ऽऽ कान्हा ऽऽ छलिया ऽऽ छलिया ऽऽ
द्रोपदी की बारी कान्हा नंगे पॉव दौड़े
कौरव सभा मे सब चुप थे लाज तुमने रख ली
गज की पुकार सुनके तुरंत भागे आये
ग्राह को मार कर गज को बचाये
कान्हा ऽऽ कान्हा ऽऽ छलिया ऽऽ छलिया ऽऽ
आज मेरी बारी कान्हा देर क्यों लगाये
सबकी खबरियाँ रख के मुझे बस भूलाये
ऐसे मैं ना छोड़ूँगी तुमको साँवरिया
बीत ही जाये चाहें सारी उमरियाँ
कान्हा ऽऽ कान्हा छलिया ऽऽ छलिया ऽऽ !!

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